ऋतु बसन्तक गाथा

278

लेख

प्रेषित :राजन कुमारी

लेखनी के धार…

वसंत ऋतु मे प्रकृति अपन सुन्नरता  चहूंदिस पसारैत अछि—

समस्त भारत देश मे छः टा ऋतु मे बसंत ऋतु के सबसे प्रमुख रूप सय जानल जाइत अछि। एकर शुरुआत माघ शुक्ल पंचमी सं आ फागुन होली शिवरात्रि धरि एकर समय मानल जाइत छलै। एकरा ऐला सं प्रकृति आ मानवक कि संबंध छलय से स्पष्ट भ जाइत अछि। अय सं इहो बुझाइए पड़ैत छल जे मनुष्यक सबटा आवश्यकताक पूर्ति अहि पर निर्भर रहय। अहि ऋतुक अयला से इहो बुझा पड़ैत छल जे प्रकृति आ मानव के एकटा आशा जागृत भ कय प्राकृतिक सुंदरता चारुकात छिटकल रहय लागल अछि। कियाक तं ठिठुरैत जाड़ सर्दीक कमावती सं मानव जीवनक जीव जन्तु अय शस्यश्यामला धरा परहक प्रकृतिक मधुर गुंजन सं छिटैक जाइत अछि।

प्रकृति जखन नब नब रूप धारण करैत अछि आ गाछ वृक्ष पतझड़ मे नब नब पल्लव से पल्लवित भए जैत अछि । आम आ महुआ के गाछ मे भँवरा  से लदरल गदरल मौध पिबैत अछि । खेत मे पीयर – पीयर रंगक सरसों पर तितली सेहो मड़रैत अपन सुनरताक दृश्य चहुंओर पसारि छिटकाबै मे पाछू नय रहय छलै । सोना मे सुगंध तऽ तखन बुझाइ छल जखन अय धरा पर हरियर हरियर दूबि पसरल अपनाके चुनरी बुझि धरा के ओढाबैत अछि । वन – उपवन  मे भरल- भरल लटकल सब रंगक फूल जाहि मे गेंदा, चंपा, जूही, कचनारक सब रंग सं रंगल चुनरी के सुनरता आऔर छिटकाए दैत छलय । ओहि पर जखन एक डारि सओं उड़ि दोसर डारि पर बैसि कोकिला अपन पंचम स्वर सं फागुनक गीत गाबि कऽ सुना रहल हो सैह बुझाई परैत छलइ । जेना कियो बसंत राग के सद्यः  धरती पर प्रचार – प्रसार करै अछि।

पौराणिक कथा के अनुसार ——-

बसंत के कामदेवक पुत्र कहल गेल अछि, बसंतक वर्णन करैत कहल जे सौंदर्यक आ रूपक देवता कामदेवक घर पुत्र जन्मक सामाचार पाबितें प्रकृति खुशी सं नाचय गाबय लागल आ एकर प्रवेश करतहि प्रकृति चारूदिश नवरूप धारण सं अहि धरा पर अपन पाएर पसारि चहूओर परिचय देलक। गीता मे सेहो कृष्ण अपन उपमा बसंत ऋतु स देलैन। आ अपन श्याम रंग सं रंगल तन पर सब रंगक वस्त्र आभूषण धारण कयने प्रकृति के प्रभावित कयने छलाह।

शास्त्रानुसार

शास्त्रीय संगीत मे सेहो विद्वान गायक बसंत राग गावि के प्रकृति के अपन प्रभावित केलन। कवि विद्यापति अपना कविता मे सेहो बसंत ऋतुक वर्णन कैयलन्हि आ कहलैन्हि जे बसंत ऋतु के ऋतुपति कहि अपन कविता के साकार केनय छलाह —

—जे आयल ऋतुपति राज बसंत,धाओल अलि कुल माधवी संग।

मिथिला कोकिल विद्यापति मनोहर वसंत के माध्यम सं जीवनक सुख दुख कोना विताओल गेल आ प्रकृतिक मानवक संवंध कि रहल सेहो सृजनक बताओल गेल।

हम अपन विचारक रचना सं सेहो कहि रहल अछि —

रंग सं फागुन रंगल,
कोन सं रंगल बसंत?
प्रेमक रंग सं फागुन रंगल

प्रीतक कुसुम बसंत।

हाथक कलाई चूड़ी सं शोभित,

खनके बाजू बंद,

फागुन लिखल कपार पर,

रस सं भरल छंद ।