रामचरितमानस मोतीः उत्तरकाण्ड मंगलाचरण

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

सप्तम सोपान-मंगलाचरण

श्लोक :
केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं
शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्‌।
पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं।
नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम्‌॥१।

मोर केर कण्ठक आभा जेहेन (हरिताभ) नीलवर्ण, देवता लोकनि मे श्रेष्ठ, ब्राह्मण (भृगुजी) केर चरणकमल केर चिह्न सँ सुशोभित, शोभा सँ पूर्ण, पीताम्बरधारी, कमल नेत्र, सदा परम प्रसन्न, हाथ मे बाण आ धनुष धारण कएने, बानर समूह सँ युक्त भाइ लक्ष्मणजी सँ सेवित, स्तुति कयल जेबाक योग्य, श्री जानकीजी केर पति, रघुकुल श्रेष्ठ, पुष्पक विमान पर सवार श्री रामचंद्रजी केँ हम निरन्तर नमस्कार करैत छी॥१॥

कोसलेन्द्रपदकन्जमंजुलौ कोमलावजमहेशवन्दितौ।
जानकीकरसरोजलालितौ चिन्तकस्य मनभृंगसंगिनौ॥२॥

कोसलपुरीक स्वामी श्री रामचंद्रजीक सुन्दर आर कोमल दुनू चरणकमल ब्रह्माजी एवं शिवजी द्वारा वन्दित अछि, श्री जानकीजीक करकमल सँ दुलरायल गेल आ चिन्तन करयवलाक मनरूपी भँवराक नित्य संगी छथि अर्थात् चिन्तन करनिहारक मनरूपी भ्रमर सदिखन हुनकहि चरणकमल मे बसल रहैत अछि॥२॥

कुन्दइन्दुदरगौरसुन्दरं अम्बिकापतिमभीष्टसिद्धिदम्‌।
कारुणीककलकन्जलोचनं नौमि शंकरमनंगमोचनम्‌॥३॥

कुन्द केर फूल, चंद्रमा आर शंख केर समान सुन्दर गौरवर्ण, जगज्जननी श्री पार्वतीजीक पति, वान्छित फल केँ दयवला, दुखिया सबपर सदैव दया करयवला, सुन्दर कमल केर समान नेत्रवला, कामदेव सँ छुटकारा दियाबयवला कल्याणकारी श्री शंकरजी केँ हम नमस्कार करैत छी॥३॥

हरिः हरः!!