Search

कुलदेवी/ देवता केर पूजा आराधना से शांति आ सुखमय जीवन बितैत छै

लेख विचार
प्रेषित: रिंकू झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय:- दैनिक पूजा सँ वंचित कुल देवी/ देवता। एकर उपाय आ दुष्परिणाम

हिंदू संस्कृति मे कुलदेवी/कुलदेवता के पूजाक विषेश महत्त्व होईत अछि।हिनकर पूजा प्राचीन समय स चली आबि रहल प्रथा मे स एक अछि।ऐहन मान्यता अछि कि कुलदेवी/कुलदेवता वंश के संरक्षक होईत छैथ। पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार के मार्गदर्शन आर सुरक्षा करय छैथ। ज्योतिष शास्त्र आर आध्यात्म शीक्षा मे गहन रूप स रचल -बसल ई प्रथा दैवीय शक्ति के प्रति विषेश श्रद्धा के दर्शावय छै। ई मनुष्य के आस्था स जुरल अछि।हिनकर पूजा नियमित केला स घर -परिवार में सुख -समृद्धी बनल रहैत अछि। कोनो भी सुभ काज स पहिले हिनकर आराधना विषेश आवश्यक मानल जाइत अछि।वियाह,दुरागमन,उपनयण,मुड़न आदि कोनो भी काज मे पहिले हुनके आमंत्रित केल जाईत छऐन्ह। विषेश क मिथिला मे बहुत विधी -विधान स हिनकर पूजा नियमित होईत छनि। आतैर -पातैर परय छैन्ह,छागर देल जाय छनि। महिला लोकनि बिना चिनबार निपने अन्न ग्रहण नय करय छैथ।कहल जाईत अछि जे कुलदेवी/कुलदेवता के पूजा मे त्रृटी भेला स घर -परिवार पर बहुत तरहक वाधा -विपैत आबि जाई छै, ई बात तुरंत नहि बुझय मे आबय छय धैर समय के संग -संग एकर प्रभाव असर करय छै। कुलदेवी या कुलदेवता के रुष्ट भेला स बाहरी कोनो भी देवी-देवता अहि प्रकोप स नहीं बचा सकय छैथ,ईहे ओ माध्यम छैथ जे हमरा -आँहाक पूजा सीधा देव -पितर तक पहुंचाबय छैथ । आर बाहरी शत्रु स सदैव रक्षा करय छैथ। जेना घरक मुखिया यानी माता -पिता या बर -वुजुर्ग अगर घरक सदस्य स नराज भय जाई छथिन त पड़ोसी हुनकर निक -बेजाए सोचय लेल नहि आबि सकय छैथ। एक टा कथन छै जे अप्पन, अपने होई छै आर पर ,परे रहय छै,तहिना ईष्ट देव के नराज भेला स सब खत्म।
आधुनिक युग भौतिक युग छै। मनुष्य अपन ईच्छापुर्ती के लेल, नाना तरहक सुख -सुविधा के भावना स देश -विदेश मे जीविकोपार्जन लेल रहय लगला  । तें बर -वुजुर्ग सब सेहो बुढ़ापा स मजबूर भय अपना-अपना बाल -बच्चा लग रहय लेल बेबस छैथ,गाम -घर छोड़ी देला। बहुत कम लोक भेटता जे अपन पारंपरिक प्रथा के निभा रहल छैथ, वरना त सबहक घर पर ताला लटकल भेटत । भगवती उपासे परल रहय छैथ,कारण आब पैसो दक’ लोक बहुत कम भेटय छै नहीं के बराबर। बहुत परिवार मे धीया -पूता कुलदेवी/कुलदेवता के बिषय मे बुझितो नहीं छथिन। किछु जानय त छैथ धैर एतेक श्रद्धा नहीं रहय छैन । हुनका ई सब आडंबर लागय छैन। किछु विज्ञान के तर्क दके ई सब व्यर्थ के ताम -झाम बुझय छथिन।वेद -पुराण, मंत्रोच्चार, आदि सब समय के संग विलुप्त भ रहल अछी। किछु लोक जतय रहय छैथ ओतैह अपना ईष्ट देव के लेल उदिष्ट पूजा करय छैथ। ईष्ट देवता के शक्ति के प्रभाव आबक लोक बुझबे नहीं करय छथिन, हुनके सबहक अवहेलना के कारण आई मनुष्य सब किछु रहितो ऐतेक दुखी रहय छैथ। परिवार आर समाज में कलह,कलेश आर नाना तरहक रोग ,वियाधी पसरल अछि।कहय छै जे आंखि मुनला स राईत नहीं भ जाई छै।वर -वुजुर्ग परंपरा स जे करैत ऐलखिन अछि ओकर पाछु किछु त तथ्य छै।

समस्त सम्माननीय समाज स हमर ई निवेदन अछि ,कि अपने सब भले जतय रही अपना देवी/देवता के मनावैत रही।समय -समय पर गाम -घर जाई हुनकर आराधना करी, हुनका निमीत पूजा करी। हुनका स क्षमा याचना करी। ताकि हुनकर सबहक कृपा सदैव हमरा -आंहा पर बनल रहय।

Related Articles