गोपाल मोहन मिश्रक एक कविता ” कठपुतलीक शहर “

गोपाल मोहन मिश्रक एक कविता ” कठपुतलीक शहर “

एहि शहर में सभ किछु सही होईत छै
ई कठपुतलीक शहर छै I

कठपुतलीक शहर में
सभ काज सही समय पर होईत छै
कठपुतली,
आनाकानी नहि करैत छै थकान सँ

एतs सभ कनैत रहैत छै
अप्पन-अप्पन हिस्सा लेल
ककरो मरला पर
ककरो दुःख नहि होईत छै
पढ़ायल नहि जाईत छै
कठपुतली के स्कूल में दुःख

एहि शहर में जे खुश अछि
ओ मुस्कुराईत नहि छै
जरुरत सँ बेसी,
फ़ैक्टरी में
लगाओल जाईत छै
हँसब रोकबाक रेगुलेटर,
कठपुतली में
वैधानिक चेतावनी के सँग

एतs गीत नहि
गाओल जाईत छै
कहलौं ने
ई कठपुतलीक शहर छै

एतs मनुक्ख नहि
पाओल जाईत छै सड़क पर
भेटैत अछि ओ ठाढ़ चौराहा पर
स्थिर कठपुतली के जेकाँ I