घरबैया क’ जान जाय, खबैया क’ स्वादे नहि
मैथिली भाषा प्राचीनतम् भाषा मे सँ एक अछि। आधुनिक समय एकरा भाषा रूप मे मान्यता दिएबाक लेल बड़ा भारी बौद्धिक संघर्ष करैत भाषाक प्रत्येक मानदंड पर मैथिली केँ ठाढ़ करैत लम्बा संघर्ष उपरान्त बोली सँ भाषा रूप मे स्थापित कयल गेल। जे सब एहि संघर्ष मे भाग लेलनि, ओहेन महान् वेत्ता-विद्वान् ओ भाषाविद् मिथिला सँ भारत, नेपाल, जर्मनी, बेलायत, आयरलैन्ड, फ्रान्स व अमेरिका धरिक अनेकों कथा-गाथाक सृजक केँ हम मैथिलीभाषी बेर-बेर प्रणाम करैत छी। परञ्च दुइ-चारि गोट कुचक्री-कुटिचाइल वला लोक केँ एखनहुँ मैथिली निजभाषा आ पहिचानक मूल आधार रूप मे अपच्य भ’ रहल छन्हि, ओ सब एकरा आइयो खण्डित करबाक कुचक्र-कुटिलता करैत देखाइत छथि। मुदा ई सब कहियो केहनो कुचक्र करथि, मैथिली हिनका सभक वश सँ बाहर छल आ सदैव रहत।
रावणक अपहृता सीता भेलीह। मुदा सीता पवित्रताक सब मापदंड पर पाक-साफ देखेबे कयलीह। कुचक्री सभक कलंक सँ मर्यादाक रक्षा करैत सीतापति राजा रामचंद्र बेर-बेर सीता सँ परीक्षा लेल कहैत रहलाह, सीता अग्नि मे प्रवेश कयलीह, निर्वासनक दण्ड स्वीकार कयलीह, आखिर मे एहेन प्रमाण दय देलीह जे आजीवन अपन सच्चरित्रक कारण राम सँ पहिने सीताक नाम लय लेल समस्त मानवलोक केँ बाध्य कय देलीह। आइ लोक पवित्र नाम जप करैत अछि त ‘सीताराम-सीताराम’ जपैत अछि। ठीक तहिना कतेको रावण मैथिली भाषाक अपहरण लेल व्याकुल रहैछ, कहियो-कहियो ‘मधेशी भाषा’ आदिक नया आवरण पहिराकय मैथिली केँ अपहरण करबाक प्रयास सदनहु केर पटल धरि होइछ मुदा तेकर भर्त्सना आ निन्दा छोड़ि कतहु कियो मान-सम्मान नहि दैछ।
आइ जे शीर्षक राखल अछि तेकर पाछाँ यथेष्ट कारण अछि। एहि २६ आ २७ जून २०२४ क्रमशः मंगल ओ बुध दिन जनकपुरधाम मे पहिल बेर मैथिली भाषाक संरक्षण-संवर्धन-प्रवर्धन हेतु फिल्म जेहेन महत्वपूर्ण विधाक अन्तर्राष्ट्रीय फेस्टिवल आयोजित भेल। आर, जेना कि सब दिने होइत रहल, तेना फेर सँ गोटेक लोक ‘नेपोटिज्म’ आदिक मिथ्यारोप आ कलंक-उल्हन देनाय शुरू कय देलक। आयोजकक पीड़ा आ संघर्षक कथा बुझबाक प्रयत्न कियो करत तेहेन सद्भावनाक बदला ईहो टन्ना-दुक्खा आयोजक आगू नहि आबय आ मैथिली धीरे-धीरे दम तोड़ि दियए, एहेन दुरेच्छा रखनिहार लोक सब जनकपुर मे सम्पन्न दुइ दिवसीय आयोजन “मैथिली अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल” पर नेपोटिज्म (भाइ-भतीजावाद आ नातावाद आदिक) मिथ्यारोप लगेनाय शुरू कय देलक।
आयोजक संस्था ‘लोकसंचार’ (जनकपुर) आ एकर मुख्य परिकल्पक रमेश रंजन झाक दूरगामी सोच सँ एहि आयोजनक बियाबाउग कतेक साल पहिनहि भेल छल, फेर एहि तरहक आयोजनक रूपरेखा आ सहभागी लोकनिक नाम-सूची, कोन-कोन फिल्म आ केना-केना प्रदर्शन लेल आबि सकत, आयोजन लेल उपयुक्त स्थान कोन होयत, दूर-दूर सँ सहभागी लोक अओता त हुनकर यात्रा खर्च सँ लय कय रहबाक-खेबाक आ उचित आतिथ्य प्राप्त करबाक लेल कि सब करय पड़त, कतेक खर्चा लागत, कार्यकर्ता (स्वयंसेवी) के-सब रहता, कोष व्यवस्थापन कतय आ कोन-कोन स्रोत सँ कय सकब – अनेकों पक्ष पर आयोजक केँ कतेक भारी कीमत चुकबय पड़ैत छैक से कम्मे लोक मनन कय पबैत अछि; धरि प्रस्तुति (आयोजन) सम्पन्न भेलाक बाद कतेको पंचकौड़ीलाल-छकौड़ीलाल सब समीक्षा आ सर्टिफिकेट बांटय लेल सोशल मीडिया पर हगैत-मुतैत देखा जाइत अछि। हरेक सफल आयोजन मे एहि तरहक दुर्गन्ध पसारनिहार मैथिलीक शत्रु सब निश्चिते टा सह-सह करैत लेंगड़ी पिलुआ जेकाँ अपन सर्वकालिक निवासस्थान ‘लैट्रिन हाउज’ सँ बाहर निकलल अबस्था मे देखाइते टा अछि।
तखन, याद यैह टा राखू जे सदावर्त संसार मे ई कुटिल-कुकुरमुत्ताक संख्या कम आ नगण्य होइछ, सीजन मे मात्र देखायल करैछ। हम मैथिलीभाषी समाज अपन भाषा-संस्कृति लेल आइयो स्वयंसेवाक भावना सँ केहनो संघर्ष कय केँ अपन भाषा-संस्कृति केँ बचेबाक काज करिते रहलहुँ, करिते रहब। सार्थक सोचक लोक केर संख्य अधिक अछि आ तेँ हम सब सनातनजीवी सेहो छी। युगों-युगों सँ जिबैत रहल अछि हमर सभ्यता। ई कुकुरमुत्ता सभक कारण नहि, अपितु अनेकों सर्जक जनक सभक कारण। कहबी छैक न, घरबैयाक जान जाय आ खबैया केँ स्वादे नहि….! ई आयोजन पहिल बेर किनको अदम्य हिम्मत-साहस सँ मात्र सम्भव भेल अछि। निश्चित सहयोगी हाथ केर सहयोग भविष्य मे प्राप्त होयत, एखनहुँ अनेकों सहयोगी लोकक संग देले सँ ई वृहत् स्तरक कार्य पूरा कयल गेल अछि। तेँ प्रदूषण पसारनिहार सँ आमजन सावधान रहि अपन पहिचान केँ आगू बढ़बैत रही हमर यैह कामना-शुभकामना अछि।
हरिः हरः!!