स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
कवि चन्द्र विरचित मिथिला भाषा रामायण
किष्किन्धाकाण्ड – छठम् अध्याय
।रूपक घनाक्षरी।
।तीरभुक्तिसङ्गीत रीत्या कानरा-राजविजय छन्दः।
अजिन-वसन शुचि नवघन-सम रुचि, कमल-नयन हसयित मुख परसन।
रघुवर गिरिगुहा पुर थित छला भन, वैदेही-विरह – जर जनु जरजर सन॥
लक्ष्मण कपिवर चरण प्रणति कर, वानर-निकर प्रमुदित शुभ-दरशन।
जटिल सुभग तन-रुचि-शशिसन, खग मृग प्रमुदित प्रभु रघुवर सन॥१॥
।रूपमाला।
चरण पड़ल निहारि कपि-पति हृदय लेल लगाय
कुशल पुछलनि राम प्रभु, बैसलाह आज्ञा पाय।
तखन पुन रघुनाथ काँ से, कहल दुहु कर जोड़ि
चमृ आइलि वानरी रघुनाथ अछि नहि थोड़ि॥
काम-रूपी द्वीप द्वीपक, विकट मक्कट लोक
पर्व्वतोपम युद्धमे, अरि कय शकथि नहि रोक॥
देव – सम्भव अमित-बल सभ, अभय नानाकार
युद्ध करबाँ सतत उद्यत, सहि न शकु महि भार।
प्रभुक आज्ञा पाल फल दल, मूल सभकाँ भक्ष्य
दैत्य दानव प्रभृति हिनका, युद्धमे नहि लक्ष्य॥
जाम्बवान सुबुद्धि ऋक्षक, अधिप मन्त्रि महान
कोटिशः भल्लूक वशमे, आन कहल कि मान।
वायु-पुत्र पवित्र मन्त्री, हिनक अद्भुत कार्य्य
वायु-बलक समान-बल छथि, समर मे अनिवार्य्य॥
नील नल गवयादि अङ्गद, मादनादि सुवीर
शरभ मैन्दव गज पनस ओ, बली दधिमुख धीर।
तार नाम सुषेण केसरि, विश्व के नहि जान
महाबल जनिके कहल छल, पुत्र छथि हनुमान॥
एक एकक कोटि सेना, कहल यूथप नाम
ई प्रधानैँ कहल अछि छथि, अति कुशल सङ्ग्राम।
बालिपुत्र महाबली छथि, हिनक समुचित चालि
थिकथि राक्षस कुलक अन्तक, सोपि गेला बालि॥
सकल सेना सहित प्रज्ञा, करथि आज्ञा नाथ
हमर नाम निमित्त मात्रक, विजय प्रभुवर हाथ।
राम शुनि हर्षाश्रु लोचन, कहल हृदय लगाय
मित्र सभटा अहँ जनैछी, करक तकर उपाय॥
तखन शुनि सुग्रीव दश दिश, कपि पठावल वीर
कहल दक्षिण दिश विशेषैँ, जाथि सभ रणधीर।
बालि-सुत-युत मरुत – सुत ओ, जाम्बवान महान
नल सुषेण ओ शरभ मैन्दव, द्विविद करथु प्रयाण॥
यत्नसौँ सभ जानकी केँ, ताकि केँ भरि मास
अन्यथा दिन एक बीतत, प्राणकाँ बुझु त्रास॥
।चौपाइ।
वानर – वीर कपीश पठाय। बइसला विनत राम लग जाय॥
मारुत-सुत काँ कहलनि राम। ई मुद्रा अछि अङ्कित नाम॥
यतनैँ सौँ लिय सङ्ग लगाय। देब जनकजाकाँ अहँ जाय॥
अहँ का सतत रहत कल्याण। अहँक समान सूझ नहि आन॥
अपन नीक जानब से करब। कालहुँ सौँ संग्राम न डरब॥
प्रभु – आशिष मारुति फल पाब। विश्व-विजय बल पाओल आब॥
अङ्गद आदि चलल मिलि सङ्ग। कोटि कोटि गुण बल बढ़ अङ्ग॥
फिरइत वन राक्षस जे भेट। तनिक प्राण हर मार चपेट॥
श्रमसौँ क्षुधा-तृषातुर भाख। आब प्राण परमेश्वर राख॥
देखल सभ गह्वर बड़ बेश। लता गुल्म तृण आवृत देश॥
क्रौञ्च हंसगण तीतल पाँखि। देखल सब जन निज निज आँखि॥
तेहि अभ्यन्तर जल अनुमान। पैशल विवर आगु हनुमान॥
बहुत दूर छल निविड़ अन्धार। हाथैँ हाथ धयल गेल पार॥
देखल जलाशय मणि-सम नीर। कल्पवृक्ष – सम तरुवर तीर॥
फलसौँ नमित भरल मधुमार। कपि – सेनागन हर्ष अपार॥
सभ गुण भरल देखल एक गाम। एक गोट नहि लोकक नाम॥
कनकासन बैसलि एक नारि। अपन कान्ति सौँ जोति पसारि॥
ध्यानावस्थ योगिनी जानि। की थिक विषय कि बुझ अनुमानि॥
भक्ति भीति सौँ कयल प्रणाम। के अहाँ थिकहुँ कहू निज नाम॥
त्यागि समाधि सुबुद्धि विचारि। सभकाँ देखल पलक उघारि॥
देखितहि कहल दिव्य अवतारि। आश्रम करु जनु हमर उजारि॥
कहँसौँ ककर पठावल दूत। लोचन – गोचर वीर बहूत॥
शुनि कहलनि उत्तर हनुमान। पुरी अयोध्याधिप श्रीमान॥
दशरथ नृपक जेठ सुत राम। शुनितहि होयब हुनकर नाम॥
पिता – वचन वन नारि-समेत। अयला सानुज सत्य – निकेत॥
रावण हरलक तनिकर नारि। किछु दिन बितलय होएत मारि॥
सुग्रीवक सँग मैत्री बेश। सभ चललहुँ सीताक उदेश॥
धन्यतमा अपनेँ केँ जानि। आश्रम अयलहुँ पीबय पानि॥
के अपनैँ देवि कारण कोन। कहू तखन बरु साधब मौन॥
कहल यथेच्छित फल भल खाउ। कहब स्वस्थ जल पिबि पिबि आउ॥
फलाहारकैँ पिउलनि पानि। अयलहुँ सभ जन योगिनि जानि॥
सभ जन नम्र जोड़ि दुहु हाथ। देवि सत्य कहु करु जनु लाथ॥
विश्वकर्म्म काँ हेमा नाम। पुत्री जानथि उत्तम साम॥
नृत्य – तुष्ट शङ्कर वृषकेतु। ई पुर देलनि हेमा हेतु॥
दश अयुतायुत बसयित भेलि। तदुपरि ब्रह्मपुरी चलि गेलि॥
चलयित हमरा से सन्मानि। विष्णु-भक्ति-रति सहचरि जानि॥
कहलनि सखि तप करु यहिठाम। लाभ तपस्या – फल परिणाम॥
त्रेतायुग रामक अवतार। हरता से प्रभु पृथिवी – भार॥
सीतान्वेषक वानर जखन। देखब पूर्ण मनोरथ तखन॥
योगि-गम्य श्रीविष्णुक गेह। जायब अयि सखि निस्सन्देह॥
एकसरि रहलहुँ सखि – उपदेश। अपनहुँ अयलहुँ कयलहुँ बेश॥
स्वयम्प्रभा थिक हमरो नाम। देखब जाय आइ श्रीराम॥
मुद्रित करु कपि सभ जन आँखि। तप-बल हम देब बाहर राखि॥
यहि गत सभ जन से वन देख। हेमा-कर्म्म अलौकिक लेख॥
से पहुँचलि सानुज जत राम। भक्ति प्रदक्षिण कयल प्रणाम॥
।मौक्तिकछन्दः।
हरे रघुनन्दन सानुज राम, विभा कमनीयतनी जितकाम।
अनन्यवदान्यतयावितभक्त, स्वयन्न जगत्स्वरनुरक्तविरक्त॥
।दोहा।
भक्ति-योग-लाभैँ बसलि, बदरीवन तप लागि।
गेलि दिव्य गति योगिनी, अन्त देह परित्यागि॥
।इति।
हरिः हरः!!