पहिले दहेजक रूप एतेक विकराल नै इच्छा पर निर्भर छल

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दहेज प्रथा आदिकाल सॅ चलिआबि रहल अछि ,मुदा पहिने ई प्रथा क्रूर नै छल ,माँग रूपी नै छल बल्कि ओ भावनात्मक छल। कन्या के पिता के ई अवधारणा छल जे बेटी धरोहर अछि। समय एलापर पाणिग्रहण के माध्यम सॅ गोत्रक आदान प्रदान होयत आ बेटी पर घर चलि जेती।ईहो मान्यता आ भावना छल जे हमरा सम्पति मे बेटीक हिस्सा सेहो छैक।दोसर बात ईहोछल जे बेटी के सब ईच्छा आ स्वभाविक अनुरूप कोनो दिक्कत नै हो ताइलेल कपड़ा, आभूषण आ घर मे उपयोग होमय बला वस्तु सेहो साँठ मे देल जाइत छल। धीरे धीरे एकर रूप कुरुप आ क्रूर भय गेल ।लोक एकरा अनिवार्य बूझि लेलक आ  saसॅ जोडि लेलक आ धडल्ले सॅ दहेजक माँग होमय लागल।
दहेजक वीभत्स रूप देखि समाज आ सरकार के माथा चकरायल। दहेज प्रताड़ना होमय लागल।तलाक बढि गेल ,हत्या होमय लागल। रोकथामक लेल सरकार करगर कानून बनौलक। तीन वर्षक जेल या पन्द्रह हजार जुर्वाना व दूनू दण्ड के प्रावधान कयल गेल। सामाजिक संगठन बनय लागल।जनजागरण होमय लागल।2011 मे दहेज मुक्त मिथिलाक प्रादुर्भाव भेल ।माँग रूपी दहेजक प्रतिकार होमय लागल
दहेज के बढाबा देबय मे लडकी पक्षक भूमिका कनियो कम नै अछि। कन्या के गहना चाहबे करी,नीक पोषाक नूआ फट्टा चाहबे करी,श्रींगार सामग्री चाहबे करी। आब प्रश्न उठैत अछि जे जँ ई सब आवत कतय सॅ।खपटा सॅ त भेटत नहि।ओइ लेल चाही पाइ।पाइ कतय सॅ आवत?लड़का बला एहि मनोरथ के बास्ते कर्ज किया लेत? तखन त पाइ कए इन्तजाम कन्ये पक्ष करता ।तखन दहेज त बढबे करत।दोसर कन्या पक्ष मनोरथ के सेहो गहिया कय पकरने छथि त स्व भावतः दहेज बढत जाइलेल कन्या पक्ष दोषी छथि।
कन्या,कन्या पक्ष, बड आ बड़ पक्ष जाधरि अपन मनोरथ ,आडम्बर आ पाखण्ड नै छोडत, ता धरि दहेज सुरसा सन मूँह फारने रहत।समाज विकृत होइत जायत प्रेम भाव आ कुटुम्बक भावना समाप्त भय जायत। ते सब पक्ष मीलिजुलि कय दहेज प्रथा के उन्मूलन के बास्ते काज करी तखने दहेजक बिकरालता सॅ हमरा लोकनि के छुटकारा भेटि सकैत अछि।
दया नाथ मिश्र