लेख
प्रेषित : कीर्ति नारायण झा
स्वर्ग सँ सुंदर मिथिला धाम, मंडन अयाची राजा जनक के गाम, मिथिला के स्वर्ग सँ सुंदर स्थान कहल गेलैक अछि। एहि ठाम विभिन्न प्रकारक संस्कार पावनि तिहार आदि काल सँ मनाओल जाइत रहल अछि। ऋतुक अनुसार एहि ठाम केर पावनि मनाऒल जाइत अछि, जखन भगवान सूर्य मकर राशि मे प्रवेश करैत छैथि आ सूर्य भगवान उत्तरायण होइत छैथि एहि पवित्र अवसर पर अपना सभक ओहिठाम तिला संक्रांतिक पावनि मनाऒल जाइत अछि। एहि पावनि मे आराध्य देव भगवान सूर्य रहैत छैथि। हमरा मोन अछि जे हमर माय पूजा पाठ कयलाक उपरान्त तिल आ चाउर आ गूड़ लऽ कऽ हमरा सभके दैत छलैथि आ पूछैत छलैथि जे हमर तिल बहबें। बच्चा मे एकर अर्थ नहिं बुझियै मुदा मीठ दुआरे ऊपरे मोन सँ कहैत छलियै जे हँ आ पूरा तिल चाउर आ गूड़ खा लैत छलहुँ । मैथिल लक्ष्मी स्त्री घर दुआइर अंगना धोई बहारि नीपी पवित्र कय गोसाऊनिक भोग लेल तिलबा आ चुरलाई पवित्रता सौं बना भगवती घर मे ओरिया के राखि दैत छथि।संक्रान्ति दिन कौआ के डकै से पहिले घरक बुजुर्ग आ कि बच्चा, जवान के त कोनो गप्पे नहिं सब विछाओन सँ धुंध लगले मे उठि नित्यकर्म कऽ माथ पर तील लऽ कऽ स्नान करैत छैथि । शास्त्रक अनुसार उदयाचल सँ पूर्व संक्रांति के स्नान सौं जन्म-जन्मान्तरार्जित संचित पापकर्मक क्षय होई छैक तें प्रबुद्ध मिथिला मे सब कियो स्नान ब्रह्म मुहूर्ते मे करै छथि।मैथिल लक्ष्मी स्त्री त भैर माघ जे संक्रांति सौं शुरू होई छैक नितदिन सूर्योदय सौं पूर्व स्नान करै छथि।भरि माघक स्नान सौं तऽ संचित आ क्रियमान पापकर्मक सेहो क्षय भय जाई छैक तें प्रबुद्धजन मिथिलानी के लक्ष्मीक उपाधि सौं विभूषित केने छथि।
स्नानोपरांत पूर्वहि सौं बनायल घूर पजारि सपरिवार शीतलहरी मे घूरक आनन्द लैत छथि। धियापुता सबके माँ वा बा’ मुरही लाई चुरलाई आ तिलबा सौं भरल मौउनी-बाटी हाथ मे दैत छथिन। नेना सबके इ प्रियगर जलखै तहू पर सौं सपरिवार संगे घूर तपैत, आनन्द विभोर कय दैत छनि। मुदा बदलैत परिपेक्ष्य मे इ सभ एकटा रोमांचित करय बला कथा मात्र रहि गेलैक अछि। शहर मे रहनिहार लोक तिल बहनाइ के अर्थ बिसरि गेल छथिन्ह कारण भौतिकवादी जुग मे सम्बन्ध केर प्रगाढ़ता नहिं रहि गेलैक अछि तेँ तिल बहनाइ अर्थहीन भऽ गेलैक अछि। चूड़लाइ, तिलबा लोक सख सँ बनबैत अछि मुदा एकर आध्यात्मिक महत्व नहिं रहि गेलैक अछि। बहुत गोटे तऽ आब बजार सँ रेडिमेड चूड़लाइ आ तिलकुट मँगा लैत छैथि आ मात्र औपचारिकता निभाओल जाइत अछि। हँ खिच्चड़ि के ब्यवस्था बृहत रूप सँ रहैत छैक आ नव पीढी के लोक एहि पावनि के तिला संक्रांति नहिं अपितु खिच्चड़ि पावनि केर संज्ञा दऽ देने छैक। हमरा तऽ कखनहु काल कऽ इहो संदेह होइत अछि जे हमर सभक आबय बला पीढी एहि पावनि तिहार के बिसरि जायत तें हमर सभक इ नैतिक दायित्व अछि जे अपन धिया पूता के अपन संस्कार आ पावनि तिहार आ ओकर महत्व के विषय मे जानकारी दी तखने अपन सभक मिथिलाक संस्कार आ पावनि तिहार बचि पाओत। स्थिति बड्ड विकराल अछि तेँ हम सभ मैथिल के एक संग एकरा बचएबाक लेल भगीरथ प्रयास करय पड़त ।