दहेज प्रथा या कुप्रथा?

दहेज प्रथा कि कुप्रथा
 
“निश्चित बेटीक माय-बापक हाथ छनि दहेज कै बढ़ावा देबा मे। बेटी केँ दहेजक बलि-वेदी पर चढ़ेबा मे सेहो कतहु न कतहु हमहीं सभ दोषी छी, कियैकि सामर्थ्य सँ बेसी दहेज दऽ कय सरकारी नौकरीबला वर आनि गौरवान्वित महसूस करैत छी। हमरा बूझने जौं ओ सामर्थ्य हम सब अपन बेटी केँ पढ़ाकय सरकारी अफसर बनाबय मे लगा दी तँ हमरा वर तकबाक प्रयोजन नहिं पड़त। हमर बेटी केँ तकबाक लेल बेटाबला केँ कठिन तपस्या करय पड़तैन, आ तखन दहेजक दानव सँ हम सभ मुक्त भऽ पायब।” – नमिता झा
 
मिथिला मे दहेज कुप्रथाक अन्त लेल संचालित ‘दहेज मुक्त मिथिला’ फेसबुक समूह पर आदरणीया नमिता झाक उपरोक्त उक्ति हमरा ई लेख लिखबाक लेल प्रेरणा देलक। ‘लेखनीक धार’ शीर्षक मे नमिताजीक एहि लेख मे बेटीक माता-पिता केँ दहेजक बढ़ावा दयवला कारक मानल गेल अछि। आर व्यवहारतः यैह सत्यो अछि। आउ, हम अपन किछु विचार राखी अपन पाठकक समक्षः
 
‘दहेज’ शब्द आजुक युग मे बड़ा विवादपूर्ण आ नकारात्मक शब्द बनि गेल स्पष्टे अछि। कियैक? कियैक तँ दहेज माँगिकय लेल जाइत छैक। विवाह सँ पूर्व एकटा शर्त राखि देल जाइत छैक बेटीवलाक समक्ष जे एतेक नगद, ई सब सामान, एना बरियातीक स्वागत, वरक वास्ते फल्लाँ सुटिंग-शर्टिंग आ फैन्सी ड्रेस सब, गहना एतेक भरी सोना आ एतेक भरी चानी, बर्तन-वासन, फ्रीज, गाड़ी, मोटरसाइकिल, आदि। यैह मांग धीरे-धीरे प्रथा केँ कुप्रथा मे परिणति दय देलकैक। लोक दहेज देनाय एकटा अनिवार्य व्यवहार मानि लेलक समाज मे। कतेको गरीब आ निसहाय लोक बेटीक जन्म तक दय सँ डराय लागल। मध्यमवर्गीय चालाक-चतुर समाज त बेटीक कोखिये मे हत्या तक करय लागल। आइ अनेकों दुर्दशा एहि दहेजक कारण समाज मे स्पष्टे देखाय दैछ आ तेँ सम्भ्रान्त वर्ग एकर कुचेष्टा करैत विरोध करैत छथि। दहेज मुक्त मिथिला एकरे विरोध मे, यानि मांगरूपी दहेजक व्यवहारक विरूद्ध स्वयं केँ संकल्पित करबाक अभियान द्वारा अनेकानेक लोकक मन-मस्तिष्क मे एकर दुष्प्रभाव आ कलंकक रूपक निरूपण करैत स्वयंसंकल्प लेल प्रेरणा प्रदान करैत अछि।
 
दहेज शब्द केँ दाइज कहिकय राजा जनक द्वारा सिया धियाक विवाहोपरान्त देल जेबाक जिकिर रामचरितमानस मे भेटैछ। चूँकि राजा जनक सामर्थ्यसम्पन्न राजा रहथि, स्वयं जानकी पराम्बा छलीह, पुरुषोत्तम राम स्वयं जगत्पिता रहथि, राजा दशरथ आ राजा जनकक कौलिक परम्परा सेहो ओतबे उच्च कुलीनताक आधार पर व्यवहार करब जनैत छल… अनेकों कारण छलैक जे राजा जनक अपन मनक कठोर संकल्प पूरा कयनिहार ‘जमाय’ पाबि आह्लादित भ’ अनेकों चीज-वस्तु जनकपुर सँ अयोध्या धरि भार-भरियाक लाइन लगा देलखिन। एकरा दहेज कहल गेलैक। ई अपवित्र नहि छलैक, बल्कि एक राजाक बड पैघ अभिलाषाक परिपूर्ति उपरान्त हुनकर उदार भाव सँ बेटीक विदाई करबाक आचार-विचार रूप मे प्रस्तुति छलैक।
 
एकटा प्रसंग मे अबैत छैक जे राजा दशरथजी जनकजी सँ ६-६ बेर मना कयलखिन तेकर बादो राजा जनक अपन मनोभिलाषा सँ बेटी सभक विदाई पर अकूत दहेज देलखिन। हम व्यक्तिगत तौर पर एकरा दहेज नहि कहैत छी, कारण ई माता-पिताक स्वेच्छा रहनि। राजा दशरथक एकटा उक्ति बहुत बेसी हृदयस्पर्शी लगैत अछि हमरा – “हे समधि जनकजी! अहाँ अपन हृदयक टुकड़ा जे देलहुँ से सम्हारी आ कि ई सांसारिक चीज-वस्तु (दहेज) ?” आ पुनः राजा दशरथ अपन राज्य मे घोषणापूर्वक कहने रहथि – “हमरा घर मे जे अनमोल लक्ष्मी सब अयलीह अछि, से मिथिला राजकुमारी सभक गुणक चर्चा करय जाउ। ओ सब बहुत पैघ गुणमन्ती सब छथि। चीज-वस्तु त जबरदस्ती हिनक पिता पठा देने छथि अपन स्वविवेक सँ। चर्चा त गुणसम्पन्ना वधू केर करू जे अनन्त गुणक स्वामिनी सब थिकीह।”
 
एकटा आरो अत्यन्त चर्चित आ लोकप्रिय प्रसंग मोन पड़ैछ दहेज प्रथा सम्बन्धी। वर्तमान भारतक गुजरात राज्यक एकटा बड पैघ कृष्णभक्त छलथि नरसी मेहता जी। अपने सब महात्मा गाँधीक प्रार्थना “वैष्णव जन तो तेने कहिये, पीर पराई जाणे रे…” सँ त परिचित छीहे। एकर मूल रचयिता सन्त नरसी मेहता थिकाह। बच्चे सँ बड़ा उपेक्षा, गारि-फझेत, लोकक ताना-बाना सब सुनैत आबि रहल छलथि। लेकिन शिवभक्ति मे लीन नरसी मेहता सब किछु सहजभाव सँ सहबाक शक्ति प्राप्त कएने रहथि। बाद मे वृन्दावनक रासलीला आ श्रीकृष्णक चरित्र सँ एतबे अधिक प्रभावित भेलाह जे ओ कृष्णभक्ति मे सेहो बहुत प्रसिद्धि पाबि गेलाह। हुनकर किछु आचरण, विचार आ व्यवहार तत्कालीन समाज केँ मान्य नहि होइक, हुनका तिरस्कार करनि, दुःख देल करनि… परञ्च बालरूप कृष्ण हुनका विभिन्न रूप मे सदिखन मदति कयल करथि। कठिन सँ कठिन परिस्थिति मे नरसी मेहता केँ स्वयं भगवान् कृष्ण मदति करथि।
 
नरसी मेहताक बेटीक नाम रहनि नानी बाई। गुजरात-राजस्थान दिश बेटीक विवाहक समय मातृक पक्ष सँ ‘माइरा’ चढ़ेबाक रीति छैक। जेकर जेहेन सामर्थ्य ओ तेहेन दान-दक्षिणा ‘माइरा’ मे देल करैछ। ई मांगल नहि जाइछ। तेँ एकरा ‘दहेज’ नहि मानल जाइछ। लेकिन व्याख्या करयवला एकरो ‘दहेज’ के श्रेणी मे राखि दैत छथि, कारण दयवला वस्तुक मात्रा आ मूल्य धीरे-धीरे समाज मे एकटा अनिवार्यता भ’ गेल करैछ, गरीबो मामा-मामी लेल कम सँ कम ओतेक पुरेनाय एकटा बाध्यता रहैत छैक। तेँ, व्यवहार जँ दुर्व्यवहार मे बदलि जाय त प्रथा केँ कुप्रथा कहब कोनो अतिश्योक्ति नहि हेतैक। नरसी मेहता अपन बेटीक विवाह लेल यथोचित दान-दहेज जुटेलनि, विवाह भ’ रहल छल। नरसी मेहताक गरीबी सँ सब कियो परिचित त छलहे, ‘माइरा’ के समय किछु लोक हँसी-मजाक मे कहलकैक जे “आब देखा चाही जे नानीबाई (नरसी मेहताक बेटी) केँ मामा-मामी सब माइरा मे कि-केना दैत छथिन!” नरसी मेहता ई सुनिते चौंकि पड़लाह। ओ अपन ईष्टदेव सँ तुरन्त प्रार्थना करय लगलाह। ठीक माइराक समय मे एकटा ‘साँवरा सेठ’ माथ पर पगरी बन्हने आ पगरी मे मयुरक पाँखि लगौने बिल्कुल श्रीकृष्ण केर रूप मे आबि गेलाह। अपन परिचय दैत कहलखिन जे हम नानीबाई के मामा छी, शहर मे बड पैघ बिजनेस अछि। समयाभाव मे देरी सँ आयल छी। लेकिन माइराक रस्म निभेनाय मामाक फर्ज बुझि आबि गेलहुँ। भैगनी लेल माइराक सामान सब बाहर बयलगाड़ी सब मे आनल अछि, अपने सब लग व्यवस्था हो त कनी ओ सामान सब अन्दर करबा लिअ।
 
जे लोक सब बेसिये परेशान रहय माइरा मे मातृक पक्षक सामान देखय लेल, ओ सब बाहर निकलल त देखलक जे १ नहि २ नहि ३ नहि बल्कि सैकड़ों बयलगाड़ी सामान सँ लदल-सजल आयल अछि। सामान सब उतारि नहि सकल ओ सब। माइराक विध समाप्त भेलाक बाद सेठ समयाभाव कहि निकलि गेलाह। लोक सब ओ सामान खोलिकय देखलक त सोना-चाँदी, हीरा-अशर्फी आ अनमोल रत्न सब सँ भरल छल। सभक आँखि चोन्हिया गेलाक। नरसी मेहताक आँखि मे प्रेम आ विश्वासक नोर भरल छलैक, ओ मनहि मन अपन ईष्टदेवक रीति मात्र स्मरण कय रहल छलाह। ओ श्रीकृष्णः शरणं मम केर सिद्धान्त पर अटल रहथि।
 
त, हम अपन लेख केँ आब विराम दैत यैह कहय चाहब जे प्रथा सदैव पवित्र आ अमूल्य होइत छैक। जे दहेज जनक आ नरसी मेहता द्वारा देल गेल, जे भाव राजा दशरथ द्वारा अयोध्यावासी केँ कहल गेल, ताहि भाव मे यदि हम-अहाँ मिथिलावासी सेहो दहेजक अर्थ बुझब आ व्यवहार करब त कहियो हमर समाज प्रदूषित नहि होयत, कहियो आकल-बाकल आ टेढ़-मेढ़ सन्ततिक उत्पत्ति नहि होयत। हम सब हमेशा पवित्र आ आध्यात्मिक उन्नत जीव रहैत मानव सभ्यता केँ उच्च सँ उच्चतम् योगदान दैते रहब। जय दहेज मुक्त मिथिला!!
 
हरिः हरः!!
 
पुनश्चः लेख पढ़लाक बाद आँखि मे जँ नोर आबय त जरूर १ लाइन कमेन्ट लिखि देब, अन्यथा लेल कोनो बात नहि।