कवि चन्द्र विरचित मिथिला भाषा रामायण
॥अयोध्याकाण्ड॥
।श्लोक।
।शार्दूलविक्रोडित छन्दः।
भाले बालकलाकरं गलगरं वामाङ्गवामाधरं
चञ्चन्मौलिसरिद्वरं वृषचरं सर्व्वप्रदं निर्द्दरम्।
वन्दे पिङ्गजटं मनाहरनटं विश्रान्तिभूसद्वटं
श्रीमन्निष्कपटं सुकृत्तिकपटं भ्राजद्विभूतिच्छटम्॥
।मालिनीछन्दः।
अवतु जलदनीलस्सद्गृही पुण्यशील-
स्त्रिभुवनखलजिष्णू रामचन्द्राख्यविष्णुः।
रघुवरवरजाया सर्व्वसम्पन्निकाया
जनिरखिलसहायाः पातु मान्देवमाया॥२॥
।चौपाइ।
बारह वरष अयोध्यावास । वैदेही संग विविध विलास ॥
श्रीरघुनन्दन भूमिक भार । हरनिहार नरवर अवतार ॥
कहलनि मुनि नारद विधि कान । विधिहुक सभा आन नहि जान ॥
सुरधरणिक अहँ होउ सहाय । कहू सन्देश राम काँ जाय ॥
जे कारण लेलहुँ अवतार । एखनहुँ धरि धरती काँ भार ॥
सीतासहित विपिन कय वास । कयल जाय सुर-अरिक विनाश ॥
विधिक कहल शुनि मुनि मुदचित्त । चलला सुर-अचलाक निमित्त ॥
वीणा सरस राग भल बाज । अति उत्साह देखब विभु आज ॥
मुनि नारदक मनोरथ पूर्ण । अतिथि राम तट से भेल तूर्ण ॥
।दोहा।
अभ्यागत नारद जतय, गृही जतय श्रीराम ।
की अपूर्व आतिथ्य-विधि, विधिसुत प्रभु गुणधाम ॥
।चौपाइ।
रामचन्द्र उठि कयल प्रणाम । कयल वरासन मुनि विसराम ॥
लेल जानकी चरण धोआय । पूजन कयल विहित सन्याय ॥
स्तुति मुनि कयलनि बहुत प्रकार । अपनैँ प्रभु-वर जगदाधार ॥
कहइतछी आगमनक काज । कहय कहल कमलासन आज ॥
कहलनि विधि संक्षेप समाद । राखथु अपन वचन – मर्य्याद ॥
राम कहल हम करब से काज । गेल जाय मुनि द्रुहिण समाज ॥
बिसरल नहि महि किछु वृत्तान्त । हसि हसि कहलनि सीताकान्त ॥
प्रातहि हम जायब वनवास । भावी दशवदनादि विनाश ॥
चौदह वरष वनी बनि रहब । देखब चरित एखन की कहब ॥
तीनि प्रदक्षिण दण्ड प्रणाम । कय नारद गेल विबुधसुधाम ॥
।इति श्रीमैथिलचन्द्रकवि विरचिते मिथिलाभाषारामायणे अयोध्याकाण्डे प्रथमोऽध्यायः।
हरिः हरः!!