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गरीब (आत्मकथा)

संस्मरण-विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

गरीब

 
गरीब शब्दक अर्थ होइछ – दीन, हीन, दरिद्र, निर्धन, अकिंचन, कंगाल संग एकटा अर्थ ‘नम्र’ सेहो कहल गेल अछि। आरो कतिपय पर्यायवाची शब्द सब गरीब लेल प्रयोग/व्यवहार मे अबिते अछि। अभावग्रस्त, विपन्न, कमजोर, बेसहारा, असहाय, आदि। भगवान् केँ सेहो दीनक नाथ ‘दीनानाथ’, गरीबक नाथ ‘गरीबनाथ’ आदिक भाव मे पूज्य कहि कवि लोकनि गान कयलनि अछि। सुदामा एक गरीब ब्राह्मण रूप मे कतेक चर्चित छथि से सर्वविदिते अछि। मित्र कृष्ण द्वारकाधीश भेलथि आ सुदामा गरीब ब्राह्मण। व्यापक दृष्टि सँ देखब त राजा हरिश्चन्द्र सेहो गरीबीक पराकाष्ठा देखलनि। वेद-पुराण मे एहि तरहें ‘गरीब’ केर विहंगम व विशद चर्चा भेटत। सामाजिक प्राणी मनुष्य जे अभाव मे जिबैत अछि गरीब कहाइत अछि।
 
हम स्वयं एक गरीब छात्र रही, गरीब छात्र कोष (poor boys fund) सँ किताब प्राप्त कयने रही, किछु फीस माफ भेल छल, उच्च अध्ययन लेल अर्थ नहि जुटल त ट्यूशन पढ़ाकय अपन जीवन आ भविष्य केँ आगू बढ़ेने रही। गरीब परिवारक बच्चा रही। पिता साधारण होमियोपैथिक दबाइ केर इलाज जननिहार डाक्टर साहेब रहथि, मरीज हुनका सँ इलाज करबय आबय आ जतबे प्राप्त भेल ततबे सँ परिवार चलेबाक सिद्धान्त मे बान्हल रहथि। अपन आमद सँ बेसी कोनो लालसा हुनका कहियो नहि भेलनि। तथापि परिवार मे ३ सन्तान आ समाज संग कुटुम्ब लोकनि आ अनेकों तरहक पारिवारिक-सामाजिक जिम्मेदारी केँ न्यूनतम् निर्वहन लेल आवश्यक ‘अर्थ’ (धन) केर अभाव रहबाक कारण हम सब गरीब परिवार रही। धन्य हमर अन्नपूर्णास्वरूपा माय (माँ) जे जतबे-ततबे मे जेहने-तेहने पहिरिकय आ कोहुना अपन धियापुता केँ आँचर तर राखिकय महादेवस्वरूपा फक्कर पिता संग गरीबीक दिन बितौलक।
 
अपन उमेर के १४ वर्ष धरि हम गरीब रहलहुँ, लेकिन गरीब बादशाह रही। अपना ई सब बुद्धि तहिया तक नहि छल जे हम गरीब छी। नेनमति मे रही। जेठ बहिनक विवाह बेर मे कनी-कनी कान मे पड़य, सेहो माँ केँ देखियैक पिता संग बेर-बेर निहोरा-पाती करैत आ पिता माँ सँ जे जवाब सब दैत छलखिन से सब सुनिकय। हँ, मैट्रिक पास कयलाक बाद कौलेज मे एडमिशन करेबाक समय पिताक मुंह सँ एक लाइन सुनलियैक, “हमरा पास कतहु कोनो गाछ अछि जे टका तोड़िकय हाथ मे दय दियौक आ तूँ दरभंगा मे एडमिशन करा लेमें! कतय सँ आओत हमरा ओतेक पाय जे दरभंगा मे राखिकय पढ़ेबउ!” – ई सुनि हमर बादशाहत टूटि गेल छल। बुझय मे आबि गेल जे हम गरीब छी।
 
अत्यन्त धर्मनिष्ठ पिता, कदापि याचना कतहु नहि करब, उपलब्ध साधन सँ अतिरिक्त केर कोनो इच्छा नहि करब, अपन दिनचर्या मे सदिखन लागल रहब, मुंह पर कनिकबो मलिनता कदापि नहि आनब, भोरहरबे सँ उठिकय भगवन्नाम जप मे लागि जायब, भोरका समय नित्यकर्म कयलाक बाद किछु धियापुता सब केँ किताब लयकय अपना लग बैसा लेब आ पढ़ेबाक काज करब जाहि सँ थोड़-बहुत आमदनी आबि जायत, पुनः स्नान-ध्यान आ भोजन उपरान्त स्वाध्याय मे लागि जायब, डायरी लिखब, कियो कतहु सँ आबि गेलथि त हुनका संग उच्चकोटिक विमर्श मे लागि जायब, देश-विदेश आ नेता-अभिनेता सँ लैत राजनीति आ सामाजिक न्याय आदि पर फरिच्छ दृष्टि सहित चर्चा-वार्ता करब, पुनः माला लय भगवन्नाम जप दुपहरिया आराम करबाक बेर करब, बेरू पहर मे तास खेल मे रमब, गाम घुमब, चाह पिबय के बड पैघ शौकिन आ जाहि ठाम गेलहुँ ओतहि डाक्टर साहेब लेल चाह बनबे टा करत आ डाक्टर साहेब खूब नीक सँ विहुँसि-विहुँसि गप करैत चाह पिबि सब केँ सुन्दर-सुन्दर बोल-वचन कहैत आ ताहि क्रम मे ५-१० टका के जे दबाइ कियो लेलक से सेवादान कय दुर्गास्थान होइत सन्ध्या घर घुरब आ फेर करीब २ घन्टा धरि माला जप मे लागि जायब…. साढ़े सात बजे के प्रादेशिक समाचार आ तदोपरान्त राति ९ बजे धरिक रेडियो कार्यक्रम मे बीबीसी व अल इंडिया रेडियो के नियमित श्रोता बनब, काका-बाबा आ भैया सब जे आबिकय बैसलथि तिनका सब सँ गप करब, फेर भोजन कय सब केँ अपने माथा पोछि सुतायब – ई रूटीन छलन्हि हमर गरीब पिता केँ।
 
एहेन गरीबी त सब केँ रहौक आ एहिना अयाची बनिकय जीवन जिबय सब। परम भाग्याशाली भेलहुँ हम एहेन पिता पाबिकय!! आँखि भरि रहल अछि बेर-बेर हुनका याद कय केँ! मात्र ५ वर्ष हमरा कमाइत आ जीवनमार्ग पर रनरनाइत देखि सकलाह, अचानक कनिटा बात पर ठामक ठाम चलि देलाह संसार सँ! हा पिता!! हा पिता!! केहेन सत्यव्रती रही अहाँ सच मे!! हम त दूर रही… आइ तक हम कानि रहल छी जे अहाँक अन्तिम यात्रा तक नहि देखि सकलहुँ!! परञ्च विश्वास ई अछि जे ‘गरीबनाथ’ अहाँ केँ परमधाम लय गेलाह, उच्चस्थान देलनि आ तहिना अहाँक हरेक सन्तान केँ एहि इहलोक मे ओ सब किछु पुरेलनि जेकर अभाव मे रहितो अहाँ अपन बादशाहत कायम राखि महायात्रा पर निकलि गेलहुँ।
 
निष्कर्षतः हम ई कहि सकैत छी जे गरीब अपन निष्ठा सँ नहि डिगय, अपन नियम-अनुशासन आ नीति सँ नहि डिगय – ओकरा जेहेन धनिक कियो नहि एहि जगत् मे। केहेन-केहेन राजा रंक बनि जाइछ आ केहेन-केहेन रंक राजा बनि जाइछ। एक्केटा बात याद रखबाक चाही जे अपन उपलब्धि सांसारिक साधनक संग्रह सँ नहि अपितु आध्यात्मिक उन्नति सँ मात्र गनाइछ। हम जाहि कुल के दीपक छी ओ एखन धरि कय गोट चरण देखि चुकल अछि। हमरे बाबीक नाम लखमणि देवी छलन्हि, १ लाख अशर्फी हुनक पिता हुनका खोंइछ मे देने रहथिन। लेकिन किछु त भेलैक जे ओ सबटा सम्पत्ति आ जथा-जहान पिताक समय धरि शून्य मे परिणति पाबि गेल छल। किछु त बात भेल हेतय ड्योढ़ीक हैसियत केँ अर्श सँ फर्श पर पहुँचा देलकैक! आर आइ जखन देखब त फेर बुझायत जे किछु त बात छैक ड्योढ़ी मे, एकर सन्तति मे जे एना उज्ज्वल आ प्रकाशित अछि।
 
लेख केँ विराम दय रहल छी। पूज्य पिता संग अपन महान माता केँ बेर-बेर प्रणाम करैत समस्त समाज आ लोक केँ प्रणाम करैत छी। सीताराम भगवान् सदैव दहिन रहथि सब पर। मनन करबाक लेल लिखल अछि ई लेख। गरीब शब्दक व्यापकता आ महत्ता केँ नीक सँ आत्मसात करबाक लेल लिखल अछि ई लेख। शेष सभक शुभ हो!!
 
हरिः हरः!!

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