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महाशिवरात्रि एकटा नब सृजनक स्रोत केर आशा क राति थीक

लेख

प्रेषित :दिलीप झा

महाशिवरात्रिक महत्त्व

शिव के महान रात्रि “महाशिवरात्रिक” पाबैन मिथिलाक आध्यात्मिक उत्सव सभक सूची मे सबसs महत्वपूर्ण अछि। कोनो समय मैथिल संस्कृति मे एक बर्ष मे तीन सौ पैंसठि पाबैन भेल करैत छलैक। दोसर शब्द मे कही तs लोक साल के प्रति दिन कोनो ने कोनो पाबैन मनेबाक बहाना तकैत छलाह। ओ तीन सौ पैंसठि पाबैन विविध कारण सब आऽ जीवनक विविध उद्देश्य सभ सs जुड़ल रहैत छल। जेकरा विविध ऐतिहासिक घटना सब, विजय श्री आऽ जीवनक अवस्था सब जेना फसल के रोपाई आऽ कटाई आदि सब सs जोड़ल गेल छल। सब अवस्था आऽ सब परिस्थिति के लेल हमरा सभ लग एक विशिष्ट पाबैन छल।
सब चंद्र मासक चौदहवाँ दिन अथवा अमावस्या सs पूर्वक एक दिन शिवरात्रि के नाम सs जानल जाइत अछि। एक कैलेंडर वर्ष मे आब वाला सब शिवरात्रि मे सs महाशिवरात्रिक सर्वाधिक महत्व मानल जाइत अछि। जे फरवरी-मार्च महिना मे आबैत अछि। एहि राति ग्रहक उत्तरी गोलार्द्ध किछु एहि प्रकार सs अवस्थित होइत छैक जाहि स मनुष्यक भीतर ऊर्जाक ऊर्ध्वमुखी प्रवाह प्राकृतिक रूप सs ऊपर के तरफ होमय लगैत छैक। अर्थात ई एक टा एहेन दिन छैक जे प्रकृति मनुष्य के आध्यात्मिक शिखर तक पहलुचैवा मे मदति करैत छैक। एहेन महत्वपूर्ण समय के पूर्ण सदुपयोग करवाक वासते हमर परंपरा मे महाशिवरात्रि के पाबैन के रूप मे मनेवाक प्रावधान अछि जे सम्पूर्ण राति जागरन कs क मनाओल जाइत अछि जाहि सs साधक गण मे उर्जाक प्राकृतिक प्रवाह निरंतर आऽ सम्पूर्ण भs सकै। ताहि हेतु साधक लोकनि रीढ़क हड्डी के सीधा रखैत सम्पूर्ण राति नीरन्तर जगरण करैत रहैत छैथ अर्थात महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर आरुढ साधक गण के लेल अति महत्वपूर्ण तs अछिये आऽ हूनको लेल महत्वपूर्ण अछि जे पारिवारिक परिस्थिति सभ मे आऽ संसरिक महत्वाकांक्षा सभ मे मग्न छैथ।
पारिवारिक परिस्थिति सब मे मग्न लोक महाशिवरात्रि के शिवक विवाह के उत्सव के जेकाँ मनबैत छैथ। सांसारिक महत्वाकांक्षा सब मे मग्न लोक महाशिवरात्रि के शिवक द्वारा अपन शत्रु सभ पर विजय पैवाक दिवस के रूप मे मनबैत छैथ। परंतु साधक सब के लेल ई ओ दिन थिक जाहि दिन शिव कैलाश पर्वतक संग एकात्म भs गेल छलाह आऽ पर्वतक भाँति स्थिर आऽ निश्चल भs गेल छलाह।

जखन लोक अपन कल्याण सs ऊपर उठि कs परलोक गमन करैत छैथ आऽ विलीन भेला पर ध्यान दैत छैथ आऽ हुनकर उपासना आऽ साधनाक उद्देश्य बिलिन भs जाइत छैन तs हमरा सब सदा हुनका लेल दिव्यता के अंधकार के रूप मे परिभाषित करैत छी।
प्रकाश तs अहाँक मनक एक छोट छीन घटना होइछ, प्रकाश शाश्वत नहि होइछ, इ सदा एक सीमित संभावना अछि कियैक तs इ घटि कs समाप्त भs जाइत छैक। हम जनैत छी जे एहि ग्रह पर सूर्य प्रकाशक सबस पैघ श्रोत अछि। एतs तक की लोक हाथ सs ओकर प्रकाश के रोकि कs सेहो अंधकार के परछाईं बना सकैत अछि। परंतु अंधकार सर्वव्यापी थिक, सबतरि उपस्थित थिक।
संसार के अपरिपक्व मस्तिष्क सब सदा अंधकार के एक शैतान के रूप मे चित्रित केलक अछि। परन्तु जखन अहाँ दिव्य शक्ति के सर्वव्यापी कहैत छी तs अहाँ स्पष्ट रूप सs एकरा अंधकारक संज्ञा दैत छी कियैक तs सिर्फ अंधकार सर्वव्यापी होइछ। इ सर्वव्यापी अछि। एकरा केकरो सहाराक आवश्यकता नहि छैक। प्रकाश सदा कोनो एहेन श्रोत सँ आवैत छैक जे स्वयं के जरवैत रहैत अछि। जकर आरंभ आऽ अंत होइत छैक। इ सदा सीमित श्रोत सं आवैत अछि। अंधकारक कोनो श्रोत नहि इ अपने आप मे श्रोत छैक। ई सर्वत्र उपस्थित छैक। तs जखन हम शिव कहैत छी तs हमर संकेत अस्तित्वक ओहि असीम रिक्तताक दिस होईत अछि। जाहि रिक्तताक गोद मे सब सृजन घटैत अछि। रिक्तताक एही गोद के हम शिव कहैत छी।
भारतीय संस्कृति में सभ प्राचीन प्रार्थना सिर्फ़ अहाँके बचेबाक लेल या अहाँके बेहतरीक संदर्भ मे नहि थिक। सब प्राचीन प्रार्थना कहैत अछि जे “हे ईश्वर, हमरा नष्ट कs दीअs जाहि सs हम अहाँके समान भs सकी।“ तs जखन हम शिवरात्रि कहैत छी जे मासक सबस अंधकारपूर्ण राति होइछ तs इ एक गोट एहेन अवसर होइछ जे लोक अपन सीमितता के विसर्जित कs क सृजनक ओहि श्रोतक अनुभव करै जे प्रत्येक मनुष्य मे बीज रूप मे उपस्थित छैक।
महाशिवरात्रि एक अवसर आऽ संभावना थिक जाहि अवसर पर अहाँ स्वयं के सब मनुष्य के भीतर बसल असीम रिक्तता के अनुभव सँ जोरि सकैत छी जे सभक सब तरहक सृजन के श्रोत होइछ। एक दिस शिव संहारक कहवैत छैथ आऽ दोसर दिस ओ सबस पैघ करुणामयी सेहो छैथ। ओ बहुत उदार दाता छैथ। यौगिक गाथा सब मे ओ अनेक स्थान पर महाकरुणामयी के रूप मे सामने अबैत छैथ। जनिकर करुणा के रूप विलक्षण आऽ अद्भुत रहल अछि। यैह हमर इच्छा आऽ आशीर्वाद अछि कि अहाँ सब एहि राति मे कम स कम एक क्षण के लेल ओहि असीम विस्तारक अनुभव करी जेकरा हम शिव कहैत छी। इ सिर्फ एक नींद सs जागैत रहवाक रात्री भरि नहि रहि जै अपितु इ अहाँक लेल जागरणक रात्रि होमक चाहीं चेतना आऽ जागरूकता सँ भरल जगृति के एक अनमोल राति!

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