मिथिला आ विद्वान – व्यंग्य प्रसंगक एक प्रासंगिक पत्र

आदरणीय विद्वान् जी!

ई पत्र जरूरत मे लिखि रहल छी। एकर उत्तर अपनेक व्यवहार मे आबयवला दिन मे देखायत से अपेक्षा राखि पत्र लिखि रहल छी।

महोदय!

अपन मिथिलाक माटि, पानि, हवा, आइग आ आकाश – ई सबटा दिव्य छैक। दिव्यताक प्रभाव हर सन्तान पर, खेत-पथार पर, आवोहवा पर, प्रत्येक निर्माण आ सृजन पर – स्पष्ट देखल जाइछ। ताहि पर सँ पुरखाक देल ओ ज्ञान – प्रकृति संग प्रकृतिक सिद्धान्त पर आ प्रकृति मे मिल जेबाक लेल जिबैत रहू; प्रकृति विरूद्ध संग्राही प्रवृत्तिक लोभी-लालची बनिकय नरकक भागी जुनि बनू – ई सब नीति-नीयत-नियति स्पष्टे अछि। एहेन कोनो विद्यालय नहि जाहि ठाम तेजगर विद्यार्थी नहि होइ। प्रतिस्पर्धा ज्ञानार्जन लेल होइछ। पाणिनी आ कात्यायन बीच वैयाकरणिक सूत्र केर खोज-अनुसन्धान लेल होड़ चलैत अछि। पाणिनी महेश्वर मंत्र पाबि ४ हजार सूत्र सहितक पाणिनीय व्याकरण लिखैत छथि, त कात्यायन पुनः महादेवक अद्भुत कृपा सँ ६ हजार सँ बेसी ‘वार्तिक सूत्र’ लिखि पाणिनीय व्याकरण केँ आर सहज-सुगम बनबैत छथि, आर एहि तरहें व्याकरण व वार्तिक पाबि महर्षि पतंजलि ‘महाभाष्य’ केर रचना करैत छथि। हमर कहबाक तात्पर्य ई अछि जे विद्वान् बनिकय अपने जन्म लेलहुँ आ पुरखाक बाट पर चलि रहल छी, विद्याधन बँटबाक कला धारण कय यथासम्भव योगदान सँ संसार केँ सुन्दर बना रहल छी, ताहि लेल हृदय सँ धन्यवाद।

एकटा शिकायत अछि – अष्टावक्र जेना जनक सभा मे प्रवेश पाबि अपन विद्वता सँ कतेको विद्वान् सभासदक अहंकारी विद्वता केँ ध्वस्त करैत राजा जनकक गुरुक उपाधि सँ अलंकृत् भेलाह, किछु तहिना अपने लोकनि छोट-छोट राजा जनक (वर्तमान संस्था-संगठनादिक प्रमुख) सँ फेसबुकिया शास्त्रार्थ करय लेल शौचालयप्रवास सँ शौच-अशौचक निर्णय करैत रहैत छी से उचित नहि लगैत अछि। पहुँचि गेल करू सभा-दरबार मे, दियौन चुनौती प्रस्तुत-उपस्थित विद्वान् केँ आ सिद्ध करू अपन अष्टावक्रीय पुरुषार्थ आ सिद्धि। नहि तँ झुठे घिनाउ नहि। एखन मिथिला पूर्णरूपेन विखंडित अवस्था मे सौंसे छितरायल मात्र भेटि रहल अछि। एहेन दुर्दशा केकरा कारण भेलैक? सोचू। यदि विद्वानहु बीच पाणिनी-कात्यायन वला प्रतिस्पर्धा नहि रहत आ चोरी-चबारी वला डाक्टरेट-मास्टर्स वला अहंता मात्र भिड़न्त करत त अहाँक विद्वता सँ मैथिली-मिथिलाक हित नहि हेतैक, नोट कय लेब। अतः विद्वताक जे पात्रता छैक, तेकरा कम सँ कम निर्वाह करू हे विद्वान् जी!

अपनेक स्वास्थ्य सदैव अनुकूल रहय, ई मधुमेह आ रक्तचापक युग मे दुनू बात अहाँ केँ परेशान नहि करय। अस्तु!

अपनेक शुभेच्छु,

प्रवीण

हरिः हरः!!