गिद्धों का विलुप्त होना मानव और पर्यावरण के लिए घातक

लेख

– डॉ ए कुमार, एम.बी.बी.एस, एम.डी., एम पी एच

(संस्थापक, पर्ज फाउंडेशन, श्रीकांन्ठ प्राइवेट लिमिटेड, अन्वी ग्रुप ऑफ एजुकेशनल ट्रस्ट, स्वामी विवेकानन्द एजुकेशनल ट्रस्ट)

गिद्धों का विलुप्त होना मानव और पर्यावरण के लिए घातक

2003 के बाद भारत समेत दुनियाभर से गिद्ध विलुप्त होते जा रहे हैं। भारतीय गिद्धों का विलुप्त होना मनुष्य और पर्यावरण संरक्षण के लिए घातक है, क्योंकि गिद्ध प्राकृतिक तौर पर सफाई में मदद करते हैं। उनके आहार में मुख्य तौर पर मरे हुए जानवर शामिल होते हैं।

एक शोध के अनुसार गिद्धों की कमी का सबसे बड़ा कारण तस्करी और मवेशियों के इलाज में इस्तेमाल डाइक्लोफेनाक नामक दवा है। इस दवा से मवेशी और मनुष्य दोनों के लिए कोई खतरा नहीं था, लेकिन जो पक्षी डाइक्लोफेनाक से उपचारित मरे हुए जानवरों को खाते थे उन पक्षियों के गुर्दे तेजी से खराब होने लगते थे और कुछ ही हफ्तों में उनकी मृत्यु हो जाती थी। यह शोध अध्ययन प्रोफेसर योगेश कुमार पटेल ने प्रसिद्ध लेखक बी आर नलवाया के शोध निदेशन में किया है।

इसी तरह का एक अध्ययन मिस्र में भी किया गया है। अध्ययन के अनुसार यदि शहरी लैंडफिल नए यूरोपीय नियम के तहत समाप्त कर दिए जाते हैं तो मिस्र के गिद्ध जैसे कुछ लुप्तप्राय पक्षियों को भविष्य में जीवित रहने के लिए अपने आहार पैटर्न में बदलाव करने की जरूरत पड़ेगी।

योगेश के अनुसार गिद्धों की संख्या कम होने से मरे हुए जानवरों को जंगली कुत्तों और चूहों ने खाना शुरू कर दिया है, लेकिन ये गिद्धों की तरह शव को पूरी तरह खत्म करने में सक्षम नहीं होते हैं। जबकि गिद्धों का समूह एक जानवर के शव को लगभग 40 मिनट में साफ कर सकता है क्योंकि गिद्ध झुंड में रहते हैं। गिद्धों का समूह एक किलोमीटर की ऊंचाई से भी मरे हुए जानवर की गंध सूंघ लेता है और उसे देख लेता हैं। काले और कत्थई रंग के गिद्ध ज्यादा तेजतर्रार होते हैं। इनके पंख 5 से 7 फीट तक होते हैं एवं इनका वजन 6 से 7 किलोग्राम तक होता है।

संरक्षण की दिशा में पिंजौर बेहतरीन प्रयास…गिद्धों के संरक्षण की दिशा में पिंजौर सबसे बेहतरीन प्रयास है। यहां पिछले 22 साल में 365 गिद्धों का जन्म हो चुका है। यहां विलुप्त होती हुई तीन प्रजाति के गिद्धों का प्रजनन केंद्र है। इसके अलावा भोपाल सहित देशभर में करीब 5 प्रजनन केंद्र बनाए गए हैं।

खाड़ी देशों में होती है तस्करी

गिद्धों की तस्करी भी इनकी घटती संख्या का मुख्य कारण है। इसका पहला मामला खंडवा में सामने आया था। खाड़ी देशों में लोग तंत्र-मंत्र के लिए मुंह मांगी कीमत देते हैं। इसके चलते भारत से गिद्धों को समुद्र के रास्ते दुबई और अन्य खाड़ी देशों में तस्करी होती है। वहीं, देशभर में हो रहा कीटनाशकों का इस्तेमाल भी गिद्धों के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा है। 17 मार्च, 2022 को असम के कामरूप जिले में 97 गिद्धों की मौत कीटनाशक के छिड़काव वाले शव खा लिए थे। किसानों ने ये कीटनाशक आवारा कुत्तों को मारने के लिए रखे थे और पशुओं के शवों पर छिड़के थे।

दुनियाभर में 23 प्रजातियां

गिद्धों की संख्या तेजी से घट रही है। इसका कारण प्रदूषण और घटते जंगलों के चलते नष्ट होते उनके प्राकृतिक आवास हैं। मध्य प्रदेश में अब केवल 6700 गिद्ध बचे हैं व देश में भी अपेक्षाकृत इनकी संख्या कम हुई है। दुनिया भर में 23 प्रजाति के गिद्ध (वल्चर) पाए जाते हैं, जिसमें से भारत में केवल 9 प्रजातियां है। राजस्थान के झालावाड़ जिले में गिद्धों की लॉन्ग बिल्ड वल्चर प्रजाति पाई जाती है। अब लॉन्ग बिल्ड गिद्ध राजस्थान के अलावा महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश में ही बचे हैं। मंदसौर जिले का गांधीसागर अभयारण्य वन्यजीवों के लिए स्वर्ग साबित हो रहा है। 6 फरवरी 2021 में गांधीसागर अभयारण्य में 684 गिद्ध मिले। वैसे तो सन 2010 के पूर्व गिद्धों की संख्या में गिरावट आई थी लेकिन पिछले वर्षों की तुलना में अभी यहां कुछ वृद्धि हुई है।