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बहुल्य समाज लेल सेहो भाषिक चिन्तन अनिवार्यः से लुटेरा एनजीओ सँ सम्भव नहि

निरीह जनता आ लुटेरा अभियान

भाषाक नाम पर सेहो निरीह जनता दुहल जा रहल अछि। मैथिलीभाषाक संरक्षण, संवर्धन आ प्रवर्धनक वास्ते वांछित सृजनधर्मक अलावे आर कोनो विकल्प नहि, लेकिन भ्रष्ट व्यवस्था आ सौदाबाजी सँ आक्रान्त अछि हमरा सभक वर्तमान।

Photo Courtesy: Global Village Language Dot Com

वर्तमान वैश्विक गाम (ग्लोबल विलेज) केर नव मानवीय संसार मे कतेको रास भाषाक अस्तित्व समाप्त भेल जा रहल छैक। गोटेक महत्वपूर्ण भाषा मात्र अपन वर्चस्व बनबैत-बढ़बैत अन्य भाषाक अस्तित्व केँ मोटामोटी साफ केने जा रहल छैक।

गौर कय केँ देखबय त भाषा वैह बढ़ि रहल अछि जे अपन भौगोलिक सीमा प्रति दृढ़ विचार रखैत अछि। जेकर सम्प्रभुता भाषहु धरि नहि, ओकर प्रादेशिक अवधारणाक बात रिक्त कल्पना मात्र होइत छैक।

आइ मिथिला एहि दयनीय अवस्था मेँ बाझल अछि। कतेको सदी सँ मिथिला भूगोलविहीन अछि।

एहि दुरुहकाल मे पर्यन्त भाषा-साहित्य-संस्कृति लेल जे जेना जागल छी से प्रणम्य छी। हमर-अहाँक समाज पूर्णरूपेन बाहरी भाषाक अतिक्रमण मे जकड़ल जा चुकल अछि, जे-जेना सम्भव भ’ रहल अछि से-तेना करय जाउ आ बस जाग्रत समाज बनिकय रहय जाउ।

मात्र उत्सवधर्मी बनबाक आ एहि मे परदेशिया नाचक पाछाँ बेहाल हेबाक कारण सेहो हमर-अहाँक ई दुरावस्था भेल अछि जे अपनहि मिथिला मे भाषिक परतंत्रताक भोग भोगि रहल छी।

किछु लोक ढोले-बाजा पीटिकय भाषा केँ बचेबाक बात करैत अछि। किछु लोक हमर-तोहर मे फँसिकय अपन बोली-शैलीक विविधताक महत्व नहि बुझि ओकरा भिन्नताक चोला ओढ़ाबैत मैथिली सँ अलग अपन कित्ता काटय लेल आतुर अछि। जखन कि मूल बात (भाषाक महत्व) सँ बहुल्यजन अनभिज्ञ अछि।

अपन भाषा मे शिक्षा ग्रहण करबाक बड़का-बड़का संवैधानिक-वैज्ञानिक दाबी के सिवा वास्तविकता मे ओकरा आने-आने भाषाक मुंह ताकैत पढ़ि-लिखि दोसर सँ प्रतिस्पर्धा करैत कोहुना जीवनयापन केर चुनौती छैक। भौतिक सुख-सुविधा मात्र सर्वोपरि अभीष्ट रहल संसार मे मातृभाषा आ एकर महत्ता सँ जन-जन केँ जाग्रत करब बहुत पैघ चुनौती छैक।

यथार्थता ईहो छैक जे मिथिलाक पौराणिक सीमा मे आइ एकल मैथिलीभाषीक बसोवास नहि अछि। आइ विविध भाषा, बोली-शैली आ संस्कृति-धर्म आदि सँ पुष्पित-पल्लवित अछि ई साविकक मिथिला। एतय राजस्थानक मारवाड़ी, गुजरातक सिन्धी, सिन्धक पंजाबी, बंगालक बंगाली, नेपालक नेपाली आदि विभिन्न भाषिक समुदाय केर निवास अछि आ से कोनो मड़ौसी वला सँ कमतर नहि, बल्कि सच देखब त आर्थिक रूपे बेसी सबल-सुदृढ़ आ साकांक्ष अछि ई अन्य समुदाय।

मूलवासी सँ बेसी मजबूती सँ ओ सब स्थापित भेल अछि एहि भूगोल मे। उल्टा मैथिलीभाषी समुदाय केँ अपन राज-काज मे राखिकय अपन शासन चला रहल अछि, जखन कि मिथिलाक मूलवासी दर-दर भटकिकय अपन रोजी-रोटी लेल घर सँ दूर प्रवासक्षेत्र मे लल्ला-बेथल्ला भेल अछि।

एहेन स्थिति-परिस्थिति मे भाषाक महत्व बुझबाक-बुझेबाक स्थिति केहेन हेतय से बुझिते हेबय। तथापि समाजक गोटेक अगुआ आ राज्य संचालनक नीति सँ सुपरिचित गोटेक राजनीतिकर्मी व विभिन्न राजनीतक दलक कार्यकर्ता सब मातृभाषाक चिन्ता करैत देखल जाइछ।

अफसोस जे एहेन चिन्ता सिर्फ मंच सजाकय आ छौंड़ा-छौंड़ी नाच कय केँ बुझेबाक यत्न कयल जाइछ। निरीह मैथिल जनता केँ नेता-अभिनेता सब जे दुहने हो, आइ-काल्हि एनजीओ टाइपक अभियानी सब सेहो बदतर ढंग सँ दुहय लागल अछि। एहि एनजीओ सभक रेकर्ड देखब त घोर आश्चर्य मे पड़ि जायब, बैनर पर लिखल बात आ यथार्थ प्रस्तुति मे जमीन आसमान के फर्क! विडम्बना कतेक कहू!

सजग समाज एहेन एनजीओ सभक पहिचान करय आ यथोचित अन्तर्क्रिया सँ अपन भाषिक एकजुटता आ सामुहिकता प्रति साकांक्ष बनय। बस। ठग-लुटेरा सँ सावधानी आवश्यक, नहि त भाषाक उपकारक बदला आर बेसी अपकार होयबाक खतरा तय अछि।

हरिः हरः!!

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