मैथिली केँ नहि बन्हियौ आशा उषा आ निशा के दुपट्टा मे

फेसबुक पर मैथिली साहित्यकार केर एहि उक्ति पर ध्यान दियौक (संलग्न तस्वीर फेसबुक पोस्ट के स्क्रीन शौट पर देखू) –

अपने थिकहुँ मैथिली भाषा-साहित्य प्रति सब दिन सक्रिय चिन्तन करनिहार आ यथायोग्य सृजनकर्म कयनिहार स्रष्टा लक्ष्मण झा सागर – हमर आदरणीय आ सम्माननीय श्रेष्ठ अग्रज। प्रणाम निवेदन संग किछु आर बात कहय चाहब –

१. साहित्यिक काज पर सेन्सरशिप के जरूरत कथी लेल?

२. मैथिलीक स्थापित साहित्यकार मध्य कतेक साहित्यकारक साहित्य मिथिला समाज या मैथिलीभाषी समुदायक जनमानस मे स्थापित भ’ सकल अछि?

३. वर्तमान समय मैथिली भाषा-साहित्य प्रति अपनत्वक बढ़ोत्तरी आ सृजनक काज मे सौ-गुना बढ़ोत्तरी अपने सब जेहेन तथाकथित स्थापित साहित्यकार सभक लेल राहड़ि दालिक कंकड़ कियैक बनि रहल अछि?

४. लेखनक मंच सामाजिक संजाल, ताहि ठाम सँ बढ़िकय पहुँचि रहल प्रकाशित पोथीक संसार मे, सब लेखक अपना तरहें आ अपन संसाधन सँ अपन मातृभाषा मैथिली प्रति सृजनकार्य मे लागल छथि…. तखन फेर हुनकर सृजन पर बेतुका सवाल आ हतोत्साहित करयवला मानसिकता कियैक?

५. मैथिली भाषा-साहित्य केँ संकुचित करबाक आरोप बड़-बुजुर्ग साहित्यकार पर त नहि, लेकिन सेटिंगबाज आ गुटबाजी करयवला साहित्यकार सब पर जरूर अछि। त कि फेर सँ सेन्सरशिप के जरिये नव गुटबाजी पर जाय चाहैत छी? लोकतांत्रिक खुल्लापन आ सभक पाठक आधारित विश्लेषणक सामर्थ्य खत्म भ’ गेल अछि की?

एखन पाँचे टा सवाल!!

देखि रहल छी कतेको दिन सँ जे किछु तथाकथित साहित्यकार अपन समझ केँ सर्वोपरि मानि अनावश्यक आलोचना करैत ‘गुणस्तर प्रमाणपत्र’ जारी कय रहल छथि। आब जमाना से नहि छैक। अपन भाषा सँ सब केँ प्रेम छैक आ सब कियो अपना योग्यता सँ यथासम्भव नीके स्तरक साहित्य सृजन करैत अपन भाषाभाषी बीच अपना हिसाब सँ पाठक वर्ग निर्माण करैत अछि। यैह काज पहिनहुँ करबाक छल। मुदा किछु पुरस्कार, किछु प्रकाशन आ किछु आम-चर्चाक पटल द्वारा केकरो लेल स्वीकार्यता, केकरो लेल अस्वीकार्यता – ताहि सँ उपर ‘बारबाक आ उपेक्षित रखबाक’ गलत कार्य सब बहुते कयल जाइत रहल अछि।

हमरा मोन पड़ैत अछि मिथिला राज्य निर्माण सेनाक १ जून सँ १० जून धरिक कुल ९ जिलाक मिथिला राज्य निर्माण यात्रा – १ (जनजागरण रथायात्राक) २ जून २०१३ केर शिवहर जिला मुख्यालयक ओ जनसभा – जाहि मे अवकाशप्राप्त एक प्रधानाध्यापक शिवहरनिवासी शिक्षक हमरा सभक मांग प्रति असन्तोष केवल एहि लेल रखने रहथि जे हुनका दरभंगा जिला मुख्यालय (हुनक कर्मक्षेत्र) मे आयोजित विभिन्न कवि-गोष्ठी सब मे बज्जिका शैलीक मैथिली काव्य प्रति अस्वीकार्यता आ उपेक्षा भोगय पड़ल छलन्हि। जरूरी नहि जे सभक मैथिली वएह स्तरक हो जे दरभंगा-मधुबनी मे चलैत अछि। मैथिलीक्षेत्र बड पैघ छैक। एकर विविध बोली-शैली सब छैक। भारतीय भाषिक सर्वेक्षणक तथ्यांक १९०३ सँ १९२८ धरिक अनेकों खण्ड मे डा. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सनक कृति सब मे बाकायदा ७ गोट भाषिकाक चर्चा आयल अछि। मुदा, हमर चुनौती अछि – देखाउ जे मैथिली साहित्यक विगत १०० वर्षक इतिहास मे कय गोट भाषिकाक पोथी प्रकाशित भेल, कय गोट साहित्यकार पुरस्कृत भेलाह, केना दायरा बढायल गेल अथवा केना घटायल गेल…. चर्चा करू। अपनहि मोने मियाँ मुंह मिठ्ठू – ई प्रवृत्तिक त्याग कय निरपेक्ष सृजनकर्म पर ध्यान देल जाउ। सेन्सरशिप केर मानसिकता सँ उपर उठू। खुल्ला लोकतंत्र आ लोकतांत्रिक मूल्य-मान्यता पर चलय जाउ। मैथिली भाषाक आर बेसी हानि नहि करियौक।

हरिः हरः!!