स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
रामचरितमानस मोती
विभीषण द्वारा वस्त्राभूषण बरसेनाय आर बानर-भालु द्वारा से पहिरनाय
१. प्रभु श्री रामजी सँ आशीर्वाद पाबि विभीषणजी महल गेलाह आ ओ मणिक समूह (रत्न) सब सँ आ वस्त्र सब सँ विमान केँ भरि देलनि। फेर ओहि पुष्पक विमान केँ आनिकय प्रभुक सोझाँ राखि देलनि। कृपासागर श्री रामजी हँसिकय कहलखिन – “हे सखा विभीषण! सुनू, विमान पर चढ़िकय, आकाश मे जाउ आ वस्त्र एवं गहना सभक बरसात कय दियौक।”
२. आज्ञा सुनिते देरी विभीषणजी आकाश मे जाकय सबटा मणि व वस्त्र सभक बरसात कय देलनि। जेकरा मोन केँ जे नीक लगलैक, ओ सब सैह लय लैत अछि। मणि मुँह मे लयकय बानर सब ओकरा खायवला वस्तु नहि बुझि थुकैर दैत अछि। ई तमाशा देखिकय परम विनोदी आ कृपाक धाम श्री रामजी, सीताजी आ लक्ष्मणजी सहित खूब हँसय लगलाह।
३. जिनका मुनि लोकनि ध्यान मे पर्यन्त नहि पबैत छथि, जिनका वेद नेति-नेति कहैत छथि, वैह कृपाक समुद्र श्री रामजी बानर सभक संग अनेकों प्रकारक विनोद (मनोरंजन) कय रहल छथि।
४. शिवजी कहैत छथि – “हे उमा! अनेकों प्रकारक योग, जप, दान, तप, यज्ञ, व्रत आर नियम कयलो पर श्री रामचंद्रजी एहेन कृपा नहि करैत छथि जेहेन अनन्य प्रेम भेलापर करैत छथि।”
५. भालु आर बानर सब कपड़ा आ गहना पओलक आ से पहिरि-पहिरिकय ओ सब श्री रघुनाथजी लग आयल। अनेकों जातिक बानर सब केँ देखिकय कोसलपति श्री रामजी बेर-बेर हँसि रहल छथि। श्री रघुनाथजी कृपा दृष्टि सँ देखिकय सब पर दया कयलनि। आर फेर कोमल वचन बजलाह – “हे भाइ सब! तोरे सभक बल सँ हम रावण केँ मारलहुँ आ फेर विभीषणक राजतिलक कयलहुँ। आब तूँ सब अपन-अपन घर जाह। हमरा स्मरण करैत रहिहह आर केकरहुँ सँ डरइहह नहि।”
६. ई वचन सुनिते सब बानर सब प्रेम मे विह्वल भ’ कय हाथ जोड़िकय आदरपूर्वक बाजल – “प्रभो! अपने जेहो किछु कहू, अपने केँ सब किछु सोहाइत अछि। मुदा अपनेक वचन सुनिकय हमरा सब केँ मोह होइत अछि। हे रघुनाथजी! अपने तीनू लोक केर ईश्वर छी। हम बानर सब केँ दीन जानिकय अपने सनाथ (कृतार्थ) कयलहुँ अछि। प्रभुक एहेन वचन सुनिकय हम सब लाजक मारे मरल जा रहल छी। कतहु मच्छर सेहो गरुड़ केर हित कय सकैत अछि?” श्री रामजी का रुइख देखिकय रीछ-बानर सब प्रेम मे मग्न भ’ गेल। ओकरा सब केँ घर जेबाक इच्छा नहि छैक।
हरिः हरः!!