Search

अप्पन भाषाक जीवित राख के लेल समाज के सब सदस्य के एकजुट भय आगू बढ़ पड़त।

#लेखनीक_धार
ज्ञानदा बहिन बहुत सुंदर विषय देलैन
संविधानक आठम अनुसूची में मैथिलीक मान्यता भेट चुकल अई। अधिकार तखने भेटत जखन अपने सजग होयब।
मैथिली भाषा शामिल भेला के वाबजूद हम्मर अधिकार हिन्दी स कम किया अई पर विचार विमर्श कर के जरूरत अई। मुख्य कारण अई हम सब अप्पन भाषा के लेल ओतेक संघर्षरत नई छी जतेक हेबाक चाहि।
अभिभावक सबके पहिल कर्तव्य छैन कि बच्चाक नामांकन के समय अप्पन मातृभाषा मैथिली राखैथ तखन पूर्ण अधिकार भेटत।
मैथिली समृद्ध भाषा अछि अई में कोनो सक नई, लेकिन पठन-पाठन के मुताबिक मैथिलीक प्रति अरूचि सशंकित करैत अछि।
मिथिलांचलक बच्चाक भविष्य उज्जवल होयत, रोजगार से हो भेटत। अई लेल एकसंग आवाज उठाऊ। सब अंग्रेजी के पाछू भागब त कोना होयत।
संविधान के भावना के अनुरूप भाषा के विकास के लेल अपनहि पहल कर पड़त। नामांकन के समय शिक्षण संस्थान स सम्पर्क करि अभिभावक आ युवावर्ग जवाबदेही लकऽ मैथिली विषय रखनाई नितांत आवश्यक अछि।
भारतीय संविधान में त्रिभाषा फॉर्मूला के अपनावल गेल अई। कोनो बच्चा के तीन भाषा के पढ़ के छूट अई। अई में मातृभाषा आ राष्ट्र भाषा के संग एकटा संपर्क भाषा पढ़ल जा सकैत अछि। बच्चा मातृभाषा के स्थान पर कोनो अन्य भाषाक प्रयोग करता तऽ जवाबदेह के होयत। ताँ लक अप्पन भाषाक जीवित राख के लेल समाज के सब सदस्य के एकजुट भय आगू बढ़ पड़त।
ममता झा
डालटेनगंज

Related Articles