लेख
प्रेषित : इला झा
लेखनीक धार
“बंसत ऋतुमे प्रकृति अपन सुन्नरता चहुं दिस पसारैत अछि
बसंत केँ श्रेष्ठ ऋतु मानल गेल अछि। ऋतुराज आओर मधुमासक सेहो उपाधि देल गेल छैक। भारतमे ६ टा ऋतु प्रकृतिक रूप- सौंदर्यक श्रृंगार करैत छैक। गृष्म,वर्षा, शिशिर, शरद, हेमंत आ वसंत। ठिठुरैत सर्दीक बाद बसंत धीरे – धीरे अपन पैर पसारैत अछि। सरिसोंके पियर चुनरी ओढ़ेने, हरिअर घासक लहंगा पहिरने सोलह श्रृंगार करैत प्रकृतिक सौंदर्य दमकि उठैत अछि। नव-नव पल्लव, रंग बिरंगक फूल, हवाक झोंका सहजहि मनमे प्रसन्नता भरि दैत अछि। मोर- मयूरनी कोइली आओर अन्य पक्षी पंचम स्वर मे गाबि बसंतक आगमनक सूचना दैत अछि। प्रकृतिमे नवीनता अबैत छैक।आमक मज्जरक सुगंध वातावरण मे चहुंओर पसरि जाइत छैक। सब दिस मधुरता बरसैत देखाइ दैत छैक। फूलक मन मोहक सुगंध सँ वातावरण सुरभित भ’ जाइत छैक।
“फूल – फूल पर लदल भ्रमर, कली-कली पर मुस्कानक आभास
आयल वसंत ऋतु, मधुर मधु के भ’ गेल चँहुदिसि बरसात “
पशु- पंछी, नर-नारी अहि ऋतुमे सरसता सँ भरि जाइत अछि।विद्याक देवी सरस्वतीक पूजन होइत छनि। पियर वस्त्र धारण कैल जाइत अछि। पियर भोजन बनैल जाइत अछि। बसंतक खास पावनि फगुआ होइत अछि। बसंत नबका एहसास दैत अछि। हमरा सब लेल हितकारिणी होइत अछि।
बसंत ऋतु केँ मधुमास सेहो कहल जाइत छैक। प्रीतिक लता आँखि सँ आँखि मे अंकुरित भ’ सम्पूर्ण मन-प्राण पर पसरि जाइत छैक। जाहिमे राधा कृष्णक अगाध प्रेम वा प्रणय उभयनिष्ठ छलनि। ओ सत्य प्रणय होइत अछि, जाहिमे दूनूक एक रुपता- अभिन्नता भ’ जाइत छैक।कविवर अहि प्रेम केँ अपन शब्दमे कहैत छथि “ अनुखन माधव-माधव रटैत राधा भेल मधाई”।
दाम्पत्यक प्रेम मधुमासक सुन्दर उदाहरण त’ महेशवाणीमे भेटैत अछि।कवि विद्दापति शंकर पार्वतीक प्रेमक बड्ड मनोहर व्यंजना प्रस्तुत कयने छथि। एक पदमे पार्वती आ शंकरक अराधना करबाक चित्रण कविवर कयने छथि। भवानी फूल आओर बेलपत्र लय केँ शंकरक पूजन करबाक हेतु जाइ छथि, शंकर हुनका अपन तीनों आँखि सँ देख’ लगैत छथि। गौरीक चित्त प्रेम विह्वल भ’ जाइत छनि।शरीर मे कम्पन होमय लगैत छनि। हाथक फूल खसिकेँ चारु दिश छितरा जाइत छनि। कवि कहैत छथि जे भगवानक दर्शन सँ गौरीक चित्त विचलित भ’ गेलनि।एहन अवस्था मे जप – तपक ध्यान कतय रहतनि। अहिठामक दाम्पत्य प्रेम अद्भुत छल।
विद्दापतिक पद साहित्य मे कविवर दाम्पत्य प्रेमक आदर्श के उल्लेख केने छथि। दुनू एक दोसराक सुख- सौभाग्य, श्री शोभामे अभिवृद्धि करैत छथि।ई निःस्वार्थ सर्व समर्पणकारी प्रेमक आदर्श थिक जाहिमे प्रेम सँ कोनो बातक अपेक्षा नहि कयल जाइत अछि।अतएव नायिका अपन स्वामी केँ की बुझैत छलीह से द्रष्टव्य थिक- प्रेमक मनोहर रूप
हाथक दर्पन माथक फूल, अंजन मुखक ताम्बुल।।
हृदय मृगमद जीभक हार, देहक सरबस गेहक सार।।
पाखीकें पाँखि मीनक पानि, जीवनक जीवन हम तुँहु जानि।।
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