देख रहल छी सबटा….. सन्दर्भ मैथिली फिल्म “राजा सलहेश”
जेकरा मैथिली भाषा-साहित्य, संचार, फिल्म आदि सँ सब दिन घृणे रहल, जेकर फेसबुक के पोस्ट पर्यन्त अपन मातृभाषा मैथिली मे कहियो नहि भेल, सेहो आइ ‘राजा सलहेश’ फिल्म रिलीज भेलाक बाद अपन मातृभाषा मैथिली, ताहि मे रिलीज भेल सिनेमा, मिथिलाक लोकदेव राजा सलहेश, हुनक पवित्र श्रुति इतिहास आ ताहि सँ अपन सन्तति केँ जोड़िकय रखबाक वकालत करैत देखाय लागल अछि।
ओ (ओ सब) एखन धरि फिल्म स्वयं देखबो नहि कयलक अछि, पूर्ववत् अपनहि अस्मिता सँ घोर घृणा करनिहार बस एककान-दुइकान-दसकान धरिक सुनल बात पर आ एक गोट नवाचार (नव फिल्मी मसालाक मैथिली सिनेमा मे प्रयोग) कयला सँ फेर अपन पोंगापन्थी यानि शुद्धता-पवित्रता आदिक बात सब राखलक से एम्हर-आम्हर पढ़ि रहल छी। ईहो आलोचना सब जँ अपन भाषा मे करितय त बात किछु हद तक मनन करैत लोक, एखनहुँ ई अपाटक मिथिलाक अजातशत्रु सब आने-आन भाषा मे घरक कुचर्चा बहरिया संग करय मे व्यस्त देखाइत अछि।
विश्वास करब? ई वर्ग जे लौन्डिया लन्डन सँ आनिकय राति भरि नचेबाक बात करैत अछि, जे अपनहि माय-बहिन आ स्त्री समुदायक संग खुलेआम सम्बन्धक धाख तक केँ ताख पर राखि अश्लील गीत-नृत्य मे आकन्ठ डूबल अछि, तेकरा ‘अहाँक नाम करबाक छय, आइ हमर ठोर! रातिक आइग लगा देबय, तखन हेतय भोर!!’ जेहेन उच्च-परिष्कृत साहित्यक प्रयोग सँ बाजार बढ़ेबाक-बनेबाक नव प्रयोग बहुत खराब लागि रहल छैक। बेशर्मीक पराकाष्ठा नाँघि चुकल ई गृहद्रोही समुदाय केँ एहि तरहें ‘मैथिली फिल्म केर बाजार निर्माण, संवर्धन-प्रवर्धनक अपन प्रयास’ पर केकरो माफिया, केकरो साहित्यक सौदागर, आदि उपमा दय हतोत्साहित करबाक कुत्सित प्रयास कतहु सँ स्वीकार्य हमरा नहि बुझाइत अछि।
आइ हिन्दी फिल्म, भोजपुरी फिल्म, अंग्रेजी फिल्म आदिक बाजार दय स्वयं केँ एहि भाषाक उपनिवेशी बना चुकल ‘मिथिला’ मे फेर वैह पोंगापन्थी प्रवृत्ति हावी भ’ रहल अछि जे कहियो ‘मैथिल महासभा’ मे मैथिल केवल उच्चकुलीन श्रोत्रिय ब्राह्मण मात्र केँ सदस्यताक सिफारिश कय गलत भ्रम आ सन्देश देने रहय २०वीं शताब्दीक आरम्भ मे। १९वीं सदीक अन्त मे यैह पोंगापन्थी भारतक आजादी मे हिस्सेदारीक बात कय मिथिलालिपि परित्याग कयने छल, हिन्दी भाषा केँ राष्ट्रीय स्वाभिमान लेल अपनौलक आ वैह हिन्दी अपन जन्मदात्री माता स्वरूपा मैथिली केँ सुरसा जेकाँ मुंह बाबि गिरबाक लेल लगभग १०० वर्ष धरि मुंह बओने रहल। अन्ततः ७ दशक केर संघर्षोपरान्त मैथिली केँ सुरसाक पेट सँ बाहर निकालि भारतीय संविधानक आठम् अनुसूची मे २००३ (२१वीं सदीक आरम्भ) मे स्थान दियाओल जा सकल।
मैथिली फिल्म अपन गोल्डन जुबिली मना लेलक, लेकिन यैह पोंगापन्थी सभक कारण सदैव गलत ढंग सँ हतोत्साहित करबाक लेल आमलोक मे भ्रम आ घृणा पसरल रहल अछि। बहुल्यजन मे भ्रम पसारबाक लेल व्यूह रचनिहार ढेंग-अपढेंग सब मैथिली पर अपन कुदृष्टि सब दिने रखने रहल अछि।
सब सँ पहिने स्वयं देखू। देखिकय सिनेमाक नीक आ बेजा दुनू पक्ष पर चर्चा करय जाउ। हर हाल मे स्वत्वक पृष्ठपोषण जरूरी अछि। मैथिली फिल्म लेल कियो एतेक साहस कयलनि अछि, तेकर प्रशंसा हेबाक चाही। भाषा लेल फिल्म निर्माण आ फिल्मक बाजार निर्माण संग निर्माता-निर्देशक प्रति उत्साहवर्धनक बेर मे अहाँ हतोत्साहित करयवला बात किन्नहुं नहि कय सकैत छी। ताहू मे धृष्टता सीमा नांघिकय हिन्दी मे मखरि-मखरिकय अपन माय-बहिन आ बेटी-बेटा सभक संग पूर्ण नंगा आ फूहड़ कथावस्तु मे आकन्ठ डूबल समाज, हिन्दी-भोजपुरी केँ बाजार दय स्वयं केँ दरिद्र बनबयवला समाज… कृपया सचेत होउ। मैथिली मे काज करयवला केँ हतोत्साहित करबाक कुब्बत अहाँ मे नहि।
हँ, कनी प्रतीक्षा करू। किछु जरूरी आलोचना लयकय मैथिली फिल्म सँ जुड़ल किछु लोक सब आबि रहल छथि। ओ सब पहिने सिनेमा देखता, तखन बजता। कौआ कान लय कय उड़ि गेल, तेँ अहाँ कौआ केँ खिहारब, से नहि चलत। सुनल बात पर केकरो कलंकित करबाक काज सोशल मीडिया मे करब, से नहि चलत। केकरो अकूत कमाई ओकर अपन सौभाग्य थिकैक, तेकरा माफिया कहिकय अपना केँ शापित सिद्ध करब, से नहि चलत। दुनिया बदलि गेल छैक। राजा सलहेश लोकपूज्य त छथिहे, सिनेमाक मार्फत हुनक पूज्यता केँ सभ्य ढंग सँ सिद्ध करबाक काज जँ नहि भेल होइ त उपयुक्त आलोचना हेबाके चाही। लेकिन धृ्ष्टता छोड़िकय निजताक पृष्ठपोषण हेतु चिन्तन करब, तखनहि टा बाजय के अधिकार रहत। नहि त लत्ताक किदैन जेकाँ भने भटकि रहल छी अपन संसार मे… लागल रहू ओत्तहि। मैथिली-मिथिलाक चिन्तन लेल यथेष्ट लोक उपलब्ध छथिन। सब कियो एहि फिल्म बाजार निर्माण प्रक्रिया केँ अपना ढंग सँ निश्चित समीक्षा करथिन। वाहियात महिमामंडन केर सेहो जरूरत नहि छैक। मुक्का मारिकय ढकार करबाक जरूरत नहि छैक।
हरिः हरः!!