माटि मंगल सुभकाज के बिसरि मात्र देखावा होइ अछि जनेऊ संस्कार मे

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लेख

प्रेषित : रिंकु झा

लेखनी के धार
शीर्षक – आधुनिकता आर परंपराक बिच उपनयण संस्कार मे बढि रहल आडंबर
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पारंपरिक विध -व्यबहार कोनो भी समाज के संस्कृति आर संस्कार के दर्शाबैत अछी।जे ओहि समाज के पहचान रहय छै। आधुनिक युग में मनुष्य के जीवनशैली में आधुनिकता के समावेश भ चुकल छै।समाज मे लोक अपन पारंपरिक विध -व्यबहार के छोड़ी, आडंबर के जाल मे उलझल रहय छैथ। जेकर परिणाम स्वरूप पारंपरिक विध -व्यबहार सब कतौह ने कतौह विलुप्त भ रहल अछी। दिन पर दिन ओकर स्थान अपव्यय स परिपूर्ण परिपाटी ल रहल अछि। हरेक समाज मे काज उद्यान मे आडंबर स भरल विलासिता पूर्ण प्रदर्शन केवल भ रहल अछि। जेकर निर्वहन केनाई सर्वसाधारण परिवार के लेल बहुत कठिन परीक्षा छै। साधारण परिवार के लोक अहि तरहक आडंबर आर प्रदर्शनक आर्थिक आघात नहीं झेल पावय छैथ। विभिन्न प्रकारक ताम -झाम स युक्त महग ब्यबस्था के निर्वाह बहुत कष्टकारी होईत छै। किछु घंटाक शोभा बढावय के लेल वा ओहि समारोह के अविस्मरणीय बनाबय के दबाव मे लोक लाखो रुपैया के पाईन मे बहा दैत छैथ।जे एक तरहक धनक दुरुपयोग होईत अछि। अहि देखा -देखी मे साधारण परिवार पिसा जाई छैथ। हुनका अपन पुरखाक धरोहर ज़मीन -जायदाद तक बेचय परय छऐन्ह।कहबि छै जे अहि सब मे घुन संगे सतुवा सेहो पिसा जाईत अछि बेचारा।
आडंबर के पाछू समाज उपनयण सन गर्वित संस्कार, जाहि मे वैदिक रीति रिवाज स जनेउ धारण कराए ,ब्रम्हनत्व के आचरण सिखावैत नैतिक शिक्षा के ज्ञान देल जाईत अछि बच्चा सब के।ओहु में मुल ब्यबहार पर ध्यान नहीं दय प्रदर्शन के पाछू सब ब्यस्त रहय छैथ।विधिवत रूप स विध -व्यबहार होई वा नहीं होई ,धैर भोज -भात के तैयारी, सजावट के उपकरण,नाच गान के व्यवस्था में कोनो तरहक कमी नहीं रहय । पहिले के समय मे विध -व्यबहार के प्रधानता देल जाई छलै।एक महिना पहिले स शुरू भ जाई विध सब गीत नाद,हंसी -मजाक चलैत रहय छलय। बहुत अपनापन रहय लोक मे । अठबभना ब्राह्मण भोजन होई ,कनिए समान स बहुत कम ख़र्च मे उपनयण संस्कार होई । हकार पुरय बाली महिला लोकनि के तेल सिंदूर लगाक सत्कार केल जाईत छल । पुरुष के शरवत आर दू टुक सुपारी स स्वागत।एक जोड़ी साड़ी मे विदागरी बाली सब खुश, कोनो प्रेसर नहीं रहय किनको उपर । धैर आब नित दिन स्टील के प्लेट मे ड्रायफ्रूट आर कोल्डड्रिंक सब बाँटल जाई छै । भैर गाम के एत तक कि कियो -कियो त जवार भोज करय छैथ रसगुल्ला आर मिठाई के । भैर गाम साड़ी आर धोती संग फूलही लोटा बांटल जाई छै । विध के नाम पर मामा सब लुईट जाई छैथ । सब किछु मामे गाम के हेतय से प्रचलन भ गेल छै। । बरुवा आर बरुवा के पुरा परिवार संग समस्त विध के समान , सेट पर सेट कपड़ा, जुता, गहना सब सेहो ब्रांडेड चाहि , एतबे नहीं आब बरुवा के पिसी लेल आर हजमिनीया लेल गहना सेहो चाही मामे गाम स । चरखा नहीं रहतय चलतै , धैर कैमरा बला नहीं रहतय से नहीं चलत । फोटो शूट के पाछू सब ब्यस्त एतवे नहीं महिला लोकनि सब बिच रस्ता मे नाचब सुरु क दय छैथ के पूतौह के बेटी कोनो धाख नहीं रहय छनि। लोक समय के अभाव मे वा ओरियान के करत एतेक  के चक्कर मे बाबाधाम मे जा कए उपनयण क लै छैथ । आर गाम -घर मे आबि भोज क लेता ।ईहे कारण छै कि आब कोनो भी काज – परोजन  एक टा मनोरंजन के समारोह बनि क रही जाई छै।एकर पाछू के छुपल अर्थ आर उद्देश्य कोनो मायने नहीं राखय छै युवा पीढ़ी लेल। अहि तरहे जदी हम आंहा दिखावा मे उलझल रहब त भावी पीढ़ी सब कखनो अहि स निकैल नहीं पेता ।ने जनेउ के महत्व बुझि पेता।जे मिथिला के संस्कृति के लेल एक टा विषेश खतरा अछि।बांकी सभ्य आर शिक्षीत समाज छी हम सब सब टा बुझिते छीयै।