मैथिली कुमहर के बतिया नहि जे कियो आंगूर देखबिते सड़ि जायत!
अनेकों कुचक्र आ अराजकता सँ गुजरि रहल मैथिली भाषा पर गये दिन किछु न किछु आपत्तिजनक विवाद होइत रहैत अछि। जखन कि मैथिली भाषा विज्ञानक अनेकों कसौटी पर कसाइत आइ एतबा ऊपर धरिक यात्रा कय चुकल अछि जे विश्वक महान् लोकतांत्रिक गणराज्य भारत के संविधानक आठम् अनुसूची मे स्थान पाबि चुकल अछि। संघर्षक कथा बड पैघ छैक। संघर्षक यात्रा १९२० के भारतीय कांग्रेसक अधिवेशन आ नव भारत मे राज्यक परिकल्पना भाषा आधारित हेबाक बादहि सँ मैथिलजन आरम्भ कयलनि। हँ, तखन ओ संघर्ष मे सामान्यजन केँ समेटबाक स्थिति नहि रहबाक कारण ओकरा जनमुखी आ जनभावना अनुरूप नहि हेबाक कारण फजली आयोग सँ नकारल जेबाक आ फेर तरह-तरह के राजनीति के शिकार मैथिली भाषा केँ बनबैत रहबाक कारण एलिट्स (प्रबुद्धजन) धरि मात्र सीमित रहि गेल।
प्रबुद्धजन जे चाहैत छथि से समाज मे होइते टा छैक, ई स्वाभाविक आ प्राकृतिक सत्य थिकैक। अहाँ केँ कतबो कटु लागय, लेकिन बौद्धिकता बिना कोनो प्रगतिशीलताक सपना सपनहि रहि जाइछ। प्रबुद्धजन अपन काज करैत रहल छथि। मैथिलीक माधुर्यता आ लालित्य पर विश्व समुदायक नजरि आकर्षित करैत रहल छथि। मैथिली आइ विश्वक समस्त विकसित विश्वविद्यालयक पुस्तकालय मे अपन पहिचान कायम कएने अछि। एतय अपनहि मे किछु दुर्गन्धित विचार लादैत एखन धरि सुतले अबस्था मे देखाइत अछि किछु लोक, एखन धरि ओ मैथिली केँ विखण्डित करबाक सोच सँ ग्रसित अछि। लेकिन वगैर बौद्धिक आ वैज्ञानिक आधार रखने कोनो तरहक कुत्सित प्रयास ओहिना विफल होइछ जेना भारत मे पहिनहि भ’ चुकल छैक। बहुत रास व्यवधान पार करैत मैथिली कुल २२ भारतीय राष्ट्रीय भाषा मे सम्मानित ढंग सँ स्थान पाबि गेल अछि। बाजारक भाषा भोजपुरी रहितो मैथिली अपन बौद्धिक आधार पर आगू चलि गेल अछि। आब भोजपुरी व अन्य बिहारी-मधेशी भाषा केँ अहाँ रूप तय करू, मानक तय करू, व्याकरण लिखू, साहित्य भण्डार आगू लाउ, आदि अनेकानेक काज करू। एतय नेपाल मे सेहो नव-नव भाषा वैज्ञानिक सब नया-नया कुतर्क करैत मैथिली केँ कमजोर करय लेल विद्यापति तक केँ छीनय चाहि रहल छथि। सिमरौनगढ़क मौलिकता मे भोजपुरी मिश्रण देखबैत अपन बपौती अपनहि सँ बक्र बनबय चाहि रहल छथि, ओ स्वतंत्र छथि जे करथि से करथि। परञ्च मैथिलीक आधार बड उच्च आ क्लिष्ट छैक। एकटा उदाहरण देखू –
पछातिकाल १९३०-४० केर दशक मे भाषाविज्ञानक सुविज्ञ हस्ती डा. सुभद्र झाक प्रयास मादे डा. रामदेव झा सम्पादित पोथी सँ ज्ञात होइत अछि। भाषाविज्ञानक विभिन्न मापदंड व मानक अनुसार डा. सुभद्र झा कोना-कोना मैथिली केँ बोली सँ भाषा हेबाक दस्तावेज तैयार कयलनि ताहि बातक गहींर जनतब भेटैत अछि। १९५८ मे लुजैक एन्ड कम्पनी, लन्दन द्वारा प्रकाशित हुनकर एक पोथी ‘द फोर्मेशन अफ द मैथिली लैंग्वेज’ पर ब्रिटिश विद्वान् वी. मिल्टनर समीक्षा लिखने छथि जे १९६३ ई. मे प्रसिद्ध पुस्तक आर्किव ओरिएन्टलनी मे प्रकाशित अछि। ओ लिखने छथि डा. सुनीति कुमार चटर्जी सुविज्ञ गुरुक अधीन रहि अपन डाक्टर अफ लिटरेचर (डि.लिट्.) के वास्ते अपन मातृभाषा मैथिली लेल थेसिस रूपी कृति ‘The Formation of The Maithili Language’ प्रस्तुत कयलनि। ई मैथिली अध्येता लेल बेहतरीन सन्दर्भ पुस्तक केर रूप मे जगत्प्रसिद्ध अछि। एहि पर कतेको रास वैश्विक शोधकर्ता सब आर गहींर अध्ययन कयने छथि।
एकटा मिल्टनरक समीक्षाक किछेक अंश मात्र पर ध्यान देला सँ मैथिली भाषा मे डा. सुभद्र झा जेहेन परम् विद्वान् व्यक्तित्वक थेसिस आधारित पोथी आ ताहि मे मैथिलीक वैयाकरणिक दृष्टि सँ आ भाषा-विज्ञानक दृष्टि सँ कतेको रास पक्ष स्वतः स्पष्ट भ’ जाइत अछिः
“The author deals especially with Maithili Phonology (pp. 56-194), formative nominal affixes (pp. 195-271), declensions of nouns (pp. 272-354), adjectives (pp. 355-380), numerals (pp. 381-384), pronouns (pp. 385-442), the verb (pp. 443-561), and with uninfected parts of speech (pp. 562-578). Worthy of praise is also the fact that some attention to the syntax (pp. 579-618) and the semantics (pp. 619-638) is paid here. A large introduction (pp. 1-47) has two appendices, namely a short folk-tales in fourteen Maithili dialects (pp. 48-53) and the modern Maithili script compared to Bengali and Devanagari (pp. 54-55).
(लेखक विशेष रूप सँ मैथिली स्वर-विज्ञान (पृष्ठ 56-194), स्वरूपात्मक नामवाचक प्रत्यय (पृष्ठ 195-271), संज्ञाक निपात (पृष्ठ 272-354), विशेषण (पृष्ठ 355-380), संख्या (३८१-३८४), सर्वनाम (पृष्ठ ३८५-४४२), क्रिया (पृष्ठ ४४३-५६१), आ वाणीक असंक्रमित अंग (पृष्ठ ५६२-५७८) सहित पर विशद् विचार रखलनि अछि। प्रशंसनीय ईहो अछि जे एतय वाक्य रचना (पृष्ठ 579-618) आ शब्दार्थ (पृष्ठ 619-638) पर सेहो किछु ध्यान देल गेल अछि। एकटा पैघ परिचय (पृष्ठ 1-47) मे दू टा परिशिष्ट अछि, चौदह मैथिली बोली मे एकटा छोट लोक-कथा (पृष्ठ 48-53) आर बंगला एवं देवनागरीक तुलना मे आधुनिक मैथिली लिपि (पृष्ठ 54-55) ।)
एहि तरहें, सब कियो काज करू। अपन मान-मर्यादा केँ आगू बढाउ। बकवास आ बकवादी बनिकय मैथिली संगे बखरा बाँटय आयब त गुरुजीक छौंकी खायब।
हरिः हरः!!