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सम्पति के चारि भाग मे बाँटी कए खर्च करैक चाही

लेख

प्रेषित : कीर्ति नारायण झा

सम्पत्ति पर मूलतः चारि गोटे के अधिकार होइत छैक – धर्म के, अग्नि के, चोर के आ राजा के। तीर्थाटन अथवा धार्मिक अनुष्ठान मे जे हमरा लोकनि खर्च करैत छी ओ धर्म के छियन्हि, जे सम्पत्ति जरि जाइत अछि ओ अग्नि के, सम्पत्ति चोरी भऽ गेल तऽ ओ चोर के हिस्सा छलैक आ जे कोनो प्रकारक मालगुजारी अथवा दंड देवा मे ब्यय होइत अछि ओ राजा के हिस्सा। एहि चारू मद मे खर्च भेलाक उपरान्त जे सम्पत्ति बचैत अछि ओकरा हमरा लोकनि दैनिक खर्च के रूप उपयोग करैत छी। धन संचय मनुखक जीवन मे बहुत आवश्यक छैक। ओना जीवन के कोनो ठीक नहिं मुदा भविष्य के लेल किछु संचय आवश्यक मुदा पेट काटि कऽ नहिं। मनुखक जीवनमे अनेक प्रकारक आवश्यकता होइत छैक जाहि मे आवश्यक आवश्यकता के पूरा कयनाइ परमावश्यक। हँ विलासिता सम्बन्धी आवश्यकता मे कटौती कयल जा सकैत अछि । भोजन, वस्त्र आ आवास इ तीनू आवश्यक आवश्यकताक रूप मे अबैत छैक। आव भोजन साधारण रूप सँ भात आ रोटी सँ सेहो भऽ सकैत अछि आ पंचमेर सँ सेहो। तहिना वस्त्र अपन औकादि के हिसाब सँ पहिरल जा सकैत अछि आ आवास पर सेहो इ नियम लागू होइत छैक। अर्थात पैएर ओतबे पसारवाक चाही जतेक लम्बा चदैर हुए नहिं त “यावत जीवेत सुखम् जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत बला स्थिति भऽ जाइत छैक जाहि मे जिनगी ओझरा कऽ रहि जाइत छैक। धिया पूता पाइ के अभाव मे अशिक्षित रहि जाइत अछि जाहि सँ परिवार के सदस्य के भविष्य अंधकारमय भऽ जाइत छैक। तें जीवन के संतुलित रूप सँ चलाओनाइ सभ सँ पैघ कला होइत छैक। जेना गाड़ी चलयबाक काल गाड़ी के चालक बामा आ दहिना देखैत गाड़ी चलबैत छैथि तहिना परिवार के गाड़ी सेहो ओहिना सावधानी पूर्वक चलबय पड़ैत छैक। हँ जाहि ठाम खर्च कयनाइ आवश्यक छैक ओतय कंजूसी एकदम नहिं होयबाक चाही जेना धिया पूता के शिक्षा नहिं तऽ अपना सभक ओहिठाम एकटा कहबी छैक जे “पूत कपूत तऽ किए धन संचय”? एहि ठाम कपूत शब्द के अर्थ अशिक्षित सँ कयल गेल छैक जे धिया पूता के पढाई पर अवश्य खर्च होयवाक चाही मुदा सावधानी पूर्वक। मनुखक जीवन जीवाक कला एकटा बहुत पैघ मैनेजमेंट होइत छैक आ जे एहि मैनेजमेन्टमे सफल होइत अछि ओ लक्ष्य के प्राप्ति करैत अछि अन्यथा कियो शुरू में खसि पड़ैत अछि तऽ कियो बीच मे तऽ कियो लक्ष्य प्राप्त करवा सँ पहिले, तें एहि जीवन के संतुलित बना कऽ चलनाइ एकटा कुशल संचालक के उपर निर्भर करैत छैक…….।

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