मिथिला मे परदेशिया नाच के बयार लेल जिम्मेदार केकरा कहल जाय?
क. सम्भ्रान्त समाजक गुम होयब आ समाजक विकृति प्रति कतहु कोनो प्रतिकार वा सामाजिक प्रतिकार तक नहि करब
ख. मिथिलाक समरस समाजरूपी शुद्ध दूध मे जातिवादिताक खटाई सँ फाटल दूध वला नौबत, फट्टन पर्यन्त काज नहि लागयवला स्थिति
ग. बाजारवाद के वीभत्स रूप मे पंजाबी भांगड़ा आ भोजपुरी गीतक फूहड़ शब्द व खतरनाक म्यूजिकल बिट्स नोट के धमाल
घ. युवा समुदायक मांग – अश्लीलता आ नग्नता, उच्छृंखलताक पराकाष्ठा आ केकरो हंटब-दबारब पर फिजूल प्रतिक्रिया व तनावक स्थिति
ङ. समाज केँ सही दिशा मे रखबाक लेल माता-बहिन (महिला समुदाय) केर प्रतिकारक पैघ असर, परञ्च वर्तमान एहि सँ बिल्कुल भिन्न, स्वयं माय-बहिन आ महिला सदस्य सभक आकर्षण भद्दा नाच आ सड़क पर खुल्ला प्रदर्शनक अपसंस्कृति
च. समाज, शासन, व्यवस्था, अनुशासन, शिक्षा, संस्कार – सब स्थिति मे अभद्र ढंग के स्खलन
छ. संचारकर्म मे हत्या, हिन्सा, डकैती, बलात्कार, वाहियात बात सभक भरमार लेकिन बौद्धिकता आ सुसंस्कार केँ बढ़ाबयवला सरोकारी साहित्यक घोर अकाल
एहेन-एहेन कतेको रास विन्दु सब अछि जाहि मे ‘परदेशिया नाच’ के बयार बहेबाक अवस्था देखल जा रहल अछि।
मिथिला मे दांडिया के बाजार अछि, झिझिया जेहेन लोकसंस्कृति आ लोकोत्सव प्रति कोनो खास आकर्षण कतहु नहि अभरैत अछि। एकर स्पष्ट कारण अपसंस्कृति आ लोक समाज मे अपनहि भाषा, साहित्य, संस्कार, सरोकार आदिक प्रति घोर नैराश्यता आ तेकरा जानि-बुझिकय आरो बढ़ावा देनाय मात्र अछि।
हरिः हरः!!