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मशीनक जुग: हेराइत सामाजिक-सांस्कृतिक मौलिकता

gorha machine

फोटो साभार: नवीन कुमार झा

सन्दर्भ मिथिलाक व्यवहारिक जीवनशैलीक लऽ रहल छी आ एतहु प्रवेश कय रहल मशीनी हस्तक्षेप जाहि सँ मौलिकता गौण हेबाक खतरा बढि रहल अछि। बात ई नहि छैक जे गोरहा या गोइठी पाथय लेल मशीनक उपयोग बेजा हेतैक, बात ई छैक जे ग्रामीण भाग मे आइयो गरीबी स्तर सँ निचां जीवन बाँचि रहल लाखों परिवारक जारैनक आवश्यकता सड़क पर सँ गोबर बीछि, निंघेस आदि संग मिश्रित करैत अपन घरक भीते पर गोइठी ठोकनाय, जँ जुटक खेती भेल अछि आ सन्ठी संकलित कय राखल अछि तऽ गोरहा सेहो एतेक बनि जायत जे साल भरि जारैन कीनबाक आवश्यकता नहि होयत। एतबा नहि, जाहि मौलिकताक बात कय रहल छी, ओहि मे नारी स्वरोजगारक महत्त्व कतेक छैक, कोना ओ परिवारक आजीविका मे अभिन्न अंग बनिकय अपन परिवारक पालन-पोषण करैत अछि, ताहि सब पर नजरि स्वाभाविके जाइत अछि।

वर्तमान मानवीय जीवन क्रमश: खेत-खरिहान सँ निकैल एक्के बेर मिल-उद्योग मे जाइत देखा रहल अछि। कहियो तऽ एना लगैत अछि जे आब मनुख अपन जीवन-संचालनक सब अधिकार कंप्युटर केँ हस्तान्तरित कय देलक। बैंक मे लिंक फेल, कस्टम मे लिंक फेल, रिजर्वेशन मे लिंक फेल, ट्रैफिक कन्ट्रोल वला लिंक फेल, जीएसपी सिस्टम कन्ट्रोल करयवला लिंक फेल…… कहू जे लिंके पर सबटा आधारित अछि आ एना एकाएक सबटा लिंक फेल तऽ लोक केर प्राणरक्षा कोना होयत? आब तऽ मेडिकल ट्रीटमेन्ट आ डायग्नासिस लेल सेहो एपैरेटस सपोर्ट आ रेडीमेड रिडिंग सहित केर मशीन आबि चुकल अछि। घरे बैसल बीपी आ सूगर चेक कय सकैत छी। इलेक्ट्रानिक उपकरणक उजहिया उठल बुझा रहल अछि। काल्हि एकटा किसान-पुत्र द्वारा भारत मे ड्रोन बनेबाक बात सुनलहुँ, बिघाक-बिघा खेत मे कीटनाशक दबाई बस आधा घंटा मे हाथक रिमोट सँ इशारा करैत कैल जा रहल छल। कतेक नीक लगैत छैक कनेकाल लेल… मुदा दूर मे देखैत छी तऽ भय उत्पन्न होइत अछि। ई परजीविता मानव मे पालतू जानवर सँ उठिकय मशीन-मिल मे प्रवेश पाबि रहल अछि। नहि जानि भोजनहु केर प्रतिस्थापन कोनो अन्नक अलावे कोनो आर वस्तु सँ होमय लागत, आ कि सौर्य उर्जा वा अन्य उर्जा स्रोत सँ पेटक भूखो केँ गोटे दिन लेजर रेज आदि सँ नियंत्रित कय लेल जायत। कृत्रिम दूधक समान कृत्रिम खूनक निर्माण सेहो होमय लागत। बहुत किछु परिवर्तनशील अछि। एना मे सामाजिकता आ मौलिकताक मूल्य कतहु न कतहु कम भेल जा रहल अछि।

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