पूजापाठ मे हकार के महत्व
पूजा-अर्चना करनिहार समूचा गाम केँ हकार देल करैत अछि। “आइ सत्यनारायण भगवानक पूजा अछि, स्त्रीगणे-पुरखे हकार अछि” – यैह वाक्य बच्चा सँ सुनैत आयल छी। आर बेसी पूजापाठ केर आयोजन कम्मे देखलियैक, लेकिन सत्यनारायण भगवानक पूजा नियमित रूप सँ हरेक पूर्णिमा, संक्राति व कतहु-कतहु विशेष अवसर यथा घरबास, मुड़न, उपनयन, श्राद्धोपरान्त घरक पवित्रता लेल पर्यन्त सत्यनारायण भगवानक पूजा-उपासना करैत देखलहुँ, देखिते छी। गाम कम रहितो गामक ई सब संस्कार हमरा बहुत उच्चकोटिक लगैत अछि। परन्तु एहि पर गलत प्रभाव पड़ब शुरू भ’ गेल बुझाइछ। सार्वजनिक पूजा मे सेहो वर्चस्व सिद्ध करबाक होड़ देखल जा रहल अछि।
दुर्गा पूजा करबाक लेल बड कड़ा विधान छैक। मंत्र सब संस्कृत भाषा मे बहुत सहज नहि छैक। कठिन-कठिन मंत्र सभक उच्चारण आ बड़ा उच्चभाव मे शक्तिक अधिष्ठात्री जगदम्बाक आराधना कयल जाइत छैक। पूजा सामग्री – यज्ञ मे चढ़ाबय वला अच्छत-फूल, धूप-दीप, ताम्बुल-यथाभाग, नानाविध नैवेद्यानि स्वरूपक अनेकों हविष्य सँ भगवतीक आराधना केवल अपना लेल नहि, अपितु सम्पूर्ण इलाका (क्षेत्र) केर लोकक कल्याण निमित्त दुर्गा पूजाक परम्परा भेटैत अछि मिथिला मे। मूर्तिपूजाक परम्परा बड बेसी पुरान भले एतय नहि हो, परन्तु माताक पिण्डरूप मे पूजा-परम्परा बहुते प्राचीन अछि से घर-घर मे भगवतीक स्थापित रूप सँ बुझल जा सकैछ। तेहनो पूजा मे पूजा करबाक लेल नियुक्त अथवा मनोनीत अथवा स्वरुचि सँ साधना करनिहार साधक जँ सर्वकल्याणक निमित्त पूजा-आराधनाक मूल सिद्धान्त केँ नहि अपना पूजा-पाठ व आराधना, यज्ञ, अनुष्ठानादि मे माया मे ओझरायल देखाय त कहू समाज पर कि असर पड़त? ओहेन पूजा-पाठ व आराधना, यज्ञ, अनुष्ठान आदिक केहेन महत्व होयत? जे समाज निर्दोषभाव सँ अहाँ पर आश्रित रहि भगवतीक पूजा विधानपूर्वक भेल बुझैछ ओकर त मनोकामना ओहिना सहजता सँ पूर भ’ जेतैक, परन्तु जिम्मेदारी गछिकय सार्वजनिक हित केर भावना साधकहि नहि राखि सकय, अथवा साधकक नजदीकी परिवारक लोक पूजा स्थल पर केवल अपन वर्चस्व मे ओझरा लागय त सोचू नुक्सान केकर भेलैक!
उपरोक्त दुइ अनुच्छेद मे पूजा-पाठक मुख्य उद्देश्य आ ताहि मे हकार देबाक प्रयोजन जे सभक हित होइक – सर्वकल्याणक भावना आ ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ केर सूत्र जियय वला मिथिला समाज आइ भौतिकतावादी उजमाइर मे विचित्र ढंग सँ ओझरा जेबाक कारण मूल भावना सँ हंटि रहल अछि से दर्शन रखबाक चेष्टा कयल अछि। आशा करैत छी जे दुर्गा पूजा अथवा कोनो आन पूजा जे सभक हित-कल्याण लेल आयोजित होइछ ताहि मे कथमपि निजी वर्चस्व आ अहंताक भाव केर प्रदर्शन नहि हेबाक चाही। एहि सँ प्रत्यक्ष रूप सँ भले केकरो सन्तोष भेटि रहल हो, लेकिन दूरगामी प्रभाव एकर कहियो नीक नहि होयत। तेँ सावधानीपूर्वक अपन मूल्यवान् परम्परा केँ निर्वाह करय जाउ। पूजा-पाठ मे हकार दय-दय बेसी सँ बेसी सहभागिता केना हेतय ताहि पर ध्यान देनाय संकल्पकर्त्ताक मूल कर्तव्य थिक। हकारल लोक केँ ससम्मान पूजा-स्थल मे बैसबाक आ साधना मे लीन होयबाक, सब गोटे केँ समान रूप सँ स्वामित्व ग्रहण करैत ईश्वर आराधना मे लीन होयबाक अवसर जुटेनाय पूजा लेल संकल्पित व्यक्तित्वक कर्तव्य मे पड़ैत अछि। हमरा बुझने एहि भाव मे कनिको कमी नहि आबय अपन मिथिला मे तेहेन अनुशासन बनेने रही सब कियो। धन्यवाद!! सर्वभूतहिते रताः वला लोक कथमपि अपन स्वार्थ मे नहि डुबबाक चाही।
हरिः हरः!!