मिथिला भाषा रामायण – अयोध्याकाण्ड प्रथम अध्याय

कवि चन्द्र विरचित मिथिला भाषा रामायण

॥अयोध्याकाण्ड॥

।श्लोक।

।शार्दूलविक्रोडित छन्दः।

भाले बालकलाकरं गलगरं वामाङ्गवामाधरं
चञ्चन्मौलिसरिद्वरं वृषचरं सर्व्वप्रदं निर्द्दरम्।
वन्दे पिङ्गजटं मनाहरनटं विश्रान्तिभूसद्वटं
श्रीमन्निष्कपटं सुकृत्तिकपटं भ्राजद्विभूतिच्छटम्॥

।मालिनीछन्दः।

अवतु जलदनीलस्सद्गृही पुण्यशील-
स्त्रिभुवनखलजिष्णू रामचन्द्राख्यविष्णुः।
रघुवरवरजाया सर्व्वसम्पन्निकाया
जनिरखिलसहायाः पातु मान्देवमाया॥२॥

।चौपाइ।

बारह वरष अयोध्यावास । वैदेही संग विविध विलास ॥
श्रीरघुनन्दन भूमिक भार । हरनिहार नरवर अवतार ॥
कहलनि मुनि नारद विधि कान । विधिहुक सभा आन नहि जान ॥
सुरधरणिक अहँ होउ सहाय । कहू सन्देश राम काँ जाय ॥
जे कारण लेलहुँ अवतार । एखनहुँ धरि धरती काँ भार ॥
सीतासहित विपिन कय वास । कयल जाय सुर-अरिक विनाश ॥
विधिक कहल शुनि मुनि मुदचित्त । चलला सुर-अचलाक निमित्त ॥
वीणा सरस राग भल बाज । अति उत्साह देखब विभु आज ॥
मुनि नारदक मनोरथ पूर्ण । अतिथि राम तट से भेल तूर्ण ॥

।दोहा।

अभ्यागत नारद जतय, गृही जतय श्रीराम ।
की अपूर्व आतिथ्य-विधि, विधिसुत प्रभु गुणधाम ॥

।चौपाइ।

रामचन्द्र उठि कयल प्रणाम । कयल वरासन मुनि विसराम ॥
लेल जानकी चरण धोआय । पूजन कयल विहित सन्याय ॥
स्तुति मुनि कयलनि बहुत प्रकार । अपनैँ प्रभु-वर जगदाधार ॥
कहइतछी आगमनक काज । कहय कहल कमलासन आज ॥
कहलनि विधि संक्षेप समाद । राखथु अपन वचन – मर्य्याद ॥
राम कहल हम करब से काज । गेल जाय मुनि द्रुहिण समाज ॥
बिसरल नहि महि किछु वृत्तान्त । हसि हसि कहलनि सीताकान्त ॥
प्रातहि हम जायब वनवास । भावी दशवदनादि विनाश ॥
चौदह वरष वनी बनि रहब । देखब चरित एखन की कहब ॥
तीनि प्रदक्षिण दण्ड प्रणाम । कय नारद गेल विबुधसुधाम ॥

।इति श्रीमैथिलचन्द्रकवि विरचिते मिथिलाभाषारामायणे अयोध्याकाण्डे प्रथमोऽध्यायः।

हरिः हरः!!