ज्ञानप्राप्तिक सर्वोत्कृष्ट मार्गः आत्मचिन्तन

ज्ञानप्राप्तिक सर्वोत्कृष्ट मार्ग – आत्मचिन्तन

ब्रह्माण्ड रचयिता द्वारा पृथ्वीक रचना आ ताहि पर जीव रचना व प्रकृति परिकल्पनाक अद्भुत स्वरूप सँ भला के नहि परिचित होयब! अपन रचना पर निरन्तर चिन्तन सेहो करिते होयब। मायक कोखि सँ जन्म भेल, फल्लाँ हमर पिता भेलाह, फल्लाँ-फल्लाँ हमर सर-कुटुम्ब-परिजन-पुरजन भेलाह, आदि। ई सोचनाइये बहुत पैघ चिन्तन भेलय। आत्मचिन्तन द्वारा स्वयं केँ चिन्हबाक कोशिश भेलय ई। जखन ई चिन्तन गहींर-गहींर आ आरो गहींर होइत चलि जायत त अहाँ स्वतः परमात्मारूपी परमपिता धरि पहुँच बनइये टा लेब। अरे! मोने मे त चिन्तन करबाक छैक, चित्त मे ध्यान धरैत अपन रूप-स्वरूप, गुण-प्रकृति, कर्म-कर्तव्य आदि पर चिन्तन करैत रहबाक छैक। से नित्य करबाक छैक। अनेकों साधनक उपयोग-प्रयोग करैत यैह चिन्तन करैत-करैत लोक ‘ज्ञानी’ बनि जाइत अछि। जखन ज्ञान प्राप्त भ’ जाइत छैक त ओ ‘बुद्ध’ कहाय लगैछ। ओ मुक्तजीव ‘जनक’ बनि जाइछ। ओ परमभक्त प्रह्लाद आ ध्रुव समान भ’ जाइछ। ओ धनञ्जय अर्जुन समान सर्वप्रिय शिष्य बनि जाइछ। बस, एहि आत्मचिन्तनक सहारे लोक भवसागर सँ पार उतरि गेल करैछ।

अर्जुन केँ सेहो बड़ा भारी विस्मय भेलनि। एतेक मान-अपमान आ जीवनक संघर्ष सब सँ अनुभव प्राप्त कय लेने वीर धनुर्धर ऐन मौका पर अकर्तव्यता दिश उन्मुख भ’ गेलाह। युद्धकर्म हुनक वर्णधर्म (जन्मजात क्षत्रिय वर्णधर्मीक मूलकर्म) सँ ओ विमुख होबय लगलाह। अचानक ब्राह्मणकर्म पर उतारू होइत विरक्ति-वैराग्य आदिक शास्त्रीय वचन सब मोन पाड़ैत जनार्दन श्रीकृष्ण समक्ष गाण्डीव पटकि देलनि। श्रीकृष्ण हुनकर एहि मनोदशा सँ बखूबी परिचित होइतो हुनकर ओझरायल समझ (उलझन) केँ बहुत उचित ढंग सँ सोझरेलनि। तेँ हमरा सभक वास्ते गीता समान उपनिषद् उपलब्ध भेल अछि। गीताक कोनो अध्याय मे अहाँ जाउ, देखब जे भ्रमित मस्तिष्क केँ समुचित प्रकाश देबाक काज अद्भुत तरीका सँ जगताधार-जगद्गुरु श्रीकृष्ण कयलनि अछि। अत्यन्त वैज्ञानिक ढंग सँ, क्रमबद्ध रूप मे एक-एक टा जिज्ञासा केँ शान्त कयलनि अछि। एहि बीच उपदेश सेहो देलनि अछि। उपदेश मे वैह उपरोक्त ‘सर्वश्रेष्ठ आत्मचिन्तन आ परमपिता परमात्मा प्रति पूर्ण समर्पण’ केर बाट बतेलनि अछि। जे बुझि गेल से तरि गेल, जे अबूझ अछि वा रहत से अपने भोगत।

आब काल्हि हम चारिम् अध्याय पर आधारित अपन स्वाध्यायक सारांश राखब। लम्बा लेख होयत। जरूरी नहि जे सब पढ़बे करब। जे पढ़ब से स्वतः लाभ उठायब। बाकी लाभो के परिभाषा सभक अपने-अपने डिजाइनक होइछ। तेँ, हम बेसी कि कहू…! स्वयं जानू!!

हरिः हरः!!