सत्याग्रह व्यक्ति विरूद्ध नहि प्रवृत्ति विरूद्ध होइत छैक

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

सत्याग्रह व्यक्ति विरूद्ध नहि प्रवृत्ति विरूद्ध होइत छैक

भारत मे हालहि ९ जनवरी २०२४ केँ ‘प्रवासी दिवस’ मनायल गेल। ई ओ ऐतिहासिक तारीख थिक जहिया दक्षिण अफ्रीका सँ महात्मा गाँधी स्वदेश भारत वापस आयल छलाह। अपोलो बन्दरगाह, बम्बई (आब मुम्बई) पर भारतीय कांग्रेस के हजारों कार्यकर्ता हुनकर जोरदार स्वागत कएने छल। गाँधीजी बेलायत सँ वकालत करबाक डिग्री प्राप्त कय स्वदेश आबि गेल रहथि, ताहि समय गुजराती मूलक एकटा दादा अब्दूल्ला झाबेड़ी नामक दक्षिण अफ्रीका प्रवासी व्यापारीक कोनो कोर्ट-केस मे वकालत करबाक लेल भारत सँ द. अफ्रीका बजौने रहनि। ओतय डर्बन पहुँचलाक बाद कनिये दिन मे केस-मैटर देखबाक लेल प्रिटोरिया जाय लेल कहल गेलनि आ ट्रेन के फर्स्ट क्लास के टिकट होइतो हिनका श्वेत-अश्वेत बीच रंगभेदी-वर्णभेदी मतान्तर सँ मनान्तरक प्रत्यक्ष घटना स्वयं पर घटैत देखलनि, हिनका डिब्बा सँ बाहर फेकबा देल गेल छलनि। एतहि सँ शुरू भ’ गेल गाँधीजीक व्याकुलता आ कनिकबे दिन मे संगठित भ’ १८९४ मे ‘नेटल इंडियन कांग्रेस’ केर स्थापना कयलनि, दक्षिण अफ्रीका मे भारतीय लोकक मतदान अधिकार लेल संघर्ष आरम्भ कयलनि। एहि तरहें स्वदेशी भारतीय लोकक अधिकार सँ प्रवासक देश मे अपन ज्ञान व अनुभवक प्रयोग करैत काफी प्रताड़णा सेहो सहय पड़लनि, आर अपन निर्बलता व निरीहताक यथार्थ अनुभव करैत युक्तिपूर्वक स्वयं (भारतीय लोक) द्वारा कहियो हिन्सक संघर्ष नहि कय ‘सत्याग्रह’ केर माध्यम सँ अपन न्यायोचित मांग मनबाबय लगलाह। योरोपियन मूल केर श्वेतशासकवर्ग द्वारा कतबो हिन्सा (कोराक मारि अथवा अन्य तरहक शारीरिक चोट पहुँचेलाक) बादहु ई अपन संघर्ष ‘सत्याग्रह’ केर तर्ज मे कम नहि कयलनि।

अपन युवाकाल अर्थात् २४ वर्ष सँ ४५ वर्षक उमेर धरि गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका मे रहलाह। एहि महत्वपूर्ण २१ वर्षक संघर्षकाल मे हुनकर मन-मस्तिष्क मे एकटा गम्भीर सत्य सदिखन हुनकर अवचेतन मन केँ हिलाबैत रहलनि, से छलैक हुनकर अपन देश भारत मे ब्रिटिश सम्राज्यवादक हुकूमत आ स्वदेशी भारतीय जनताक पराधीन जीवन। अपन दक्षिण अफ्रीका प्रवास आ ओतय कयल दीर्घ संघर्ष सँ भारत मे हिनकर छवि एकटा ‘महात्मारूपी सर्वमान्य नेता’ केर बनि गेल छल। तेँ कहल जाइछ जे गेला ‘गाँधी’ बनिकय आ अयलाह ‘महात्मा’ बनिकय।

विचार करू – एकटा सम्भ्रान्त परिवारक अध्ययनशील बच्चा मोहनदास, बाल्यकालहि सँ सत्यहरिश्चन्द्र नाटक सँ प्रभावित-प्रेरित आ भारतीय दर्शन (Indian Philosophies) केर अनुवांशिक गुणधर्म ग्रहण कएने किशोर, बेलायत सँ बैरिस्ट्रीक पढ़ाई पूरा कय १८९३ ई. (२४ वर्षक उमेर मे) अफ्रीका गेलाह, फेर १८९६ मे वापस सेहो आबि गेलाह, परन्तु स्वदेशी भारतीय प्रवासी सब हिनका फेर सँ बजा लेलकनि १९९७ मे। एहि बेर संग मे कस्तुरबा (गाँधीजीक धर्मपत्नी) सेहो रहथिन। लेकिन गाँधीजी केँ जहाज सँ उतरय तक नहि देल गेल छलनि, ओ ३ सप्ताह धरि जहाजे मे क्वारन्टाइन्ड (एकान्तवास) जीवन बितेलनि, आ भारी विरोध-आन्दोलन उपरान्त तत्कालीन श्वेतशासी द्वारा जहाज सँ बाहय अयबाक समर्थन देलाक बाद, हिनकर सपत्नी बाहर अबिते हिनका उपर श्वेत युवा सब द्वारा हिन्सक आक्रमण करा देल गेल। गाँधीजी चोटिल भ’ गेलाह। मुदा यैह चोट हिनका ‘गुलाम लोक’क पीड़ा अन्तर्मन धरि ‘सत्याग्रह’ केर प्रकाश प्रदान कय देने रहनि। आर १९१५ ई. मे स्वदेश भारत ९ जनवरी केँ अयलाह। भव्य स्वागत कयल गेलनि। पूरा भारत मे तहिया हिनकर छवि एक सर्वसामर्थ्यवान् महात्मा नेताक बनि गेल छल, सब केँ ई विश्वास भ’ गेल छलैक जे यैह सन्त हमरा सब केँ अंग्रेजी हुकूमत सँ स्वतंत्रता दियाओत। आखिरकार १९४७ ई. १५ अगस्त भारत स्वतंत्र भ’ गेल। स्वाधीनता संग्राम के बहुत लम्बा इतिहास छैक, बहुत रास पक्ष छैक। एखन ओतेक विस्तार मे नहि जायब। ‘सत्याग्रह’ पर केन्द्रित रहब। नरम-दल आ गरम-दल – दुइ तरहक विचारधारा संयुक्त संघर्ष कयलक, ब्रिटिश शासकक दाँत खट्टा कय देलक…. दोसर बात जे द्वितीय विश्वयुद्ध उपरान्त ओनाहू ब्रिटिश हुकूमत आर्थिक रूप सँ कमजोर भ’ चुकल छल आ मोटामोटी कतेको देशक राज्य क्रमिक रूप सँ ओकरा सभक हाथ सँ एहि कालखंड मे चलि गेलैक। जे किछु भेलय, महात्मा गाँधी आ हुनक अहिंसाक सिद्धान्त आ सत्याग्रह लोकमानस मे स्थान बना लेलक। आइ धरि बनेनहिये अछि।

उपरोक्त समस्त यात्रा मे ‘सत्याग्रह’ केर आधार कोनो खास व्यक्ति या ओकर क्रूरता नहि भेटत, बल्कि एकटा एहेन प्रवृत्ति जाहि मे एक खास समुदायक वर्चस्व आ बाकी सभक उत्पीड़ा मात्र नजरि पड़त। दक्षिण अफ्रीका मे प्रवासी भारतीय संग घटित भेल दमन-शोषण जेहेन प्रवृत्तिक विरूद्ध महात्मा गाँधी संघर्ष कयलनि। लोक केँ संगठित कय केँ आखिरकार ‘साबरमतीक सन्त’ कहाइत जीवनक आखिरी समय पर्यन्त अपन अहिन्सा मार्ग पर बनल हिन्सक मार्ग पर चलनिहार प्रवृत्ति द्वारा मारल गेलाह। बहुते बात समीक्षा हम-अहाँ अपने करब, करिते छी। सही-गलत के दृष्टिकोण हमरा लोकनि अपन मानसिकता व वैचारिकताक आधार पर तय करैत छी। हमरा-अहाँक समाज मे गलत नजिर (निकृष्ट उदाहरण) बनय आ तेकरा कोनो लोभ अथवा भ्रम मे हम सब उनटा महिमामंडित करब त उच्छृंखलता-उद्दण्डता बढ़िते चलि जायत। तेँ गलत केँ गलत कहिकय ओकर शमन आवश्यक छैक। अस्तु! बाकी विवेचना पाठक पर छोड़ि रहल छी।

हरिः हरः!!