लेख
लेखनी के धार
प्रेषित : रिंकू झा
विषय -गर्मी के छुट्टी में पहिले आर अखन के समय में परिवर्तन।
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गर्मी छुट्टी के नाम सुनीते बच्चा सब के खुशी के ठीकाना नहीं रही जाई छै।अभीभावक सब सेहो अपना -अपना बचपन के याद में विचरण करय लागय छैथ।हेतय कोना नहीं छुट्टी मतलब पढ़ाई-लिखाई सब बंद,।ने भोरे उठब,ने जल्दी सुतब,ने खेलय में कंजूसी आर होमवर्क के चिंते नहीं।बस घुमनाई -फिरनाई आर मौज -मस्ती, ओहो लम्बा समय के लेल ,। ओना आब के समय में छुट्टी मनाबय के ओ आंनद नहीं रही गेल छै।कारण आब छुट्टी भेला के बादो बहुत रास प्रोजेक्ट वर्क आर होमवर्क सब भेटय छै स्कूल स बच्चा सब के।अहु स नहीं होई छै त समर कैंप लाईग जाई छै जगह-जगह पर जाहि मे ना,ना तरहक कसरत, गेम्स आर कला स आधारित कार्य सब कराओल जाईत छै बच्चा सब स।छुट्टी के बादो बच्चा सब व्यस्त जिनगी जीबय छैथ। प्रतियोगिता के होड़ छै लगले रहय परतै। ओहि स जे किछु समय बचय छै ओहि मे बच्चा समेत अभिभावक सेहो पहिले स फ्लाईट आर होटल के बुंकीग करा लै छैथ दु,चारि दिनका कतौह हिल स्टेशन के। जाहि मे हजारो के खर्च,धैर ओ जरुरी रहय छै कारण दिखावा के जुग छै।शोसल मिडिया पर सब देखय छै के कतय छुट्टी गमेलैथ। स्टेटस के बात बनी जाई छै बच्चो के लेल । आबक बच्चा सब गाम -घर के नाम सुनीते नाक सिकोड़य लागय छै।कारण बच्चा सब गाम -घरक लोक स अपरिचित रहय छैथ।एकल परिवार में रही संयुक्त परिवारक स्नेह आर बर -बुजुर्ग वा गाम -घर के जिनगी स ओ लगाव नहीं रहय छैन्ह।
हमरा सब के मोन अछि जे छुट्टी के पहिले स तैयारी करय लागय छलहूं गाम जाई के। टिकट के बुंकीग ट्रेन के नजारा अलगे मजा आबय ।गाम -घर जतय अजस्र जगह भेटय छल तितली जंका उड़य लेल।जतय ढाकी भैर -भैर क स्नेह आर दुलार भेटय छल बर -बुजुर्ग सब स। धार ,पोखैर में घंटों चुभैक क नहाई छलहूं। ।आमक गाछी में लागल मचान पर बैसब, जामून बिछीं क आनब अलगे मजा छलय ओहि बचपन के।कांचे आम तोड़ी क भक्खा बना खुब खयतहुं ।दलान पर लागल लीच्ची आर कटहर खाक अघा जाई छलहूं।आमक रस आर आमक चटनी दादी,नानी के हाथक बनाओल खुब खाई छलहूं।भैर दिन खुब खेलाई छलहूं भाई , बहिन सब संगे कितकित आर गोटरस, कबड्डी, आदि।गामक कात में पाखैर गाछ के छाहैर तर बैसल ओ आंनद आबय छल ठंढा के जे एसी,कुलर फेल।चापाकल स पाईन भरय में जे आंनद आबय छल पुछु नहीं।खुब क घी,दुध , दही आर तरबूज,खीड़ा आर ककड़ी खाय छलहूं तोड़ी क खेत स। दादाजी जखन पोखैर स माछ मरबाबय छलखीन ओह बरका -बरका रौह आर भाकुर ओकर स्वादे अलग रहय छलय शहर में कतय भेटत ओ स्वाद।सांझ परैत देरी सब गोटे धिया -पुता सब मिली क दादी स खिस्सा -पेहानी सुनय छलहूं दादी के चारु काते घेरी क।सुतय काल में लडाई होई छल हम सुतब दादी लग त हम। दादी भैर माथ तेल चोपकाईर क केश में राईख दै छलैथ।अचार ऐतेक बनय छलय जे पुछू नहीं खाईतो छलहूं आर साल भैर लेल लक आबय छलहूं। दादी आर नानी स पैसा मांगी क बर्फ किनी खुब खयतहू।गर्मी बेशी रहय छलय त आंगन में मच्छरदानी लगाक सुतय छलहूं आर भैर राती तरेगन गानय छलहूं भाई, बहिन संगे।कारण तखन गाम मे खपरा बला घर रहय दादी मां के।खुब आंनद आबय छल पुरा छुट्टी में संगे, संग बहुत रास लुईर, ब्यबहार,सेहो सिख लय छलहूं।आब गाम -घर में सुविधा रहितो समय के अभाव बुझी वा मजबुरी गाम -घर में रहले ने होई छै।
हमरा हिसाबे समय के संग चलब कोनो गलत बात नहीं छै धैर ,अभीभावक सब स आग्रह अछि जे छुट्टी में कनियो समय निकाली क बच्चा सब के अपना गाम -घरक पुरनका मकान में जरुर ल जाईथ।आर अपना लोक -वेद ,सर समाज, स परिचित कराबी ,ताकि बच्चा अपना जड़, जमीन स जुरल रहय।