स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
रामचरितमानस मोती
मेघनादक युद्ध, रामजीक लीला सँ नागपाश मे बन्हेनाय
१. मेघनाद पूर्वोक्त मायामय रथ पर चढ़िकय आकाश मे चलि गेल आ अट्टहास करैत तेना गरजल जे बानरक सेना मे भय पसरि गेलैक। ओ शक्ति, शूल, तलबार, कृपाण आदि अस्त्र, शस्त्र व वज्र आदि बहुतो तरहक आयुध चलाबैछ तथा फरसा, परिघ, पाथर आदिक प्रहार संग बहुते रास बाण सभ बरसाबय लागल।
२. आकाश मे दसो दिशा मे बाणे-बाण पसैर गेल, मानू मघा नक्षत्र केर मेघ पसैर गेल हो। ‘पकड़, पकड़, मार, मार’ ई शब्द सुनाय पड़ैत अछि, मुदा जे मारि रहल अछि तेकरा कियो नहि चिन्हि पबैत अछि। पर्वत आ गाछ सब लयकय बानर सब आकाश मे दौड़िकय जाइत अछि, मुदा ओकरा (मेघनाद केँ) नहि देखि पबैत अछि, तेँ दुःखी भ’ कय घुरि अबैत अछि।
३. मेघनाद एहि तरहें मायाक बल सँ घाटी, रस्ता आ पवर्तक गुफा सब केँ बाणक पिंजरा बना देने छल, बाण सँ भरि देने छल। आब कतय जाउ, रास्ता नहि पाबि बानर सब व्याकुल भ’ गेल। मानू पर्वत इन्द्रक कैद मे पड़ि गेल हो!
४. मेघनाद मारुति हनुमान्, अंगद, नल आ नील आदि सब बलवान केँ व्याकुल कय देलक। फेर ओ लक्ष्मणजी, सुग्रीव आर विभीषण केँ बाण सँ मारिकय हुनका सभक शरीर केँ छलनी कय देलक। फेर ओ श्री रघुनाथजी सँ लड़य लागल।। ओ जे बाण चलबैत अछि ओ साँप जेकाँ लहरा रहल अछि।
५. जे स्वतंत्र, अनन्त, एक (अखंड) आर निर्विकार छथि, से खर केर शत्रु श्री रामजी (लीला सँ) नागपाश केर वश मे भ’ गेलाह। ओहि सँ बन्हा गेलाह।
६. श्री रामचंद्रजी सदा स्वतंत्र, एक, (अद्वितीय) भगवान् छथि। ओ नट के समान अनेकों प्रकारक देखाबटी चरित्र करैत छथि। रण केर शोभाक लेल प्रभु अपना केँ नागपाश मे बन्हा लेलनि, मुदा ई देखिकय देवता सब केँ बहुत बेसी डर लागि गेलनि।
७. शिवजी कहैत छथि – हे गिरिजे! जिनकर नाम जपिकय मुनि भव (जन्म-मृत्यु) केर फाँसी केँ काटि दैत छथि, से सर्वव्यापक आर विश्व निवास (विश्व केर आधार) प्रभु कतहु कोनो बंधन मे आबि सकैत छथि? हे भवानी! श्री रामजीक एहि सगुण लीला सभक विषय मे बुद्धि आ वाणीक बल सँ तर्क (निर्णय) नहि कयल जा सकैत अछि। एना विचारिकय जे तत्त्वज्ञानी आर विरक्त पुरुष छथि, ओ सब तर्क (शंका) छोड़िकय श्री रामजीक भजन टा करैत छथि।
८. मेघनाद श्री रामजीक समस्त सेना केँ व्याकुल कय देलक। फेर ओ प्रकट भ’ गेल आ दुर्वचन सब बाजय लागल। एहि पर जाम्बवान् कहलखिन – “अरे दुष्ट! ठाढ़ रह।” ई सुनि ओकरा बड़ा भारी क्रोध एलय। “अरे मूर्ख! हम तोरा बूढ़ जानिकय छोड़ि देने रही। अरे अधम! आब तूँही हमरा ललकारि रहल छँ?” – एना कहिकय ओ चमकैत त्रिशूल चलौलक। जाम्बवान् वैह त्रिशूल केँ हाथ सँ पकड़िकय दौड़लाह। आर ओहि सँ मेघनाद केर छाती पर प्रहार कयलनि। ओ देवता सभक शत्रु चक्कर खाकय पृथ्वी पर खसि पड़ल। जाम्बवान् फेर क्रोध मे भरिकय पैर पकड़िकय ओकरा घुमौलनि आ पृथ्वी पर पटकिकय ओकरा अपन बल देखौलनि। मुदा वरदानक प्रताप सँ ओ मारलो सँ नहि मारल जाइत अछि। तखन जाम्बवान् ओकर पैर पकड़िकय ओकरा लंका पर फेकि देलनि।
९. एम्हर देवर्षि नारदजी गरुड़ केँ पठौलनि। ओ तुरन्तहि श्री रामजी लग आबि गेलाह। पक्षीराज गरुड़जी सब माया-सर्प केर समूह केँ पकड़िकय खा गेलाह। तखन सब बानरक झुंड माया सँ रहित भ’ कय खूब हर्षित भ’ गेल। पर्वत, गाछ, पाथर आर नख धारण कएने बानर सब क्रोधित भ’ कय दौड़ल। निशाचर विशेष व्याकुल भ’ कय भागि चलल आ भागिकय किला पर चढ़ि गेल।
हरिः हरः!!