मैथिली फिल्म – सफलताक नया सूत्र भेटि गेल?
(तीरभूक्ति पत्रिका मे प्रकाशनार्थ)
– प्रवीण नारायण चौधरी
बहुल्यजन मे भाषिक चेतनाक प्रसार संगहि मैथिली फिल्म केर सफलताक नव इतिहास लिखाय लागत। ‘राजा सलहेश’ लोकदेवताक रूप मे पूज्य छथि। लगभग-लगभग प्रत्येक गाम मे राजा सलहेश प्रति आस्था रखनिहार बहुजन समाज भेटिये टा जायत। वोटबैंक केर राजनीति भले मिथिला वा अन्यत्र लोक केँ जाति-धर्म मे विभाजित कय देने होइक, परञ्च लोकक लौकिकता जे अदौकाल सँ लोक केँ आपस मे जोड़िकय रखने अछि से मौलिक रूप सँ थोड़ेक भिन्न लेकिन एखन धरि जिबैत अछि। आर यैह बात मिथिलाक सनातन सभ्यताक रूप सेहो तय करैत अछि।
हालहि मैथिली फिल्म ‘राजा सलहेश’ केर प्रदर्शन आरम्भ होइते लोकसमर्थनक अम्बार लागि गेल देखि रहल छी। सोशल मीडियाक विभिन्न मंचपर सब एक-दोसर केँ जानकारी करबैत लोकप्रचार कय रहल देखाइत अछि। जमीन पर रहनिहार आम जनसमुदाय मे लोकदेवता रूप मे जानल गेनिहार ‘राजा सलहेश’ एतबे आकर्षित कयलक जे सब कियो ढोल-नगाड़ा पीटिकय राजाजीक अयबाक सूचना दय रहल देखाइत छथि। ई बड पैघ जागृतिक प्रसार कय रहल अछि आ एहि सँ नया उम्मीद आ भरोस केर जन्म भेल प्रतीत होइछ। आमजन मे उत्साह उमड़ल देखल जा रहल अछि, मानू ओकर हाथ कोनो खजाना भेटि गेल होइ। चिरप्रतिक्षीत वस्तुक प्राप्ति सँ जेना उत्साह बढ़ि गेल करैछ, ठीक तहिना चारूकात नव ऊर्जाक संचरण मैथिली भाषाक एकटा लोकसरोकार सँ जुड़ल सिनेमा कय रहल अछि।
बहुते दिन सँ पानि बिना अतृप्त तप्त धरती पर अचानक पानिक बुन्न टप-टप कय खसि रहल हो – तहन जे व्याकुल किसान मे खेतीक नव उम्मीद उत्पन्न होइछ ठीक तहिना। ई सिद्ध करैत अछि जे मैथिली फिल्मक सफलताक सूत्र मैथिली लोकसाहित्य आ तेँ मैथिली लोकसरोकार मात्र मे निहित अछि। ई सीधा संकेत कय रहल अछि जे मैथिली सिनेमाक भविष्य केना आ केकरा हाथ मे सुरक्षित अछि।
नहि केवल सिनेमा बल्कि भाषा आ साहित्य सेहो वैह धरातल पर रहयवला आ अपन भाषा सँ अगाध सिनेह राखयवला बहुजन समाजक पास सुरक्षित अछि। भाषा सँ साहित्य, साहित्य सँ संस्कार, संस्कार सँ संस्कृति, संस्कृति सँ सभ्यता आ सभ्यता सँ भूगोल – एहि सत्य तथ्य केँ प्रमाणित करैत अछि। लोकक मोल छैक, लौकिकता मे प्रचलित लोकदेवक गाथा मे निजत्व बोध छैक। ‘राजा सलहेश’ फिल्म ई बात नीक सँ स्थापित कयलक अछि।
समस्या रहल कतय?
भाषा-साहित्य, शिक्षा-दीक्षा आ संस्कार-सभ्यता पर सब दिन अभिजात वर्ग (एलिट्स) केर एकाधिकार रहल अछि, तेँ मैथिल बहुजन समाज आ बहुल्य लोकक हृदय मे अपनहि मातृभाषा मैथिलीक लिखित साहित्य ओहि तरहक स्थान नहि बना सकल एखन धरि। तहिना मैथिलीभाषाक सिनेमा भले अपन स्वर्ण जयन्ती मना लेलक, परञ्च बाजार केर नियमानुसार वृहत् उपभोक्ता यानि फेरो बहुजन समाज धरि पहुँच नहि बना सकल एखन धरि। जहिना मैथिली भाषा-साहित्य मे बेसी कथा-गाथा अभिजात वर्ग पर केन्द्रित लिखल गेल, तहिना मैथिली सिनेमा मे सेहो ओहि तरहक कथावस्तु सब पर आधारित सिनेमा बनाओल-देखाओल गेल जाहि सँ जमीनी बहुजन समाज स्वयं केँ नहि जोड़ि सकल। मुदा उपरोक्त उदाहरण ‘राजा सलहेश’ सिनेमा आशाक नव किरण झलका रहल अछि।
हम एकरा मैथिली फिल्म केर सफलताक सूत्र मानैत छी। एकर अतिरिक्त आर महत्वपूर्ण पक्ष सब दृष्टि देनाय आवश्यक बुझैत छी। यथा –
अहाँ गौर करू, मैथिलीक लिखित साहित्यक पौराणिक, मध्ययुगीन या आधुनिक कालखंडक इतिहास मे बहुजन समाज सँ जुड़ल कथा-गाथा कम भेटत। मिथिलाक्षेत्र मे गणतंत्रक इतिहास भेटैत अछि, लेकिन शुद्धतावादी परिष्कृत समाज सभक लक्ष्य रहबाक कारण बहुल्य साहित्य अभिजात वर्ग पर केन्द्रित भेटत। मिथिला मे लगभग सब जाति-समुदाय मे एक अथवा अनेक लोकदेव भेटि जाइत छथि, परञ्च ओहि लोकदेवक महिमामंडन करयवला इतिहास लिखित रूप मे नहि भेटत। कियैक? कियैक तँ मिथिला सामन्तवादी जमीन्दार शासक सभक शासित भूमि होयबाक आ उच्च-अभिजात्यक वर्चस्व मे ओझरायल रहबाक दुरावस्था केँ झेलैत आबि रहल अछि। एहिठाम बड़का-छोटका, बाभन-सोलकन, स्पृश्यता-अस्पृश्यता, आदिक भेद-विभेद पूरा हावी रहल।
सामाजिक क्रान्ति मे सोशलिस्ट धारक क्रान्ति सँ लैत कम्युनिस्ट धारक क्रान्ति सेहो आयल, मुदा पूँजीवाद सब दिन एहिठाम हावी रहल। एतेक तक जे भारतक स्वतंत्रता पछातियो जाहि सामाजिक ठेकेदार केर हाथ राजनीतिक शक्तिक बागडोर आयल, ओहो सब वैह पूर्वहि केर सम्पन्न-विपन्न बीच एकटा गहींर रेखा खींचिकय अपन राजनीतिक आका केँ सत्तारोहण करबैत रहला। यैह कारण भेलैक जे आखिरी समय लालू यादव जेहेन प्रखर राजनेता विभाजनक स्पष्ट रेखा खींचि ‘भूराबाल केँ साफ कर’ नारा दैत १५ वर्ष राजनीतिक सत्ता पर हावी भ’ गेलाह। बुझल जा सकैत छैक जे एहिठामक पिछड़ा, दलित, अवहेलित, शोषित आ हाशिया पर राखल गेल आम जनसमुदाय (सीमान्तकृत् समाज) केर बात ताहि ढंग सँ नहि कयल जा सकल जेकर आकांक्षा ओहि विशाल वर्ग मे हमेशा-हमेशा सँ मोनक भीतर मे माँग रूप मे घर बनौने छलैक।
जन-जन मे मैथिली साहित्यक पठनीयता लोकप्रिय नहि भ’ पेबाक कारण भाषा-आधारित राजनीति करनिहार फेर सँ फूट डालो शासन करो के नीति पर गलत लाभ उठबैत चलि गेल, आ मैथिलीभाषी समाज मे मैथिली लेल कियो कबीर, रहीम, रैदास अथवा आने सन्तवाणी तक लिखनिहार आ बहुल्यजन-सामान्यजन केँ जोड़िकय रखनिहार तक नहि भेल।
इतिहास कि कहैत अछि?
इतिहास पर नजरि दैत छी त मध्ययुगीन कालखंडक महाकवि विद्यापतिक पदावली आ हुनक विभिन्न रचनाक जन-जन मे लोकप्रियता केँ नटुआ नाच शैली मे लोककथा रूप मे वर्णनक एकटा खुब सुन्दर रंग-विधा ‘विदापत नाच’ नजरि पड़ैत अछि, तहिना कीर्तन शैलीक भगैत, महराय, आदि विभिन्न रंग-विधा जे मिथिलाक अनेकों वीर लोकदेव सभक लोकगाथाक गान करैत अछि सेहो नजरि पड़ैत अछि, लेकिन एहि सब पर आधारित फिल्म निर्माण आ फिल्म मार्फत बहुल्य भाषाभाषी केँ जोड़िकय रखबाक कोनो विशेष काजक व्योरा कतहु प्राप्त नहि भ’ पबैछ।
राज्य केर भूमिका कि भेल?
राजकीय स्तर पर मैथिली अकादमीक निर्माण कय अनेकों लोकगाथा सब पर आधारित कार्य बहुत पछातिकाल करायल त गेल, लेकिन आइ प्रकाशित आ वितरित रूप मे ई सामग्री सब सेहो विरले कतहु सामान्यजन लेल उपलब्ध भेटत। श्रुति साहित्य आधारित सामग्री सभक लिप्यान्तरण करेबाक यदाकदा चर्चा मात्र सुनैत छी, कहल जाइछ जे कैसेट्स मे रिकार्डिंग कराकय सेहो राखल गेल अकादमी द्वारा। मुदा आइ एहि कैसेट्स सब सँ फेर डिजिटल डेटा रूप मे रूपान्तरण भेल अथवा नहि, ओहि सुनल गीत सभक लिप्यान्तरण भेल अथवा नहि, संगठित जवाब कतहु नहि भेटैछ हमरा। वर्तमान समय किछु वर्ष सँ मैथिली अकादमी राज्य सरकारक उपेक्षा अथवा गैरजरूरी राजनीति केर चपेट मे आबि शिथिल आ निष्क्रिय जेकाँ भ’ गेल अछि। हमर स्मृति मे मैथिली अकादमीक पुस्तक व अन्य सामग्रीक स्टाल सब विभिन्न कार्यक्रम मे राखल भेटल, एकरा निरन्तरता देनाय आ हरेक शहर मे एकर वितरक बना पठनीय, श्रव्य-दृश्य सामग्री सब उपलब्ध करेनाय बहुत जरूरी छैक। लोकसाहित्य विशेष कथा-गाथा सब जतेक बेसी वितरित आ पठित होयत, फिल्म निर्माण मे सेहो एकर भूमिका ओतबे सराहनीय होयब सुनिश्चित अछि।
संवैधानिक दृष्टिकोण सँ अष्टम् अनुसूची मे सूचीकृत मैथिली भाषा अपनहि राज्य मे नहि त सरकारी कामकाज मे, नहिये प्राथमिक शिक्षाक माध्यम भाषा अथवा अनिवार्य शिक्षा मे, नहिये संचार अथवा सरकारी विज्ञापन मे, नहिये समुचित श्रव्य-दृश्य राजकीय मीडिया मे, आ न सरकार द्वारा पोषित फिल्म व अन्य डिजिटल सृजनकार्य मे – सरकार कतहु नहि देखाइत अछि मैथिली लेल। दिन-ब-दिन एहि उदासीनता सँ मैथिलीभाषी समाज मे निजभाषा प्रति जे उत्साह आ समर्पण हेबाक चाही, तेकर सर्वथा अभाव छैक। एहि सँ कतेक लोक त अपनहि भाषा बाजय तक मे लज्जाबोध करैत रहैछ।
स्वयंसेवा आ स्वसंरक्षणक भाव मे पार्ट टाइम जौब जेकाँ फिल्म निर्माण होइछः
पचास वर्ष सँ बेसीक इतिहासक धनी ‘मैथिली फिल्म’ मे जे जतेक काज भ’ रहल छैक से स्वयंसेवा आ स्वसंरक्षणक सिद्धान्त पर। अपन धरतीक अनेकौं समर्पित पुत्र, मैथिलीसेवक, सौखिया निवेशक – ई सब अपन तरहें निजी स्रोत संसाधन आ मैथिलत्वक शक्ति-सामर्थ्य सँ बस खानापूर्ति मे लागल छथि। मैथिली फिल्म निर्माण क्षेत्रमे खुल्ला रूप सँ देश-विदेश कतहु केर निवेशक सब निवेश करथि ताहि लेल किछु आकर्षण जँ राज्यक दिश सँ देल जाय त स्थिति बदैल सकैत छैक। मैथिली फिल्म मे सम्भावना रहितो उत्साह सँ भरिकय आ पूरे विश्वास सँ बहुत कम लोक लगानी करैत छथि। एहेन स्थिति मे मैथिली फिल्म केँ सब्सिडी (कर छूट व्यवस्था) अथवा इन्सेन्टिव्स (प्रोत्साहन राशि) आदिक राज्य व्यवस्थापन (प्रोविजन) सँ उल्लेख्य वृद्धि आ विकास होयत एहि मे कतहु दुइ मत नहि। अपन राज्यहि भीतर रोजगार-अवसर वृद्धि करबाक लेल राज्य केँ तुरन्त विचार करबाक चाही। संगहि मैथिल जनप्रतिनिधि (विधायक-सांसद व अन्य) माननीयजी सब केँ एहि तरहक नियमन-कार्यान्वयन लेल सशक्त ढंग सँ सदन मे प्रस्तुत हेबाक चाहियनि। संचारकर्मी आ जनसरोकारक मुद्दा उठेनिहार संचारकर्मी आ साहित्यकर्मी सब केँ एहि विषय पर जोरदार कलम चलबय पड़तनि। मैथिली फिल्मक स्वर्णिम भविष्य तय भेला सँ लोकसमृद्धि अवश्यम्भावी होयत, क्रमशः आनो-आनो उद्यम-व्यवसायक मात्रा स्वाभाविके रूप सँ बढि जायत। मैथिली फिल्म उद्योग लेल समर्पित एकटा सर्वसुविधासम्पन्न फिल्म स्टूडियोक निर्माण सेहो अत्यावश्यक अछि। सरकारी उपक्रम द्वारा उचित रेट पर बहुते काज पूरा कयल जा सकैत छैक।
हमरा सभक साहित्यकार लोकनिक प्रयासक सराहना हो, तदनुसार फिल्म बनय त सफलता सुनिश्चित अछिः
गोटेक साहित्यकार सभक लिखित साहित्य सब उपलब्ध हेबाक बात सुनैत-देखैत छी, जेना हम डा. महेन्द्र नारायण राम केर लिखल गोटेक महत्वपूर्ण रचना सभक संकलन कएने छी, पढ़बाक-बुझबाक आ आगू आरो एकरा विस्तार देबाक योजना हाल धरि लम्बिते अछि। साहित्यिक परिचर्चा सब मे ब्रजकिशोर वर्मा ‘मणिपद्म’ केर नाम अग्रपंक्ति मे लेल जाइछ जे अपन लोकसंस्कृति आ परम्परा मे प्रचलित लोकदेव सभक गाथा सब केँ लिपिबद्ध करबाक महत्वपूर्ण कार्य आरम्भ कयलनि। तहिना प्रफूल्ल कुमार सिंह ‘मौन’, योगानन्द झा, आदिक नाम सेहो अग्रणी श्रेणी मे लेल जाइछ जे सब लोकदेवक लोकगाथा आधारित साहित्यक सृजन कयलनि। परञ्च फिल्मकार सब केँ ई मौलिक कथावस्तु कतेक आकर्षित करैत छन्हि, कयलकन्हि आ कतेक रास कथा-गाथा पर काज सब भेल ई मननीय विषय थिक। एहि पर शोध करब आवश्यक अछि। आइ ‘राजा सलहेश’ फिल्मक उदाहरण आशाक नव किरण सँ बहुतो लोकक मोन मे नया भरोसा उत्पन्न कयलक कहय मे कोनो अतिश्योक्ति नहि होयत।
एकटा बात त तय छैक – जे फिल्म निर्माता सब मैथिली साहित्यकारक चर्चित साहित्य पर आधारित फिल्म निर्माण कयलनि, ओ बहुत बेसी सफलता हासिल कयलनि अछि। हालक गोटेक कार्य लघुफिल्म निर्माण क्षेत्र मे हमरा एहि तरहक निर्णय करबाक लेल प्रेरणा देलक। जेना झा विकास द्वारा हरिमोहन झाक साहित्य पर आधारित नमो नारायण आ कवि कल्पनाक सफलता, रमेश रंजन झाक अनेकों साहित्य आधारित कृति, मनोज श्रीपतिक रक्त-तिलक, आदि।
मैथिली सिनेमा आ हमर निरपेक्ष दृष्टिः
मैथिली फिल्म निर्माण मे ‘एनि हाउ – काम चलाउ’ प्रवृत्ति सँ बेसी नोकसानी भेल जेना हम अन्दाज करैत छी। काजो करब आ नीक सँ नहि करब, कोहुना कय लेब – एहि तरहक शौर्टकट मारिकय चिक्का फँगबाक प्रवृत्ति सँ मैथिली सिनेमा बाजार निर्माण नहि कय सकल, निर्माता सब सौखिया लगानी करैत छथि, पेशागत रूप मे एक-आध परसेन्ट कतहु भेटि जाय लोक, नहि त मैथिली फिल्म सभक लेल केवल आ केवल पार्ट टाइम जौब जेकाँ बनि गेल अछि। लगानीकर्त्ता सँ कलाकार तक के यैह हाल छैक। भगवान् भरोसे नाव कतहु-कतहु पार उतरि गेल, पब्लिक केँ पसिन पड़ि गेलनि आ फिल्म खुबे चलल, टका कमा लेलहुँ, तेहनो स्थिति सब कतेको बेर देखल अछि। मुदा स्थायी रूप सँ लोक मे मैथिली फिल्म प्रति जे जुड़ाव तथा भावनात्मक अन्तर्सम्बन्ध बनबाक चाही से पछातिकाल एक दशक सँ मात्र नजरि पड़ि रहल अछि। मैथिली फिल्मक इतिहास – किसलय कृष्ण द्वारा एकटा महत्वपूर्ण साहित्यिक कृति पैछला वर्ष प्रकाशित भेल अछि। एहि पोथी मे मैथिली सिनेमाक विगत आ वर्तमान पर बहुत शानदार समीक्षात्मक दृष्टि राखल गेल अछि। झारखंड मे एहि पोथी केँ यूनिवर्सिटी द्वारा सिलेबस मे सेहो मान्यता देल गेल अछि। एहि सब तरहक महत्वपूर्ण कार्य होयब मैथिली फिल्मक सफलताक नव भोर कहि सकैत छी।
संगठन आ केन्द्रक आवश्यकताः
जे ऊर्जा आ सांगठनिक शक्ति मैथिली फिल्म निर्माण लेल आवश्यक छैक से विभिन्न कारण सँ नहि भेटैत छैक। सब सँ पहिने मैथिली फिल्म लेल एकटा निश्चित केन्द्र-स्थलक अभाव होयब असफलताक बड पैघ कारण बुझाइत अछि हमरा।
भारत दिश दरभंगा-मधुबनी मे छिटफुट काज होइत देखैत छी, मुदा पटना मे मैथिली रंगकर्मक जैड़ खुब मजबूत हेबाक कारण एतय गम्भीर आ परिणाममुखी काज हेबाक अपन अलग इतिहास भेटैत अछि। अरिपन, भंगिमा, आदि विभिन्न रंगसमूहक उपस्थिति आ कुणाल, रविन्द्र राजू, किशोर केशव, आदि अनेकों सिद्धहस्त व्यक्तित्व सभक उपस्थिति पटना केँ खास बनबैत अछि। तहिना कोलकाता मे सेहो मैथिली रंगकर्म सँ फिल्मकर्म एकटा नीक रोजगारक स्रोत बनि जेबाक कारण एक सँ एक काज मैथिली व अन्य-अन्य भाषा सब मे मैथिल रंगकर्मी कलाकार सभक सङ्गोर-संगठन द्वारा भ’ रहल अछि। हालांकि मैथिली फिल्म निर्माण मे एहि ठामक कलाकार सभक कोनो उल्लेख्य काज हमरा नजरि नहि पड़ल अछि, बस मैथिली महायात्राक दरम्यान एहि बातक सूचना भेटल आ आह्लादित सेहो भेलहुँ।
हाल-फिलहाल दिल्ली एनसीआर आ मायानगरी मुम्बई केर मैथिल फिल्मकर्मी सब काफी प्रोफेशन ढंग सँ निर्माणकार्य मे लागल देखाइत छथि। मैथिली संग-संग अन्य-अन्य भाषा मे फुल टाइमर कलाकार व फिल्मकर्मी-रंगकर्मीक रूप मे नीक काज करैत देखा रहल छथि।
एम्हर नेपाल दिश जनकपुर सर्वथा केन्द्र रूप मे स्थापित रहितो बाहरी कलाकर्मी सभक संग तेहेन जुड़ाव आ समीपता नहि बना सकबाक कारण छिटफुट काज अलगे-अलग भ’ रहल देखि रहल छी। विराटनगर मे अलग, इनरुवा, लहान, राजविराज, इटहरी, आदि-आदि स्थान मे सेहो निर्माणकार्य अलग-अलग छिटफुट मात्रा मे भेटि जायत।
काठमान्डू नेपालक राजधानी थिकैक आ एक सँ एक व्यक्तित्व सब रंगविधा सँ लैत फिल्मविधा मे तत्परता सँ काज कय रहला अछि। मैथिलीक अलावे नेपाली भाषा मे मैथिल रंगकर्मी-फिल्मकर्मी बेसी आकर्षित छथि, कारण नेपाली फिल्म अपन यूएसपी आ बाजार निर्माण मे सफल भ’ चुकल अछि। नेपालीभाषी मे अपन भाषाक फिल्म प्रति एकटा विशेष सम्बन्ध स्थापित भ’ चुकल छैक। फिल्म केहनो हो, लेकिन दर्शक एक बेर जरूर ओकरा देखय सिनेमा घर जाइत अछि। मैथिली लेल एहि जुड़ावक अभाव आइ सब सँ पैघ समस्या बनल छैक।
नेपाल मे एक सँ एक व्यक्तित्व सब, वरिष्ठ सँ कनिष्ठ धरि अनेकों लोक मैथिली लेल काज करैत देखा रहल छथि। रमेश रंजन झा, पूर्णेन्दु झा, धीरेन्द्र प्रेमर्षि, रूपा झा, गुरुदेव कामत, अमितेश साह, कमल मंडल, निराजन मेहता, सुनील कुमार मल्लिक, परमेश झा, रविन्द्र झा, आदि अनेकों नाम अछि नेपाल दिश सँ जे एहि विधा मे विज्ञ व्यक्तित्व रूप मे जानल जाइत छथि।
लेकिन जखन अहाँक शक्ति सुसंगठित नहि होयत आ सब गोटे छितरायल अवस्था मे रहब त एक-दोसरक संग-सहयोग आ संयोजन नहि पाबि सकब, एहि तरहें कोनो पैघ आ सफल योजनावद्ध काज करबाक हिम्मत जुटाबय मे भारी दिक्कतक सामना करय पड़त। एहि लेल मैथिली फिल्मकर्मी सभक वास्ते भारत-नेपाल दुनू देशक संयुक्त केन्द्र निर्माण आ सुसंगठित निर्माणकार्य लेल सोच बनेनाय अत्यावश्यक अछि। जनकपुर-मधुबनी (एहिपार-ओहिपार) हमरा सर्वाधिक सम्भावना वला केन्द्र रूप मे अनुमान लागि रहल अछि।
हमर एक संस्मरणः
हम बड बच्चा रही आ मकर संक्रान्ति पछातिक बाबा विदेश्वरस्थानक मकर मेला अपन पूज्य पिताजीक संग घुमय गेल रही, तहिया झंझारपुर सेहो घुमाबय लय गेलथि आ ओहिठाम जीवन मे पहिल बेर सिनेमा हौल देखलहुँ। भरि रस्ता सिनेमा सभक पुरना-नवका पोस्टर आ गाड़ी मे लाउडस्पीकर लगा फिल्मक प्रचार, विशेष रूप सँ ‘लगातार ….. सप्ताह’ के स्टिकर बड बेसी प्रभावित करय। बालमस्तिष्क पर्यन्त केँ ई बात अपील करय जे कोनो फिल्म एतेक सप्ताह सँ लगातार चलि रहल छैक। तहिया ‘ममता गाबय गीत’ वैष्णवी चित्रशाला, झंझारपुर मे लागल छलैक। गाम-गाम सँ लोक सब ई सिनेमा देखय लेल जाइत छल। एकर गीत सब बहुते लोकप्रिय भेल छल। आइयो धरि लोकक कंठ मे एहि फिल्मक गीत सब सुनय भेटि जाइछ।
हमरा बुझने मैथिली भाषाक ई सिनेमा काफी गम्भीरता, समुचित पूर्व योजना आ खुब बढियाँ संयोजन-व्यवस्थापन सँ बनल होयत। एहि फिल्मक गीत सब एतबा अधिक कर्णप्रिय छल जे हमरा बुझने एकर गीतक कैसेट सेहो अद्भुत व्यवसाय कएने होयत। हम ई एकटा उदाहरण १९८३-८४ के आसपास के देल। संकेत ई कयल जे योजनावद्ध तरीका सँ लोकक रुचि आ मर्म केँ ध्यान मे राखिकय कोनो फिल्म निर्माणकार्य होयत तँ ओ निश्चित सफलता प्राप्त करत।
अन्त मे निष्कर्ष रूप मे यैह कहब जेः
मैथिली फिल्म उद्योग सुस्थापित नहि हेबाक विभिन्न स्थिति-परिस्थिति पर उपरोक्त दृष्टि रखलाक बाद एकर भविष्य प्रति सकारात्मक सोच जन-जन मे भेटि जाइत अछि। आशा आ उम्मीद सब मे छैक जे आइ न काल्हि मैथिली फिल्म केर स्वर्णिम भविष्य हेब्बे टा करतैक।
मैथिली भाषाभाषी मे भाषिक चेतना क्रमिक रूप सँ जागि रहल छैक। आर एकर सार्थक परिणाम मैथिली फिल्म केर अपन बाजार आ आय-रोजगार सँ जोड़त से सुनिश्चित छैक।
पहिनेक समय मे चुनौती बहुते छलैक। मैथिली फिल्म सँ जुड़ल बड बेसी साहित्य अथवा फिल्मी समाचार पत्र तक प्रकाशित नहि भेल अछि, व्यवहारिकता मे विद्यमान समस्या सभक आधार पर ई कहि सकैत छी जे फिल्म निर्माण लेल आवश्यक कथा-पटकथा, कलाकार, फिल्मांकन, सम्पादन, मिश्रण, साउन्ड रेकर्डिंग, आदि विभिन्न कार्य सभक तकनीकक स्थानीय उपलब्धता पहिने नगण्य छलैक। सब बात लेल बालीवुड फिल्म इन्डस्ट्री पर निर्भरता छलैक।
लेकिन आधुनिक काल मे फिल्म टेक्नोलौजीक प्रसार, नीक-नीक कैमरा आ सूटिंग सुविधाक संग दक्ष कैमरामैन, दक्ष निर्देशक संग लाइट्स, साउन्ड, इफेक्ट्स, एडिटिंग, मिक्सिंग आदि समस्त सुविधा स्थानीय स्तर पर सेहो उपलब्ध भ’ गेल छैक।
हालांकि एखनहुँ तुलनात्मक रूप मे दक्षता आ कुशलताक कमी अवश्ये देखल जाइछ, लेकिन नहि सँ हँ भला वाली बात त अवश्य भेटिये टा जाइत छैक। आर, आब त फिल्म आ टेलिविजन इन्स्टीट्यूट्स सभक भरमार भ’ गेलाक बाद पेशागत ढंग सँ लोक सब प्रशिक्षित भ’ कय एहि क्षेत्र मे करियर (भविष्य निर्माण) बना रहल छथि। अतः मैथिली फिल्मक केन्द्र, कार्यकर्ता, कार्ययोजना, कोष केर समुचित व्यवस्थापन करैत क्रियान्वयनक दिशा मे डेग बढ़बाक चाही, सफलता बेसी दूर नहि अछि।
हरिः हरः!!