रामचरितमानस मोतीः रावण-हनुमान्‌ युद्ध, रावण केर माया रचब, रामजी द्वारा माया नाश

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

रावण-हनुमान्‌ युद्ध, रावण केर माया रचब, रामजी द्वारा माया नाश

रावण-विभीषण युद्ध केर प्रसंग निरन्तरता मे….

१. विभीषण रावण सँ लड़ैत रहलाह। हुनका बहुते थाकल देखि हनुमान्‌जी पर्वत धारण कय रावण पर टूटि पड़लाह। ओहि पर्वत सँ रावणक रथ, घोड़ा आर सारथीक संहार कय देलनि। रावणक सीना पर ओ लात सँ प्रहार कयलनि। रावण ठाढ़े रहि गेल मुदा ओकर शरीर खूब कम्पित होबय लगलैक। विभीषण ओतय गेलाह जाहि ठाम सेवकक रक्षक श्री रामजी रहथि। रावण फेरो ललकारा दैत हनुमान्‌जी पर प्रहार कयलक। हनुमान्‌जी पूँछ पसारि स्वयं आकाश मे उड़ि गेलाह। रावण हुनकर पूँछे धय लेलक। हनुमान्‌जी ओकरा संगहि लेने उपर दिश उड़ि गेलाह। फेर घुमिकय महाबलवान्‌ हनुमान्‌जी रावण सँ भिड़लाह।

२. दुनू समान योद्धा आकाश मे लड़ैत एक-दोसर केँ क्रोध कय-कय केँ मारय लगलाह। दुनू बहुते छल-बल करैत आकाश मे तेना शोभित भ’ रहल छथि मानू जे कज्जलगिरि आ सुमेरु पर्वत लड़ि रहल छल। जखन बुद्धि आर बल सँ राक्षस खसेलो सँ नहि खसैछ तखन मारुति श्री हनुमान्‌जी प्रभु केँ स्मरण कयलनि।

३. छंद :
संभारि श्रीरघुबीर धीर पचारि कपि रावनु हन्यो।
महि परत पुनि उठि लरत देवन्ह जुगल कहुँ जय जय भन्यो॥
हनुमंत संकट देखि मर्कट भालु क्रोधातुर चले।
रन मत्त रावन सकल सुभट प्रचण्ड भुज बल दलमले॥

श्री रघुवीर केर स्मरण कयकेँ धीर हनुमान्‌जी ललकारा दैत रावण केँ मारलनि। ओ दुनू गोटे पृथ्वी पर खसलाह आ फेर उठिकय लड़ैत छथि। देवता सब दुनू गोटेक ‘जय-जय’ करय लगलाह। हनुमान्‌जी पर संकट देखि बानर-भालू क्रोधातुर भ’ दौड़ल। मुदा रण-मद मे मातल रावण सब योद्धा केँ अपन प्रचण्ड भुजाक बल सँ कुचैल आ मसैल देलक।

४. फेर श्री रघुवीर केर ललकारा पर प्रचण्ड वीर बानर सब दौड़ल। बानर सभक प्रबल दल केँ देखिकय रावण माया प्रकट कयलक। क्षण भरि लेल ओ अदृश्य भ’ गेल। फेरो ओ दुष्ट अनेकों रूप प्रकट कयलक। श्री रघुनाथजीक सेना मे जतेक रीछ-बानर रहय, ओतबे रावण जहाँ-तहाँ (चारू दिश) प्रकट भ’ गेल। बानर सब अपरिमित रावण देखलक। भालू आर बानर सब जहाँ-तहाँ (एम्हर-ओम्हर) भागि चलल। बानर सब धीरज नहि धरैत अछि। “हे लक्ष्मणजी! हे रघुवीर! बचाउ, बचाउ!!” एना चिकरैत ओ सब भागल जा रहल अछि।

५. दसों दिशा मे करोड़ों रावण दौड़ैत अछि आर घोर, कठोर भयानक गर्जना कय रहल अछि। सब देवता सब डरा गेलाह आ सब कियो यैह कहैत भागि चलला जे “हे भाइ! आब जय केर आशा छोड़ि दहक। एकटा रावण सब देवता लोकनि केँ जीति लेने छल, आब त बहुते रास रावण भ’ गेल अछि। एहि सँ आब पहाड़ सभक गुफा सब मे आश्रय लय जाह।” ओतय ब्रह्मा, शम्भु आर ज्ञानी मुनि सब मात्र डटल रहला जे सब प्रभुक महिमा थोड़-बहुत जानि चुकल छथि।

६. छंद :
जाना प्रताप ते रहे निर्भय कपिन्ह रिपु माने फुरे।
चले बिचलि मर्कट भालु सकल कृपाल पाहि भयातुरे॥
हनुमंत अंगद नील नल अतिबल लरत रन बाँकुरे।
मर्दहिं दसानन कोटि कोटिन्ह कपट भू भट अंकुरे॥

जे प्रभुक प्रताप जनैत रहथि, से सब निर्भय डटल रहला। बानर सब शत्रु (बहुते रास रावण) केँ सत्य मानि लेलक। एहि सब सब बानर-भालू विचलित होइत ‘हे कृपालु! रक्षा करू’ एना कहैत भय सँ व्याकुल भ’ कय भागि गेल। अत्यन्त बलवान्‌ रणबाँकुरा हनुमान्‌जी, अंगद, नील आर नल लड़ैत छथि आ कपटरूपी भूमि सँ अंकुरा जेकाँ जन्मल कोटि-कोटि योद्धा रावण सब केँ मसैल रहल छथि।

७. देवता आर बानर सब केँ विकल देखिकय कोसलपति श्री रामजी हँसलाह आ शार्गंधनुष पर एक गोट बाण चढ़ाकय मायाक बनल समस्त रावण केँ एक्के बेर मे मारि खसौलनि। प्रभु क्षणहि भरि मे सब माया काटि देलखिन्ह। जेना सूर्य केर उदय होइते अन्हारक राशि फाटि जाइत अछि, नष्ट भ’ जाइत अछि।

८. आब एक्कहि टा रावण केँ देखिकय देवता सब हर्षित भेलाह आर ओ सब घुरिकय प्रभु पर बहुते रास पुष्प बरसौलनि। श्री रघुनाथजी हाथ उठाकय सब बानर केँ घुरौलनि। तखन ओ सब एक-दोसर केँ शोर (हाक) पाड़ि-पाड़ि कय घुरि आयल। प्रभुक बल पाबिकय रीछ-बानर सब दौड़ल। जल्दिये सब कियो कुदिते रणभूमि मे आबि गेल।

९. देवता लोकनि केँ श्री रामजीक स्तुति करैत देखि रावण सोचलक, हम एकरा सभक बुझय मे एकटा भ’ गेल छी, लेकिन एकरा सब केँ पता नहि छैक जे हम एक्के टा एकरा सभक लेल काफी छी, ई सोचैत ओ कहलक – अरे मूर्ख सब! तूँ सब त सब दिनके हमर मारल छह। एतेक कहिकय क्रोध करैत ओ आकाश मे देवता सब दिश दौड़ि पड़ल।

हरिः हरः!!