गोपाल मोहन मिश्रक दू गोट कविता “प्रतीक्षा” आ “दु:खक रस्ता”
प्रतीक्षा
सूर्योदय सँ
सूर्यास्त के बीच
व्यस्त जीवन के त्रासदी सँ दूर
ओ सोहनगर नींद के क्षण
आ
सपना के संगमरमर सँ निर्मित
कल्पना के ताजमहलक विचरण
हमरा यथार्थ सँ कतेक दूर लs जाईत अछि
लेकिन
सूर्य के पहिल किरण
छिन्न-भिन्न कs दैत अछि
चिन्तनमुक्त क्षण के
आ
हमरा लौटि आबs पड़ैत अछि
सपना सँ दूर
भावनारहित
मशीनी जीवन के धरातल पर
पुनः
सूर्यास्त के प्रतीक्षा में
क्षण-प्रतिक्षण…..
दु:खक रस्ता
दु:खक सभ रस्ता एक सन होईत छैक
ओकरा पर नहि प़ड़ैत छैक वृक्षक दोस्त-छाया
नहि प़ड़ैत छैक सड़क के पड़ोस में कोनो पुरान मित्रक नया मकान
नहि होईत छैक कोना में दुबकल उधार देबs वाला कृपालु दोकानदार
नहि अबैत छैक ओहि रस्ता पर बृहस्पतिक उपवास रखवाबs वाला देवताक मंदिर
ओतs आबि कs सुस्ताईत हेतै-
रोजमर्रा सँ उकता कs आयल जिनगी
ओतs गप्प लगैत हेतै-
दुनिया भरि सँ धकियायल जवान सपना
ओतs टहलैत हेतै-
अपनहि दुनिया सँ ख़ारिज भs चुकल स्मृतिजीवी बुजुर्ग
दु:खक रस्ताक भूगोल सीधा होईत छैक
लेकिन कठिन होईत छैक इतिहास
दु:खक रस्ता पर फलैत-फूलैत छैक भटकल आत्मा
दु:खक रस्ता प़ड़ैत हेतै निर्जन वनप्रांत में,
ओतs जतs हेतै एकटा पुरान जीर्ण-शीर्ण शिवमंदिर I