पुरी रथयात्रा पर विशेष प्रस्तुति
– विकास झा, भुवनेश्वर, उड़ीसा (मैथिली जिन्दाबाद!!)
अपन देशक प्रमुख पर्व यथा होली, दीवाली, दशहरा, रक्षा बंधन, ईद, क्रिसमस, वैशाखी आदि में पुरीक रथयात्रा सेहो अपन एक विशेष स्थान रखैत अछि। रथयात्रा एकटा एहन पर्व थिक जाहि में भगवान जगन्नाथ जनसमुहक मध्य अबैत छथि आ ओकर सुख दुःख में सहभागी बनैत छथि।”सब मनिसा मोर परजा” (सब मनुष्य हमर प्रजा अछि), इ हुनक उद्गार अछि ! भगवान जगन्नाथ पुरुषोत्तम छथि जिनका में श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध, महायान के शून्य आ अद्वैतक ब्रह्म समाहित छनि।
रथयात्रा में पारम्परिक सद्भाव, सांस्कृतिक एकता आ धार्मिक सहिष्णुताक अद्भूत समन्वय देखबा में सोझा अबैत अछि। अहि यात्राक आरम्भ राजा इंद्रद्युम्न द्वारा भेल से मान्यता अछि। ओना अनेको कथानक यात्राक सन्दर्भ में प्रचलित अछि मुदा ताहि में माता सुभद्रा के द्वारिका भ्रमणक इच्छा पूर्ण करबाक उद्देश्य सौं श्रीकृष्ण आ बलराम अलग रथ पर बैस हुनका भ्रमण करोलनि से विशेष प्रासंगिक मानल जाएत अछि।
नगर भ्रमणक अहि स्मृति में इ रथयात्रा पुरी में सब साल मनाउल जायत अछि। उत्कल प्रदेशक सबसौं पैघ इ पर्व सम्पूर्ण भारतवर्ष केर लगभग सब नगर में श्रद्धा और प्रेमक संग मनौल जायत अछि। रथयात्राके अहि महोत्सव में जे सांस्कृतिक आ पौराणिक दृश्य अभरैत अछि से प्राय: सम्पूर्ण देशवासी केर सौहार्द्र, भाई-चारा आ एकता के परिलक्षित करैत अछि। जाहि श्रद्धा और भक्तिक संग पुरी के मंदिर में सब लोक संगे बैस एके संग श्री जगन्नाथ जी केर महाप्रसाद ग्रहण करैत छथि ताहि सौं वसुधैव कुटुंबकम केर महत्व स्वत: परिलक्षित होयत अछि।
10 दिन धरि मनौल जाय वाला अहि महापर्वक आरम्भ प्रत्येक वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीयाक दिन होयत अछि। इ यात्रा मुख्य मंदिर सौं आरम्भ भऽ 2 किलोमीटरक दुरी पर अवस्थित गुंडिचा मंदिर पर समाप्त भ जायत अछि। अहि ठाम भगवान जगन्नाथ सात दिन धरि विश्राम करैत छथि आ आषाढ़ शुक्ल दशमी केँ पुनः घूरती यात्रा होयत अछि जे पुनः मुख्य मंदिर पहुँचैत अछि। अहि यात्रा केँ बहुड़ा यात्रा केर नाम सौं जानल जायत अछि। यात्राक संपूर्ण दूरी रथ केँ रस्सी सौं खींचैत पूरा कायल जायत अछि जाहि में देश विदेशक लाखों भक्त सम्मलित होयत छथि।
अहि यात्राक विशेष धार्मिक मान्यता अछि जे अहि रथयात्रा के मात्र रथ के शिखर दर्शन केला सौं लोक जन्म-मरण के बंधन सँ मुक्त भ जायत अछि। स्कन्दपुराण में अहि साक्षक वर्णन अछि जे आषाढ़ मास में पुरी तीर्थ में स्नान केला सौं सब तीर्थक दर्शन करवाक पूण्य प्राप्त भ जायत अछि।
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा- तीनू केर रथ नारियलक लकड़ी सौं बनाउल जायत अछि आ ताहि पर विराजमान मूर्ति केर निर्माण नीमक लकड़ी सौं कायल जायत अछि। भगवान् जगन्नाथ केर रथक रंग लाल आ पियर रहैत अछि आ अहि रथक आकार अन्य रथ सौं पैघ होयत अछि। इ रथ अहि यात्रा में बलभद्र आ सुभद्राक रथ केर पाछु रहैत अछि।
भगवान जगन्नाथक अहि रथ केर अनेक नाम कहल जायत अछि यथा गरुड़ध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष आदि। एहि रथ केर घोराक नाम शंख, बलाहक, श्वेत एवं हरिदाश्व कहल जाइत अछि जकर रंग श्वेत रहैत अछि। अहि रथक सारथि केर नाम दारुक होयत अछि आ अहि रथ केर रक्षक भगवान विष्णु केर वाहन पक्षीराज गरुड़ छथि। रथ केर ध्वजा यानि झंडा केँ त्रिलोक्यवाहिनी कहल जायत अछि। रथ केर जाहि रस्सा सौं घींचल जायत अछि ओकरा शंखचूड़ कहल जायत अछि। अहि में 16 टा पहिया रहैत अछि आ एकर ऊंचाई साढ़े 13 मीटर रहैत अछि जाहि में तक़रीबन 1100 मीटर कपड़ा रथ केर झापनक रूप में प्रयोग कायल जायत अछि।
बलरामजी केर रथक नाम तालध्वज अछि आ रथ केर रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होइत छथि। रथ केर ध्वज केँ उनानी कहल जायत अछि आ त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा व स्वर्णनावा एकर अश्व अछि। इ 13.2 मीटर ऊँच आ अहि में 14 टा पहिया रहैत अछि। सुभद्राक रथ केर नाम देवदलन अछि आ अहि रथ केर रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होयत छथि। अहि रथ केर ध्वज केँ नदंबिक कहल जायत अछि। रोचिक, मोचिक, जिता व अपराजिता एकर अश्व केर नाम थीक। एकरा खींचयवाली रस्सी केँ स्वर्णचुड़ा कहल जाइत अछि।
कथा पुराणक धार्मिक मान्यताक अनुसार अहि यात्रा में मानवक देह रथ आ अहि रथक सारथि भगवान् केँ कहल गेल छनि जे शरीर केँ भगसागर सौं पार करबाक लेल अहि रथ पर निवास करैत छथि। रथ यात्राक समय में भगवान् श्री मंदिर सौं बहराइत छथि आ हिनक स्वरुप केर दर्शन जनसमुदाय करैत अछि। अहि वर्षक रथ यात्रा अपना रुपे विशेष महत्व रखैत अछि किएक त प्रत्येक 19 वर्षक बाद नव प्रतिमाक निर्माण नीमक लकड़ी सौं बिना कोनो धातुक प्रयोग केने होयत अछि जेकरा ‘नवकलेबरक’ नाम सौं जानल जायत अछि।