रामचरितमानस मोतीः विभीषणजीक प्रार्थना, श्री रामजी द्वारा भरतजीक प्रेमदशाक वर्णन, शीघ्र अयोध्या पहुँचबाक अनुरोध

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

विभीषणजीक प्रार्थना, श्री रामजी द्वारा भरतजीक प्रेमदशाक वर्णन, शीघ्र अयोध्या पहुँचबाक अनुरोध

देवता, इन्द्र, ब्रह्मा आ शिवजी द्वारा श्री रामजीक स्तुति उपरान्त –

१. जखन शिवजी विनती कयकेँ चलि गेलाह, तखन विभीषणजी प्रभु लग अयलाह आ चरण मे मस्तक नमाकय कोमल स्वर मे बजलाह – हे शार्गं धनुष केर धारण करनिहार प्रभो! हमर विनती सुनल जाउ – अपने कुल आर सेना सहित रावण केर वध कयलहुँ, त्रिभुवन मे अपन पवित्र यश प्रसार कयलहुँ आर हमरा सन दीन पापी, बुद्धिहीन आ जातिहीन पर बहुते प्रकार सँ कृपा कयलहुँ। आब हे प्रभु! एहि दासक घर केँ पवित्र करू आर ओतय चलिकय स्नान करू जाहि युद्धक थकावट दूर भ’ जाय। हे कृपालु! खजाना, महल आर सम्पत्ति केर निरीक्षण कय प्रसन्नतापूर्वक बानर सब केँ देल जाउ। हे नाथ! हमरा सब तरहें अपनाउ आ तेकर बाद हे प्रभो! हमरा अपनहि संग लयकय अयोध्यापुरी चलू।

२. विभीषणजीक कोमल वचन सुनिते दीनदयालु प्रभुक दुनू विशाल नेत्र मे (प्रेमाश्रुक जल भरि अयलनि। कहलखिन – हे भाइ! सुनू, अहाँक खजाना आर घर सब हमरहि थिक, यैह सच बात छैक। लेकिन भरत केर दशा याद कयकेँ हमरा एक-एक पल कल्प समान बीति रहल अछि। तपस्वीक वेश मे कृश (दुब्बर) शरीर सँ निरन्तर हमर नाम जप कय रहल छथि। हे सखा! एहेन उपाय करू जाहि सँ हम जल्द सँ जल्द हुनका देखि सकी। हम अहाँ सँ निहोरा (अनुरोध) करैत छी। जँ अवधि बीति गेला पर जाइत छी त भाइ केँ जिबैत नहि पायब।

३. छोट भाइ भरतजीक प्रीति केँ स्मरण कयकेँ प्रभुक शरीर बेर-बेर पुलकित भ’ रहल छन्हि। श्री रामजी फेरो कहलखिन – हे विभीषण! अहाँ कल्प भरि राज्य करू, मोन मे हमरा निरन्तर स्मरण करैत रहब। अहाँ हमर ओहि धाम केँ पाबि जायब जतय सब सन्त जाइत छथि। श्री रामचंद्रजीक वचन सुनिते विभीषणजी हर्षित भ’ कय कृपाक धाम श्री रामजीक चरण पकड़ि लेलनि। सब बानर-भालू हर्षित भ’ गेल आर प्रभुक चरण पकड़िकय हुनकर निर्मल गुण सभक बखान करय लागल।

हरिः हरः!!