“टेंगरा पोठी चाल करय, रेहू सिर बिसेए” इ अपना सभक ओहिठाम के बड्ड पुरान कहावत छैक तहिना मिथिला में दहेजक स्थिति भऽ गेलैक अछि। सुखी सम्पन्न लोक अपन बेटी के बियाह में लाखो लाख रूपैया खर्च कऽ कऽ लोक सभ के तेहन ने लोभ मोन में भरि देलकै अछि जे आब लोक एकरा व्यवसाय बूझि गेल छैथि। फलाँ अपन बेटा के बियाह में एतेक पाई लेलन्हि तऽ हमर बेटा के अओकादि ककरो सँ कम छैक, हमहूँ एतेक पाई लेब आ सभ सँ पैघ बात जे हाट में एतेक व्यापारी छैक जे ओतेक पाई दऽ कऽ ओ कीनि लैत अछि। बजार के नियम होइत छैक जे कोनो चीज के दाम तखन बढैत छैक जखन कीनैए बला लोक बेसी होइत छैक आ समान कम रहैत छैक। आइ अपना सभक ओहिठाम सेएह भऽ रहल छैक। फलां बाबू के बेटा के सरकारी नोकरी भेटलन्हि कि ओकर बोली लगनाइ आरम्भ भऽ जाइत छैक। बड़का – बड़का मंत्री संतरी सभ पहुंच जाइत छैथि मुठ्ठा भरि भरि पाई लऽ कऽ आ कीनि लैत छैथि ओहि बिक्री सामान के आ मारल जाइत छैथि गरीब पिता जे अपन पेट काटि कऽ पोसैत छैथि अपन बेटी के, परिवारक सभ लूरि ब्यवहार सीखवैत रहैत छैथि जे बौआ पैघ संगे एना बात कयल जाइत छैक, भगवान भगवती के पूजा कयला सँ कल्याण होइत छैक। भानस भात के लूरि सीखवैत छैथि मुदा दहेजक अभाव में ओ लोकनि अपन माथ पर हाथ दय पश्चात्ताप करैत रहैत छैथि। ओ भगवान सँ बेटी के बाप होयवाक शाप पर नोर बहवैत रहैत छैथि। कखनहु काल कऽ सवाल उठैत अछि जे की गरीब घर में बेटी के जन्म नहिं होयवाक चाही? की दुनिया में सभ किछु पाई छैक? लूरि ब्यवहार, गुण इत्यादि सभ गौण? उत्तर अछि हँ। हमरा गाम में दहेज लऽ कऽ एकटा बिवाह भेलैक, कनियाँ कारी खट खट, बरियाती सभ कुनमुनेए लगलैक तऽ बरक बाबा कहलखिन जे अहाँ सभ कियए कुनमुनाइत छी? जेना कुनमा के दाहा में लाल पीयर पन्नी साइट दैत छैक तहिना एहि कनियाँ के देह पर पाँच सौ आ दू हजार के नोट साइट दियौ, कनियाँ चमचम करय लगतीह। कहवाक तात्पर्य इ जे अप्पन समाज मे दहेज के बढावा देवा में बर पक्ष सँ बेसी कन्या पक्ष बला दोषी छैथि तकर सभ सँ पैघ सबूत आब देखल जा रहल अछि जे आब अपनहुँ समाज मे लोक बेटी के शिक्षित करय लागल अछि। आब बेटी के बाप दहेजक पाई के बेटी के शिक्षित होयवा में खर्च कऽ रहल छैथि तें आब स्थिति में सुधार भऽ रहल छैक। आब बेसी गोटे हमरा अपन बेटा के बियाह नीक परिवार में करयवाक लेल कहैत छैथि। आइ सँ दस पन्द्रह साल पहिने लोक बेटा के बारे में पूछैत छलैक, आब बेटी के बारे में पूछैत छैक। इ एकटा नीक संकेत छियैइ। आब समाज में बेटी के बियाह पाई दऽ कऽ कयलहुँ एकर बड़ाइ नहिं निन्दा होयवाक चाही तखने अपन सभक समाज सँ ई कुप्रथा निर्मूल होयत….
कीर्ति नारायण झा