प्रेमकथाः जबानी दीवानी

कथा

– प्रवीण नारायण चौधरी

जबानी दीवानी

सही छय जे जबानी सब दिन एक रंगक नहि रहय छय आ मन कहियो बूढ़ नहि होइ छय। मन आत्माक हाथ बुझू! बुद्धि सेहो आत्माक हाथे समान होइछ। लेकिन ई साधना सँ बदलैत रहैछ आ अन्य मित्र यथा प्राण, ज्ञान व कर्म केँ तदनुकूल प्रभावित करैत जीवन जियैत रहैछ। आइ बात करब ‘जबानी’ सँ जुड़ल एक अजीब दिवानगी केर।

अति सुन्दरी रमोला बड नीक गायिका छल। तहिया नवे-नव नगर मे महफिलक माहौल शुरू भेले छलैक। महफिल मे गायिका छल ओ से मजबूरी रहैक। अपन आजीविका कोनाहू कियो चला सकैत अछि, गायन त प्रतिष्ठित पेशा छलैक। परञ्च महफिल मे गायिका प्रति बहुतो लोकक नजरि खराब रहल करैत छैक। रमोला एकर शिकार भेल करय, तथापि अपन जीवनयापन लेल नकली हँसी आ प्रेम लूटबैत महफिल के नायिका बनल करय।

एकटा नायकक प्रवेश महफिल मे शुरू भेलैक। टेबुल पर बैसैत देरी रमोला अपन तीर चलबय आ नव-नव दीवाना बनबैत महफिल केँ नगर मे लोकप्रिय बनबय। अपन धर्म नीक सँ निभाबैत छल ओ। एहि नायकक प्रवेशक संगहि गीत शुरू भ’ जाइक् – ‘पहले प्यार का पहला गम, पहली बार है आँखें नम, पहला है तन्हाई का ये मौसम, आ भी जाओ वर्ना रो देंगे हम’।

एक दिन, दुइ दिन, आ फेर लगातार….! ओ गीत नायकक हृदयतल पर तेना उतरि गेलैक जे आब अबैत देरी अन्य गायिकाक पार बितबाक आ रमोलाक गायनक इन्तजार करय लागल। नायकक नजरि पर चढ़ि गेल रमोला। नायक धीरे-धीरे सही लेकिन गौर कयलक आ रमोला केँ अपन नायिका बुझय लागल। फेर कि छलैक। महफिलक धर्म, महफिलक मर्म – प्रेम आ दिवानगीक एकटा कहानी शुरू भ’ गेलय। शराब आ शवाब दुनूक पैमाना (पेक) चढ़ायब शुरू कय देने छल ओ। नायिका नायकक नजरि पर तेना चढ़ि गेल जे नायकक सबटा होश खत्म! नायकक पीबाक पैमाना बढ़य लगलैक। बढ़ैत-बढ़ैत एतबा बढ़ि गेलैक जे ओकरा अपन असल ओकादि तक बिसरा गेलैक।

रमोला केँ प्रस्ताव राखबाक लेल आतुर ई नायक बस पिबैत-पिबैत अपन सबटा तत्त्व तक केँ पीबि गेल। अपना हिसाबे रमोला केँ बहुते बेर प्रस्ताव देलक, कहियो टिप्स दय कय, कहियो स्टेज शो खत्म कय केँ जाइत रमोलाक बाट रोकिकय, कहियो हाथ जोड़िकय अपन टेबुल पर बैसाकय… ओ मौन भाव सँ कहबाक अथक कोशिश कयलक जे हम तोहर बड पैघ दीवाना छी, तोहर गीत हमरा घायल कय देलक। रमोला ओकर बात केँ बुझैत छलैक, लेकिन अपन दायरा आ असलियत केँ एकटा महफिलक निरीह कलाकार रूप मे सेहो ओ नहि बिसरल छल। रमोला केँ वास्तव मे एहेन-एहेन कय टा दीवाना पहिनहुँ भेटल छलैक आ ओकरा आदति पड़ि गेल छलैक। ई नायक बेचारा… कि जानय गेल जे महफिलक चकमक रौशनी मे जे सब देखा रहल छैक से असली नहि नकली छैक। ओकरा नायिकाक मेकअप आ उमेर आदिक कोनो सोह-सुर्ता नहि रहि गेल छलैक। बस, जबानीक जोश मे ओकर गायनक अदायगी नायक केँ तेना मोहित कय देने रहैक जे रमोला-रमोला भ’ गेल छलैक मन-मस्तिष्क मे।

एक दिन मुंह फोड़िकय ओ रमोला केँ कहि देलकैक, रमोला कुटिल मुस्कानक संग आर बेसी घायल करयवला अन्दाज मे ओकरा जवाब देलकैक जे सही समय पर सही जवाब अहाँ केँ अपने भेटि जायत, एखन महफिल केर नायक बनल रहू आ हमर गीतक आनन्द उठबैत रहू। ई सिलसिला एतेक दिन धरि चललैक जे नायकक दिवानगी दिनानुदिन बढ़बैत गेलैक, एतबे बढ़ि गेलैक जे नायक आब बताह जेकाँ रमोलाक पाछाँ पड़ि गेल। रमोला एक पेशेवर गायिका, पेशाधर्म मे बान्हल, एहने-एहने नायक केँ आकर्षित करबाक आ महफिलक मालिक केँ लाभार्जन मे सहयोग करबाक भूमिकावाली, ओकरा कि बुझबितैक जे प्रेमक योग्य ओ नहि छल, ओ त आर बेसी आकर्षणक दायरा बढ़ाकय नायकक निर्दोष प्रेम सँ उपहारक अम्बार लगेबाक हिसाबे ‘तूँ मुझे जान से भी प्यारा है, तेरे लिये सुना जग सारा है’ गीत सेहो गाबय लागल छलैक….!

नायक केँ त ओकर आवाज आ गायन एतबा घाव कय देने छलैक हृदयपटल पर आब बिना रमोला एक मिनट कोनो काज नहि कय सकैत छल। एतबा लुटा देलक जे अन्ततः किछुए दिन मे स्वयं सड़क पर आबि गेल। लेकिन हृदय धरि प्रविष्ट प्रेम कतहु घटैक! आब सेखो-सम्पत्ति नहि जे बेचिकय महफिल मे जायत। रमोला मात्र मानसपटल पर गीत गाबय लगलैक। घटिया किस्मक पाउच-लोकल दारू पीबिकय कोहुना-कोहुना ओकर जबानी केँ मोन पाड़य आ अपने बीमार पड़ि गेल। बीमारीक बदतर हाल भ’ गेलैक मुदा ओकरा घुरिकय रमोलाक दर्शन तक नहि भेटलैक। ओहि महफिलहिक आसपास कनी दिन छिछियायल-बौआयल आ सड़क पर ओंघरायल। एक दिन ओकर नशा तखन फाटि गेलैक जखन ओ रमोलाक असल रूप देखलक। रमोलाक ओ ओजस्विता वला जबानी बिल्कुल झखैर गेल छलैक। ओ नायक दिश तकबो तक नहि कयलकैक आ अपन एक परपुरुष मित्रक संग अल्हड़ अवस्था मे आगू दिश बढ़ि गेलैक। नायकक भक्क टुटलैक। सबटा प्रेम छू-मन्तर भ’ गेलैक। लेकिन आब नायक लग सिवाये ओकर आत्मविश्वास किछु नहि बाँचल छलैक… स्वास्थ्य, शरीर, सम्पत्ति आ सेखी सब किछु लगभग मृतप्राय भ’ गेल छलैक। जबानीक नशा ओकर अपनहि जबानी केँ खा गेल छलैक। तथापि, क्षीण आशाक संग ओ अपना केँ बदलबाक प्रयत्न करत से सोचि लेलक…. कोहुना टुघरैत-टुघरैत घर घुरि लगभग ६ मास घरहि भीतर गुप्तवास मे रहि अपन माता-पिता आ परिजन तक केँ सामना करबाक हिम्मत हेरा चुकल ओ नायक आखिरकार अपन कठोर साधना सँ जीवन बचा लेलक आ आइ फेर नगर केर कहबैका जेकाँ शान के जीवन जियैत अछि। रमोला ओकरा आइयो देखाइत छैक, परञ्च जबानी वाली नहि, अपितु झखरल जबानी आ कुटिल खलनायिका जेकाँ!

हरिः हरः!!