अतिथि केर आगमन माने देवताक आगमन

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लेख विचार
प्रेषित: कीर्ति नारायण झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :  “मिथिलामे अतिथि सत्कारके महत्व आ विशेषता”

“मंगलमय दिन आजु हे पाहुन छथि आयल, धन्य धन्य जागल भाग हे, मन कमल खिलायल” मिथिलाक इ प्रसिद्ध स्वागत गीत पाहुन के विषय में सभ किछु कहि दैत अछि जे पाहुन के अयला सँ दिन मंगल होइत छैक, धन्य भाग्य जे ककरहु ओहिठाम पाहुन पहुँचैत छथिन्ह आ पाहुन के पहुँचला सँ मन रूपी कमल अछि ओ खिलि जाइत अछि… ओना मिथिला अतिथि सत्कार के लेल युग युगांतर सँ अत्यन्त नामी रहल अछि जकर सभ सँ पैघ प्रमाण जगत जननी जानकी के बिवाह में बरियाती बिवाहक बहुत दिनक बाद धरि मिथिला में रूकल छलाह आ मिथिलावासी के अतिथि सत्कार सँ प्रसन्न भऽ अवधपुरी के बरियाती सभ सौंसे प्रचार कऽ देने छलखिन्ह जे अतिथि देवो भवऽ के असली अर्थ मिथिला के लोक बुझैत अछि। वास्तव मे मिथिला मे पाहुन के बड्ड मान दान होइत छैक। पाहुन में सभ सँ अधिक प्रिय विष्णु तुल्य जमाय के मानल जाइत छैक आ तकर बाद समधि के। पाहुन के अयवा सँ पूर्व एक लोटा जल भरि कऽ पाहुन लेल दलान पर राखल रहैत छैक आ दलान पर पाहुन के अबिते पैएर धोअल जाउ घरबैया के मुंह सँ निकलैत छैक। दलान के चौकी पर विछाओनक ब्यवस्था आ खूब साफ चद्दरि ओहि पर ओछाओल प्रायः समस्त मिथिला बासी के दलान पर आम बात थिकै। भरल पानि के लोटा के संग संग अंगपोछा सेहो राखल रहैत छैक जाहि सँ पाहुनक भीजल पैएर के पोछल जाइत छैक। समस्त मिथिलाक लोक के अतिथि सत्कार के एहि दृश्य के देखि कहल जा सकैत अछि जे ओ पाहुन के भगवान सँ कम महत्व नहिं दैत छथिन्ह। पाहुन लेल मिथिलाक सचार संसार भरि मे प्रसिद्ध अछि। छप्पन भोग जेना भगवान के लगैत छैन्ह तहिना मिथिलानी सभ अपन पाहुन के लेल छप्पन भोग लगबैत छैथि आ हुनक एहि काज मे टोलक सभ स्त्रीगण मिलि जुलि कऽ हाथ बंटबैत छथिन्ह, एतबे नहिं अप्पन आंगन में जँ कोनो नीक तरकारी बनल रहैत छैक तऽ ओहो आनि कऽ पाहुन के सचार में लगा दैत छथिन्ह। अद्भुत आत्मीयता रहैत छैक ओहि काल पाहुनक सेवा सत्कार के लेल। टोलक पुरूष सभ सेहो पाहुन के भोजन के काल में उपस्थित भऽ पाहुन के भरि पेट भोजन करयवाक लेल प्रयासरत रहैत छैथि। एकटा मिथिला में कहावत छैक जे नीक भोजन वेएह करा सकैत अछि जे स्वयं नीक भोजन करैत होइथ आ मिथिला मे पूर्णरूपेण परिलक्षित होइत छैक। वास्तव में मनुख मनुखक ओहिठाम जाइत छैक आ पाहुन लक्ष्मी सवरूपा होइत छथिन्ह एहेन मान्यता छैक मिथिलाक लोक के जे मिथिलाक बाहर भेटनाइ असंभव अछि इ हमरा लोकनि अनुभव कयने छी ।