लेखक: निशिकांत ठाकुर, जाले
संकलन: अनिल झा
बिसरैत लोकगाथा
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नृत्य चलि रहल छल। किशोरवय राजकुमार पूर्णतया नृत्य में मग्न। नर्तक आ नृत्य दू नहि छलै एकाकार भ गेल रहै। अंग संचालनक गति देख दर्शक मंत्रमुग्ध आ विस्मित छलाह। हवा – बसात, लता-गुल्म, गाछ-बिरिछ सब संग द रहल छलै। चिड़ै-चुनमुन्नी सेहो निमग्न भ कलरव बिसरि गेल। एक मात्र व्यक्ति प्रत्येक चरण के परखैत एकतारा बजा रहल छलाह। सिद्ध पुरुष गुरु मंगल। हँ हँ वै’हा जिनका विषय में विख्यात छल जे नहैला के पश्चात ओ अप्पन धोती आकाश में फेंक दैत छलाह आ हुनकर पुण्य प्रतापे शून्य ओकरा थाम्हि लैत छल। सुखेला उपरांत धोती ओ उतार लैत छलाह। बड्ड महातम छलै हुनक। कमला नदी के कोनो बजरा पर उनकर स्थायी निवास छलै। नृत्यरत राजकुमार छल मिथिला राज्य ‘भरौड़’ के दुलरादयाल।
संपूर्ण मिथिला में तंत्र साधना के चला-चलती रहै। तांत्रिक के यश के सोझा राजा-महाराजाक यश फिक्का रहै। सब तंत्र-साधना में निष्णात होमय चाहै। साथे-साथ आमजन ओकरा स भयभीतो रहै। मिथिला के संपूर्ण क्रियाकलाप, आचार-विचार, रहन-सहन, पहिरावा- ओढ़ावा सब में तंत्र-मंत्र, जादू-टोना व्याप्त छल।
ठीक ओही समय दक्षिण-पूर्व में कमला तट पर ‘बखरी’ में रह’ वाली केवटिन बहुरा गोढ़िन के बड्ड मान छलै। मशहूर नर्तकी आ प्रख्यात जादूगरनी। कमरू-कामाख्या स सीख क आयल छलै तांत्रिकता आ षटचक्र नृत्य। कहल जाइत छल कि सिद्धि प्राप्त करवा हेतु ओ अप्पन पति के देवी समक्ष बलि प्रदान केने छलै। जल पर ओकर पूर्ण नियंत्रण छलै। पाइन में असंख्य खेल खेलाईत छल। एक पर एक। देखै वाला अचंभित भ जाईत छलै। जलपरीये बूझू। साधिका तेहन जे दूरक कौड़ी मंगवा लैत। जखन ओ नाचै तखन प्रकृति ओकरा बस में भ जायत छलै। ओ अप्पन इच्छानुसार चीज के बदलि देबै में सक्षम छलै । जेकरा मोन होय ओकरा सुग्गा-मैना बना दे। तेहन डाक-हाक वाली साधिका। केकरो लग ओकर काट नहि।
दिनों-दिन दुलरादयालक नृत्य आ तंत्र के प्रति आकर्षण बढ़िते जा रहल छलै। धीरे-धीरे राजकुमार दुलरादयाल नृत्यक प्रति दीवानगिक कारणे प्रजा में नटुआदयाल के नाम स चर्चित होमय लागल। यद्यपि मिथिलाक प्रजा के अपन राजकुमार के नचनाई नीक नहि लगाई मुदा कैल की जाए। जहिया स राजकुमार बहुरा गोढ़िन के नाम सुनने छल ओ मनहि-मोन ओकरा स जादू आ नृत्य सिखवाक लेल दृढ़ प्रतिज्ञ भ गेल। मौका ताकि गुरु मंगल सँ अनुमति सेहो प्राप्त क लेलक। अदम्य उत्साह स नटुआदयाल कमला नदी में नाव पर सवार भ गुरु मंगलक पद में कमला के सुमरैत बखरी स्थित बहुरा गोढ़िन के दरबार दिस बिदा भेल…..
कल जल बास करथिन रे कमला मैया
कत जल कमले के आसन, कमले के हार हे
कमलमुखी कमले के शोभिन, सिंगार हे कमला मैया
कत जल बास करथिन
धांग, धांग…. धिक्, धिक्, धांग….. धांग……..
दरबार की छल नृत्य आ तंत्र के पाठशाला छल। कतेको नवका तूर के साधक अध्ययनरत छलाह। नटुआदयाल अपन मेधा के बले शीध्रहिं बहुरा गोढ़िन के सामीप्य प्राप्त क लेलक। बहुरा गोढ़िन के एक मात्र पुत्री छलै फूलमती। रूप-लावण्य, बान्ह-काठ में अनुपम। सब साधक ओकरा पर आसक्त रहै आ ओकर साहचर्य चाहै छल। मुदा ओ ककरो भाव नहीं दे। सफलता पौलक नटुआदयाल। दूनू के प्रेम परवान चढ़ै लागल। रंग-रभस में बात खुलै लागल। बांकी सब ईर्ष्या के वशीभूत बहुरा गोढ़िन के कान भरै में लाइग गेल। खास’क सौदागर जयसिंह। जयसिंह एकरा निजी पराजय बूझलक। बात पसरैत-पसरैत संपूर्ण मिथिला के प्रजा तक पहुँचल। प्रजा चिंतित। खतरनाक जादूगरनी जे अप्पन पति के नहीं छोड़लक ओकरा आगू नटुआदयाल के कोन मोजर। मुदा प्रेम में किछु सूझैत छै।
राजसी गर्व में मातल नटुआदयाल बहुरा गोढ़िन लग फूलमतीक विवाह प्रस्ताव पठौलक। आखिर बखरी छलै त राजकुमारक रैयते। विवाह प्रस्ताव ठुकरैवाक हिम्मत बहुरा गोढ़िन में कहाँ छल। विवाह तय भ गेलै। बहुरा गोढ़िन के ओना तो कोनो दिक्कत नहिं छल तै’यो नृत्य एवं तंत्र ज्ञान के आधार पर नटुआदयाल अखन ओतेक निष्णात नहि भेल छल जकरा अपन बेटी के सौंपवा में ओ खुशी के अनुभव करै। किछु त कचोट मोन में छलैहे। अस्तु…. गाजा-बाजा, हाथी-घोड़ा, हजारों लोकक संग बराती बखरी पहुँचल। पूरा कमला नदी नाव स पाटि गेल। तेहन आतिशबाजी भेल जे इंद्रासन तक जगमगाय लागल। बराती-सराती में टोन-टाप, हँस्सी-ठठ्ठा होमय लागल। सब किछु ठीक-ठाक चलि रहल छल। की एतबे में बात – बात में कोनो बात पर दूनू समूह में कहासुनी होमय लागल। दूनू समूह उग्र भ गेल। बहुरा गोढ़िन तक शिकायत नून-मिरचाई संग जयसिंह के मारफत पहुँचल। ओकर पारा चढ़ि गेल। ओ सब बराती के बकरी बना देलक आ नटुआदयालक मंत्री के एक आँखि के रोशनी गायब क देलक। हाहाकार मचि गेल। विवाह भंडूल भ गेलै। ओकर जादू के काट केकरो लग नहि छल।
नटुआदयाल भागल। पराजित भ मुँह बिधुऔने गुरु मंगल लग पहुँचला उतर पूरा वृत्तांत कहि सुनौलक। गुरु ओकरा कमरू-कामाख्या जा क षटचक्र नृत्य आ तंत्रविद्या सिखवाक सलाह देलाह। बिना कामाख्या गेने बहुरा गोढ़िन स पार पैनाई मुश्किल। ओकर जादू के काटक ज्ञान ओत्तहि छलै। तखने विवाह संभव छल। गुरु मंगलक आशीर्वाद ल नटुआदयाल कामाख्या लेल बिदा भेल।
कामाख्या पहुँच दुलरादयाल चण्डिका मंदिरक महान साधिका ‘महायोगिनी’ सँ नृत्य एवं तंत्रक प्रशिक्षण लेबै’ लागल। ओकर तीव्र जिज्ञासा एवं पराजयक कुंठा ओकर सीखै के गति के अद्भुत रूपे बढ़ा देने छल। नृत्यक कोनो मुद्रा एवं तंत्रक कोनों मंत्र महायोगिनी के दोबारा नहिं सिखाबै पड़लै। ऐहन शिक्षार्थी सँ ओकर भेंट आई धरि नहिं भेल रहैं।सब किछु’ एक्के फूंके चानी ‘। दुलरादयाल लेल एक-एक सिद्धि ओकर सफलता दिस एक-एक डेग रहै। खूब बढ़िया सँ ओ ई गप्प बूझैत छल। ओखर ललक सँ छौ- मास होईत-होईत ओ षटचक्र नृत्य आ अमोध अस्त्र तंत्र में निष्णात भ गेल। ऐहन समर्पित साधक कें महायोगिनी ‘संरया’ गाम स्थित सिद्ध देवी ‘वागेश्वरी’ के प्रधान सेविका ‘भुवन मोहिनी’ सँ ‘अनहद’ आ ‘आज्ञाचक्र’ नृत्य सीखवाक सलाह देली।
दुलरादयाल संरया पहुँचल। भुवन मोहनी साथे ओकर पैघ साक्षात्कार चलल। कै-कै दिन धरि। अंतत: दुलरादयालक उत्तर-प्रतिउत्तर सँ भुवन मोहिनी प्रसन्न भेलैथ आ ओकरा आश्रम में प्रवेश भेलट। देवी’ वागेश्वरी’ के नरबलि होईत छल। ओहि अवसर पर भुवन मोहनी स्वयं नृत्य करै’। नृत्य शुरू होईते चहुँदिस अन्हार पसरि जाए। तलवार चलबैत दैत्य दृश्यमान होबै लागै। गर्जन-तर्जन स संपूर्ण प्रकृति थरथरा जाय। खतरनाक दृश्य सभ उपस्थित भ जाए छलै। नव साधकक रोम-रोम सिहरि उठे। डरे दाँत कटकटाय लगै। कतेको साधक के पैखाना-पेशाब भ जाय। मुदा दुलरादयाल अहिसभ स कनिको भयभीत नहिं छल उल्टा ओकर आकर्षण ततेक बढ़ि गेलै जे ओ नृत्य सिखवाक लेल दृढ़संकल्पित आ व्याकुल भ गेल। जाहि भुवन मोहिनी प संपूर्ण जगत मोहित छल ओ दुलरादयाल के उद्भट्ट प्रतिभा सँ मोहित आ अचंभित छल। सबसँ स्नेही शिष्य के ओ किछुए दिन मेँ कठिनतम नृत्य ‘अनहद’ आ ‘आज्ञाचक्र’ सीखा देलक। चलैत-चलैत कारी जादू कटवाक मंत्र सेहो कान में फूँकि देलक।
संपूर्ण सिद्धि प्राप्त क हँसी-खुशी दुलरादयाल अप्पन एकमात्र लक्ष्य प्राप्ति हेतु जलमार्ग सँ अपन मिथिला लेल विदा भेल। यत्र-तत्र ओकर अभिनंदन होबै लागल। लाव-लश्कर बढ़ते चलि गेल। सिद्धि एकांगी कहाँ रहि प’वै छै। ओखरा पहुँचै स पहने ओकर पहुँचवाक समाचार पहुँच जाइत छल। जहिना नावक बेड़ा कमलाक धार में पहुँचल बहुरा गोढ़िन के खबरि लागि गेलै।ओ अप्पन षटचक्र नृत्यक बदौलति कमलाक जलस्रोत सुखा देलक। हाहाकार मचि गेल। चारूदिस कन्ना-रोहट पसरि गेल। लोक मरै लागल। त्राहिमामक फरियाद बड़का राजा(?) तक पहुँचल। जूकिया छोड़ल गेल। सभक शक छलै ई किरदानी बहुरा गोढ़िन छोरि आर दोसर ककरौ नहिं भ सकैछ। दोसरा मेँ एतैक सामर्थ्य कहाँ। ओकरा बड़का राजाक दरबार मेँ हाजिर कै’ल गेल। राजाक पायर पर खसैत दुहाई सरकार, दुहाई सरकार करैत ओ सब कसूर नव सिद्ध भेल दुलरादयाल पर थोपि देलक। तामसे राजा लहलह करैत दुलरादयाल के पकरि दरबार में पेश करवाक हुकुम दनदनौलक। जुकिया सब फेर पुलिस-पलटन के साथे निकलि पड़ल। डुगडुग्गी पिटवा देल गेल शरण देबै’ वला के राजदंड आ पकड़वावै वला के मुँहमांगल ईनाम।
खबर सुनिते मातर दुलरादयाल अकबका गेल।ओकरा किछु नहिं फूरा रहल छल कि कै’ल की जाए। या’ह चिंता ओकरा खेने जा रहल छल कि एतबे में पलटन ओकरा घेरि लेलक। हाथ में हथकड़ी आ डांड़ में मोटका रस्सा लगा सात सौ घुड़सवारक बीच दरबार में हाजिर कैल गेल। तुरही बाजल। राजा सिंहासन पर विराजमान भेला। सुनवाई शुरू भेल। राजाक मंत्री द्वारा दुलरादयाल पर लागल आरोप पढ़ि क सु’नौल गेल। जखने दुलरादयाल के सफाई देवाक बारी एलै ओ राजाक समक्ष क’ल जोरि कलपैत बाजि उठल-
“हमरा विरुद्ध ई सब कुचक्र बहुरा गोढ़िनक रचल अछि।ओकरा जहिना खबरि लगलै जे हम कामरु- कामाख्या सँ षटचक्र नृत्य सीख क आबि रहल छी ओ अपन जादू सँ कमलाक जलस्रोत सुखा देलक। जाहि स हमर यात्रा खंडित भ जाए। जनता में हाहाकार मचि जाए। सब अभियोग हमरा पर लगा हमर फांसी सुनिश्चित क सकै।”
राजा धैर्यपूर्वक सब बात सुनैत ऐकर कारण जानवाक चाहलक। तखन दुलरादयाल अपन विवाहक प्रकरणक सब वृतांत सहित अपन उद्देश्य राजा के सुनौलक।
आब की कै’ल जाए। मौका पावि दुलरादयाल राजाक समक्ष अपन मोनक बात रखलक-
“हे राजन! हमरा लग ओकर जादू के काट अछि।जौं आँहा हुकुम दी त हम पुनः कमला के जलाजल क सकैत छी। कमला पुन: अपन पूर्व स्थिति में आबि पूरा राज्य के धन-धान्य स संपन्न क सक’ति।”
फेर सकुचैत बाजल – ” मुदा बहुरा गोढ़िन के माफ क देल जाओ। ओकरा कोनो सजाए नहीं देल जाओ। जान बकसि देल जाओ। ”
राजा कहला-” एवमस्तु। पहिने कमला मेँ जल प्रवाहित क’रऽ।”
कमलाक सुखायल अपवाह मार्ग पर दुलरादयाल नहिं नटुआदयाल कहब उचित षटचक्र नृत्य करै लागल ।राजा सहित लोकक करमान लागि गेल। बहुरा गोढ़िन सेहो उत्सुकता सँ नाच देखि रहल छल। जौं-जौं नृत्य परवान चढ़ल जा रहल छलै दुलरादयालक अस्तित्व नृत्य में विलीन भेल जा रहल छल। संपूर्ण प्रकृति नृत्य के वशीभूत भ गेल। सुखायल कमलाक जलस्रोत पुन: द्रवित होबै लागल। जलक सोता जे पहने पातर सन फुटलै शनै-शनै मोटगर होबै लागल ।देखिते-देखिते कमलाक कूल-किनार डूबै लागल। जेम्हर देखू तेम्हरे पाइने-पाईन। प्रजा खुशी से झूमि उठल। दुलरादयालक जय-जयकार होबै लागल। मुदा जे सब’सँ बेसी प्रसन्न रहै ओ छल बहुरा गोढ़िन। बरखक-बरख के ओकर खोज आई पूर्ण भलै। साध पूरलै। राजा इनाम- अकरम द विदा भेल।
राजा के विदा होइते हुलसि क बहुरा गोढ़िन दुलरादयाल लग पहुँचल आ प्रसन्नताक अतिरेक में भरि पांजि पजिया लेलक आ कहलकै “अहाँ हमर परीक्षा में पास भ गलौ। आब अहाँ हमर बेटी के लिए योग्य पात्र छी। बराती ल क आऊ।” दुलरादयालक अतृप्त आकांक्षा पूर्ण भेलै। ओकर अंग-अंग लक्ष्य प्राप्ति सँ पुलकित छलै।
बराती बहुरा गोढ़िनक दरवज्जा पर पहुँचल। दुलरादयालक सम्मुख पानक तीन टा बीड़ा राखल गेल। पहिल कमलाक वापसी हेतु, दोसर बहुरा गोढ़िन के सजाए सँ बचाबै हेतु आ तेसर विवाहक सहमति देबै हेतु। दुलरादयाल तीनू पानक बीड़ा उठा कल्ला तर देलक। जनि-जाति मंगल गान शुरू कैलक।
कहल जाईत छै मायक गुण धी थोड़बो-थोड़ भैये जाईछ। फूलमती सेहो अप्पन पुरुष के परीक्षण करै लेल उताहुल छल। घूँघट केने पनिहारिनक भेष में दरवज्जा के इनार पर पाइन भरै लागल। दुलरादयाल के पियास लगलै। ओ अप्पन संगी झिलमिल के पाइन लाबै लेल कहलक। झिलमिल जहिना इनार में डोल खसौलक रस्सी छोट परि गले। जखन दुलरादयाल के बात मालूम भेलै त इनार लग जा अपन जादू सँ रस्सी बढ़ा इनार स पाइन निकालि लेलक। परीक्षा में अपन पति के पास होइत देखि फूलमती प्रसन्न भ दुलरादयाल के आलिंगनबद्ध क लेलक।
शुभे-शुभे विवाह दान संपन्न भेल। बहुरा गोढ़िन जेकरा सभके पूर्व में बकरी बना देने छलै सभके फेर सँ मनुख्ख बना देलक। मंत्री मल्लक आँखि सेहो ठीक क देलक। विदा कराबै काल कमलाक पूजा आयोजन चलि रहल छलै। कमला महारानी के पटोल उत्सर्ग कैलाक उपरांत जोड़ीदार नृत्य में सब रमल छलै। की तखने दुलरादयाल सँ ईर्ष्या करैबला बहुरा गोढ़िनक शिष्य सब जयसिंह के नेतृत्व में आयोजन में घुसि’क दुलरादयाल के चक्कू मारि देलकै। कमलाक जल रक्तरंजित भ गेल। हाक्रोश मचि गेलै’ । लोक किंकर्तव्यविमूढ़ छल। कामाख्याक महायोगिनी आ भुवन मोहिनी के आगम आबि गेल छलै। ओ आकाश मार्ग से तुरंते घटनास्थल पर पहुंच गेली। बहुरा गोढ़िनक बागी शिष्य सब के तत्काल मौत के घाट उतारि देलकै आ तंत्र विद्या बले दुलरादयाल के पुनः जीवित क देलक। दुलरादयाल-फूलमती सब सँ आशीर्वाद प्राप्त क कमलाक संरक्षण मेँ नाव पर सवार अपन राज दिस हँसी-खुशी विदा भेल।
(रवीन्द्र भारतीक बाल साहित्य पर आधारित)