लेख
प्रेषित : आभा झा
लेखनीकेँ धार –
” वसंत ॠतुमे प्रकृति अपन सुन्नरताक छटा चहूँदिस पसारैत अछि “-
प्रकृति आ मानवक संबंध आदिकाल
सँ रहल अछि। प्रारंभमे सभ आवश्यकता हेतु मनुष्यकेँ प्रकृति पर निर्भर रहै पड़ैत छलनि आ ओहिसँ प्रेरणा ग्रहण करी कऽ हुनकामे कल्पना एवं विचारक प्रक्रिया प्रारंभ भेलनि। ॠतु चक्रक अनुसार शिशिर ऋतुक बाद चैत्र आ वैशाख दुनू ही मास वसंत ऋतुक मानल गेल छैक। एहि मासकेँ ‘ ऋतुराज ‘ नामसँ तऽ कतौ ‘ मधुमास ‘ सँ सेहो संबोधित कयल जाइत छैक। एहि मासमे आकाशमे कुहासा कम भऽ जाइत छैक, जाड़ कम होमय लगैत छैक, आसमान निर्मल स्वच्छ भऽ जाइत छैक। नदी, सरोवर, पोखरिक जल अपन भौतिक छविसँ सभक मोनकेँ आकर्षित करैत अछि। एहि मासमे गाछमे नब-नब कोपल फूटैत छैक। सरिसों, जौ, गहूम, आलू, मटर, चना, तीसीक फसल तैयार भऽ जाइत छैक। वसंत पंचमीक दिन विद्याक देवी माँ सरस्वतीक पूजन होइत अछि, होली, रामनवमी आ जूड़शीतल जेहेन प्रमुख पाबनि-तिहारक प्रतिक्षा रहैत अछि। एहि मासमे भौंरा, मधुमक्खी परागक आनंद लैत अछि तथा मधुमक्खी मऽध इकट्ठा करयकेँ काज तेजीसँ करैत अछि। आदिकालक कोकिलकेँ उपनामसँ विख्यात मैथिली कवि विद्यापति वसंत ऋतुक मनोहर चित्रण करैत लिखने छथि –
नव बृंदवन नव-नव तरूगण,
नव-नव विकसित फूल।
नवल वसंत नवल मलयानिल,
मातल नव अलिकूल।।
बिहराई नवल किशोर।
विद्यापति जी मनोहारी वसंतक माध्यमसँ जीवनक किछु सुखद क्षणकेँ बतौने छथि ओतहि दोसर दिस फूलक आगमनक संग गाछमे नव किसलय सुगंधित वायुसँ वसंतक आगमन बतौने छथि। नब फूल, नब पात, भँवराक गुंजार आ कोयरीक कूककेँ संग वसंत धीरे-धीरे प्रकृतिमे अवतीर्ण होइत अछि। आदिकालक कवि विद्यापति तऽ वसंतक राजसी ठाठकेँ ही अपन कवितामे साकार कयने छथि
आयल ऋतुराज राज वसंत
धाओल अतिकुल माधवी पंथ।
कविवर नागार्जुन कहैत छथि –
रंग -बिरंगी
खिली-अधखिली
किसिम- किसिम की
गंधों-स्वादों वाली ये
मँजरियाँ
तरूण आम की डाल-डाल
टहनी-टहनी पर झूम रही हैं।
एहि मौसममे गाछक पुरान पात झड़लाक बाद ओहिमे नब-नब गुलाबी रंगक पल्लव मनकेँ मुग्ध करैत अछि। सतत सुंदर लगै वाला प्रकृति वसंत ऋतुमे सोलहो कला सओं भकरार भए उठैत अछि। वन-वृक्षक हरीतिमा मनकेँ अपना दिस आकर्षित करैत अछि।चिड़ई-चुनमुनीक कलरव, पुष्प पर भौंराक गुंजन तथा कोयरीक कूक मिलि कऽ एकटा मदमातल मौध युक्त वातावरण बनबैत अछि। वसंत ऋतुमे मनमे उल्लास आ मस्ती मे आह्लादित भए जाइत अछि। गाछ-बिरिछ आ प्राणीमे
नवजीवनक संचार होइत अछि। वसंत केँ ऋतुक राजा कहल गेल अछि। आयुर्वेदमे वसंतकेँ स्वास्थ्यक लेल हितकर मानल गेल अछि। वसंतमे मादक वा कामुकक संबंधीत कतेक तरहक शारीरिक परिवर्तन देखय लेल भेटैत अछि जेकर आयुर्वेदमे व्यापक वर्णन अछि। ज्योतिषीक नजरिमे वसंतक मौसममे सभसँ बेसी शुक्रकेँ प्रभाव रहैत अछि। शुक्र काम आ सौंदर्यक कारक अछि। एहि मौसममे कामदेव अपन पत्नी रतिक संग भ्रमण करैत छथि। वसंत कामदेव मदनकेँ प्रिय मित्र छथि आ कामदेव धरती पर काम भावना लोकमे जाग्रत करैत छथि। यैह कारण अछि कि वसंत पंचमीक उत्सव मदनोत्सवक रूपमे सेहो मनाओल जाइत अछि आ तदनुसार वसंतकेँ सहचर कामदेव तथा रतिकेँ सेहो पूजा होइत अछि। वसंतक उत्सव अमर आशावादक प्रतीक अछि। निराशासँ घिरल जीवनमे वसंत आशाक संदेश लऽ कऽ अबैत अछि। जयशंकर प्रसाद किछु एहि तरहें अभिव्यक्त कयने छथि –
चिर वसंत का यह उद्गम है,
पतझड़ होता एक ओर है,
अमृत हलाहल यहाँ मिले हैं,
सुख- दुःख बांधते एक डोर हैं।
जय मिथिला, जय मैथिली।