भारत में एचआईवी-एड्स (HIV-AIDS) की बढ़ती चिंता

आलेख

भारत में एचआईवी-एड्स (HIV-AIDS) की बढ़ती चिंता

– डा ए कुमार, एम.बी.बी.एस., एम.डी., एम.पी.एच

एचआईवी-एड्स HIV-AIDS को यदि वर्तमान समय में दुनिया की कुछ प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों में शामिल किया जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वर्ष 2018 के अंत तक वैश्विक स्तर पर लगभग 38 मिलियन लोग HIV से प्रभावित थे।
आँकड़ों पर गौर करें तो इसके कारण अब तक दुनिया भर में तकरीबन 35 मिलियन लोगों की मृत्यु हो चुकी है। यदि भारत की बात करें तो देश में HIV-AIDS के रोगियों की संख्या कुल जनसंख्या का लगभग 0.26 प्रतिशत (2.1 मिलियन) है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इससे लड़ने के लिये अब तक कोई प्रयास नहीं किया गया है। यह वैश्विक प्रयासों का ही नतीजा है कि वर्ष 2018 में निम्न और मध्यम आय वाले देशों के तकरीबन 62 प्रतिशत वयस्कों और लगभग 54 प्रतिशत बच्चों को HIV-AIDS संबंधी स्वास्थ्य सुविधाएँ प्राप्त हो पा रही थीं।

HIV के प्रकार -HIV के सामान्यतः 2 प्रकार होते हैं:
HIV-1
HIV-2

HIV-1 को विश्व भर में अधिकांश संक्रमणों का प्रतिनिधित्व करने वाला प्रमुख प्रकार माना जाता है, जबकि HIV-2 के रोगियों की संख्या काफी है और यह मुख्यतः पश्चिम एवं मध्य अफ्रीकी क्षेत्रों में पाया जाता है।

गौरतलब है कि इन दोनों ही प्रकार के HIVs से AIDS हो सकता है, परंतु HIV-1 की तुलना में HIV-2 का प्रसार काफी कठिन है।

भारत में HIV-AIDS?

HIV-AIDS के संदर्भ में भारत की स्थिति काफी सकारात्मक है, परंतु फिर भी देश में निरंतर सतर्कता और प्रतिबद्ध कार्रवाई की आवश्यकता है।

विदित हो कि भारत में HIV का पहला मामला वर्ष 1986 में सामने आया था। इसके बाद यह वायरस पूरे देश में तेज़ी से फैला और 135 अन्य मामले सामने आए, जिनमें से 14 पहले ही एड्स से प्रभावित हो चुके थे।

वर्तमान समय में प्रत्येक 10000 व्यक्तियों में से 22 व्यक्ति HIV से संक्रमित हैं, जबकि वर्ष 2001-03 के बीच यह संख्या 38 के आस-पास थी।

भारत में तकरीबन 21.40 लाख लोग HIV-AIDS से संक्रमित हैं और देश में हर साल HIV संक्रमण के तकरीबन 87,000 मामले दर्ज किये जाते हैं। साथ ही देश में AIDS के कारण सालाना 69,000 लोगों की मृत्यु होती है।
HIV-AIDS से प्रभावित कुल लोगों में तकरीबन 8.79 लाख महिलाएँ हैं।

मिज़ोरम में HIV से संक्रमित लोगों की संख्या सबसे अधिक है और यहाँ प्रत्येक 10000 व्यक्तियों में से 204 व्यक्ति HIV से संक्रमित हैं।

वैश्विक स्तर पर HIV-AIDS

इस महामारी की शुरुआत के बाद से अब तक लगभग 70 मिलियन से अधिक लोग HIV वायरस से संक्रमित हो गए हैं और इसके कारण लगभग 35 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई है।
HIV निरोधक सेवाएँ न मिलने के कारण वर्ष 2018 में लगभग 770 000 लोगों की मृत्यु हो गई और लगभग 1.7 मिलियन लोग संक्रमित हुए।

ध्यातव्य है कि अफ्रीकी क्षेत्र HIV से सबसे अधिक प्रभावित है और वहाँ प्रत्येक 25 में से एक 1 व्यस्क HIV से संक्रमित है।
हालाँकि बीते कुछ वर्षों में इस संदर्भ में किये गए प्रयासों के कारण वैश्विक स्तर पर HIV-AIDS से लड़ने में काफी मदद मिली है और HIV संक्रमण को वर्ष 2000 से वर्ष 2018 के बीच 37 प्रतिशत तक कम किया जा सका है।

एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी (ART) के कारण 13.6 मिलियन लोगों की जान बचाई जा सकी है और साथ ही HIV से संबंधित मृत्यु के आँकड़ों में 45 प्रतिशत की गिरावट आई है।
बीते कुछ समय में इस संबंध में कुछ प्रभावी दवाओं की खोज भी की गई है।

UNAIDS की हालिया रिपोर्ट के अनुसार HIV से प्रभावित लगभग 38 मिलियन में से 24 मिलियन लोग ART प्राप्त कर रहे हैं जो कि 9 वर्ष पहले मात्र 7 मिलियन थे।

HIV-AIDS का प्रसार

सामान्यतः HIV-AIDS का प्रसार रक्त, वीर्य, ​​योनि स्राव और माँ के दूध आदि के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे में होता है।
HIV-AIDS के प्रसार का सबसे प्रमुख कारण असुरक्षित यौन संबंध को माना जाता है। गौरतलब है कि मिज़ोरम राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी (MCACS) द्वारा एकत्रित आँकड़ों के अनुसार, मिज़ोरम में वर्ष 2006 से मार्च 2019 तक पाए गए एड्स प्रभावित व्यक्तियों में 67.21 प्रतिशत व्यक्ति असुरक्षित यौन संबंधों के कारण प्रभावित हुए थे।

HIV संक्रमित रक्त के संपर्क में आने से भी इसके प्रसार का खतरा बढ़ जाता है। हालाँकि HIV संक्रमण का पता लगाने के लिये रक्त की जाँच के माध्यम से HIV संक्रमण के जोखिम को काफी हद तक कम कर दिया है।

किसी ऐसे व्यक्ति के साथ सुई, सीरिंज या ड्रग आदि साझा करना जो कि इस वायरस से संक्रमित है, भी इस रोग के जोखिम को बढ़ा सकता है।

HIV वायरस से ग्रसित माताओं के माध्यम से भी यह रोग उनके शिशुओं तक पहुँच सकता है।

HIV-AIDS के लक्षण

कई अध्ययनों में सिद्ध किया गया है कि HIV से संक्रमित तकरीबन 80 प्रतिशत लोगों के शरीर में वायरस के प्रवेश के लगभग 2-6 सप्ताह बाद एक्यूट रेट्रोवायरल सिंड्रोम (Acute Retroviral Syndrome) नामक लक्षण विकसित होते हैं।
शुरुआती लक्षणों में बुखार, ठंड लगना, जोड़ों में दर्द, मांसपेशियों में दर्द, गले में खराश, बढ़ी हुई ग्रंथियाँ, थकान, कमज़ोरी और वज़न कम होना आदि शामिल हैं।

ध्यातव्य है कि कई बार व्यक्ति लंबे समय तक किसी लक्षण का अनुभव किये बिना भी HIV के वायरस से ग्रसित हो सकता है। इस दौरान वायरस विकसित होता है एवं प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुँचाता है।

रोकथाम के प्रयास

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (NACP)

वर्ष 1986 में HIV संक्रमण के पहले मामले की रिपोर्ट करने के कुछ समय बाद ही भारत सरकार ने एक राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (NACP) की स्थापना की, जो अब स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत एड्स विभाग बन गया है।

UNAIDS

UNAIDS नए HIV संक्रमणों को रोकने की दिशा में कार्य कर रहा है। इसके अलावा UNAIDS यह भी सुनिश्चित करता है कि HIV से संक्रमित सभी लोगों की HIV उपचार तक पहुँच प्राप्त हो। UNAIDS यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रहा है कि वर्ष 2020 तक लगभग 30 मिलियन लोगों को इलाज की सुविधा प्राप्त हो सके। इस कार्य हेतु UNAIDS द्वारा 90–90–90 लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस लक्ष्य के अनुसार, वर्ष 2030 तक यह सुनिश्चित किया जाना है कि 90 प्रतिशत लोग अपनी HIV स्थिति जान सकें, पॉजिटिव HIV वाले 90 प्रतिशत लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाएँ पहुँच सकें और इलाज तक पहुँच प्राप्त 90 प्रतिशत लोगों में से वायरस के दबाव को कम किया जा सके।

SDG 3.3

वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र (UN) के सदस्य देशों द्वारा अपनाए गए सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) में भी वर्ष 2030 तक एड्स, तपेदिक और मलेरिया महामारियों को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

HIV और AIDS (रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 2017
सितंबर 2018 से लागू यह कानून देश में HIV और AIDS के प्रसार को रोकने और नियंत्रित करने का प्रयास करता है। साथ ही अधिनियम HIV और AIDS से संक्रमित व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने का कार्य भी करता है। इस अधिनियम में ऐसे व्यक्तियों के उपचार के संबंध में गोपनीयता प्रदान करने का भी प्रावधान किया गया है। इसमें HIV और AIDS से संबंधित शिकायतों के निवारण तंत्र का भी प्रावधान है।

चुनौतियाँ

AIDS के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में पिछले 20 वर्षों में बहुत सफलता हासिल की गई है, परंतु हाल के कुछ वर्षों में यह प्रगति धीमी होती दिखाई दे रही है।

आँकड़ों के अनुसार, 2018 के अंत तक HIV से संक्रमित सभी व्यक्तियों में से 79 प्रतिशत को ही इस तथ्य के बारे में पता था, 62 प्रतिशत तक ही उपचार सेवाएँ पहुँच पाई थीं और केवल 53 प्रतिशत संक्रमित लोगों के वायरस के दबाव को कम किया जा सका था। ऐसे में 90–90–90 लक्ष्यों की प्राप्ति मुश्किल दिखाई दे रही है।

अध्ययन के अनुसार, विश्व में केवल 19 देश ऐसे हैं जो वर्ष 2030 तक एड्स, तपेदिक और मलेरिया महामारियों को समाप्त करने के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।

भारत में हम आज भी HIV-AIDS से जुड़े सामाजिक भेदभाव को समाप्त नहीं कर पाए हैं।

अब तक HIV-AIDS को सार्वजनिक स्वास्थ्य गतिविधियों की मुख्यधारा में एकीकृत नहीं किया जा सका है।