रामचरितमानस मोतीः घोर युद्ध आ रावणक मुर्च्छा

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

घोरयुद्ध आ रावणक मूर्च्छा

प्रसंग रावणक माया सँ प्रकट अनेकों रावण केँ देखि देवता सभक डरेनाय आ श्री राम द्वारा एक्कहि बाण सँ ओहि माया केँ खंडित कयनाय, ताहि समय देवता सब श्री रामजीक स्तुति कय रहल छलथि – ताहि पर ओ एक्के गोट रावण देवता लेल बड बेसी छी एहि तरहक भान रखैत रावण देवता सब केँ खिहारैत अछि।

१. देवता हाहाकार करिते भगलाह। रावण कहैत छन्हि – अरे दुष्ट सब! हमरा आगू सँ कतय जा सकमे? देवता सब केँ व्याकुल देखि अंगद दौड़लाह आ कुदिकय रावणक पैर पकड़ि ओकरा पृथ्वी पर पटकि देलनि।

छंद :
गहि भूमि पार्‌यो लात मार्‌यो बालिसुत प्रभु पहिं गयो।
संभारि उठि दसकंठ घोर कठोर रव गर्जत भयो॥
करि दाप चाप चढ़ाइ दस संधानि सर बहु बरषई।
किए सकल भट घायल भयाकुल देखि निज बल हरषई॥

ओकरा पकड़िकय पृथ्वी पर खसा लात मारिकय बालिपुत्र अंगद प्रभु लग चलि गेलाह। रावण सम्हरिकय उठल आ बड़ा भयंकर कठोर शब्द सँ गरजय लागल। ओ दर्प (घमन्ड) कय केँ दसों धनुष चढ़ाकय ताहि पर बहुते रास बाण सब संधान करैत श्री रामजीक सेना पर बरसाबय लागल। ओ सबटा योद्धा सब केँ घायल आ भय सँ व्याकुल कय देलक आ अपन बल देखिकय खूब हर्षित भ’ गेल।

२. तखन श्री रघुनाथजी रावणक माथ, हाथ, बाण आर धनुष सब किछु काटि देलखिन। लेकिन ओ फेर सँ बढ़ि गेलैक आ जेना तीर्थ मे कयल गेल पाप बढ़ि जाइत छैक, कतेको गुना बेसी भयानक फल उत्पन्न करैत छैक! शत्रु केर माथ आ हाथ बढ़ैत देखिकय रीछ-बानर सब केँ बहुते बेसी तामस चढ़लैक।

३. ई मूर्ख हाथो सब आ माथो सब कटला पर नहि मरैत अछि, एना कहिते भालू आ बानर सब तमसाकय लपकलक ओकरा उपर। बालिपुत्र अंगद, मारुति हनुमान्‌जी, नल, नील, बानरराज सुग्रीव और द्विविद आदि बलवान्‌ ओकरा उपर गाछ आ पहाड़क टुकड़ा सब सँ प्रहार करैत छथि। रावण वैह पहाड़ आ गाछ सब केँ पकड़िकय बानर सब केँ मारैत अछि। कोनो एकटा बानर नह सँ शत्रुक शरीर केँ फाड़िकय भागि जाइत अछि, त कियो ओकरा लात सँ मारिकय। फेर नल आ नील रावणक माथ पर चढ़ि गेलाह आ नहसँ ओकर ललाटे केँ फाड़य लगलाह।

४. खून देखिकय ओकर हृदय मे बहुते दुःख भेलैक। ओ ओकरा पकड़बाक लेल हाथ पसारलक, मुदा ओ पकड़ मे नहि अबैत छथि। हाथक उपरे-उपर उड़ैत रहैत छथि मानू जेना दु गोट भँवरा कमलक वन मे विचरण कय रहल हो। फेर रावण भयंकर तामस करैत कुदिकय दुनू केँ पकड़ि लेलक। पृथ्वी पर पटकैत समय नल-नील केर हाथ मरोड़िकय भागि गेल। तेकर बाद तामस सँ भरल अपन हाथ मे दसों धनुष लेलक आ बानर सब केँ मारिकय घायल कय देलक।

५. हनुमान्‌जी आदि सब बानर केँ मूर्च्छित कयकेँ आर साँझक समय पाबि रावण हर्षित भेल। समस्त बानर-वीर केँ मूर्च्छित देखि रणधीर जाम्बवंत दौड़लाह। जाम्बवान्‌क संग जे भालू छलन्हि ओहो सब पहाड़ आ गाछ हाथ मे लेने रावण केँ ललकारि-ललकारि कय मारय लागल। बलवान्‌ रावण क्रोधित भेल आ पैर पकड़ि-पकड़ि ओहि अनेकों योद्धा सब केँ पृथ्वी पर पटकय लागल।

६. जाम्बवान्‌ अपन दल केर विध्वंस देखि क्रोध करैत रावण केँ छाती पर एक लात मारलनि।

छंद :
उर लात घात प्रचंड लागत बिकल रथ ते महि परा।
गहि भालु बीसहुँ कर मनहुँ कमलन्हि बसे निसि मधुकरा॥
मुरुछित बिलोकि बहोरि पद हति भालुपति प्रभु पहिं गयो॥
निसि जानि स्यंदन घालि तेहि तब सूत जतनु करय भयो॥

छाती मे लातक प्रचण्ड आघात लगिते रावण व्याकुल भ’ कय रथ सँ पृथ्वी पर खसि पड़ल। ओ बीसो हाथ मे भालु सब केँ पकड़िकय रखने छल, एना बुझाइत छल मानू रातिक समय भँवरा कमल मे बैसल हो। ओकरा मूर्च्छित देखि, फेर लात मारिकय ऋक्षराज जाम्बवान्‌ प्रभु लग चललाह। राति जानिकय सारथी रावण केँ रथ राखिकय ओकरा होश मे अनबाक उपाय करय लागल। मूर्च्छा दूर भेला पर सब रीछ-बानर प्रभु लग अयलाह। ओम्हर सब राक्षस बहुते भयभीत भ’ कय रावण केँ घेर लेलक।

मासपारायण, छब्बीसम् विश्राम

हरिः हरः!!