स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
रामचरितमानस मोती
श्री रामजीक प्रलापलीला, हनुमान्जीक लौटब, लक्ष्मणजी केँ होश आयब
दृश्य ई छैक जे मेघनाद द्वारा शक्तिबाण केर प्रहार सँ लक्ष्मणजी मूर्छित छथि, जाम्बवन्तजीक कहल मुताबिक हनुमान्जी द्वारा सुषेण वैद्य केँ आनल गेल, सुषेण वैद्य जे औषधि कहलखिन से अनबाक लेल हनुमान्जी गेलथि आ रास्ता मे बाधा उत्पन्न कयनिहार कालनेमिक वध करैत औषधि नहि चिन्ह सकबाक कारण पर्वते उठाकय लौटि रहल समय मे अयोध्याक आकाश मे उड़ैत घड़ी भरतजी द्वारा बिना फलवला बाण केर प्रहार सँ हनुमान् मूर्छित भ’ पृथ्वी पर खसलाह आ फेर भरतजीक विशेष प्रार्थना सँ श्री रामजीक कृपा पाबि ओ अपन स्फूर्ति केँ प्राप्त कयलनि आ आब शीघ्र लंका प्रस्थान करबाक आज्ञा मांगि चलि देलनि। पुनः …
१. ओम्हर लक्ष्मणजी केँ देखिकय श्री रामजी साधारण मनुष्य जेकाँ विलाप करय लगलाह –
“आधा राति बिति गेल अछि, हनुमान् नहि अयलाह।” एतेक कहिकय श्री रामजी छोट भाइ लक्ष्मणजी केँ उठाकय हृदय सँ लगा लेलनि आर बजलाह –
“हे भाइ! तूँ हमरा कहियो दुःखी नहि देखि सकैत छलह। तोहर स्वभाव सब दिन कोमल रहलह। हमर हित लेल तूँ माता-पिता केँ पर्यन्त छोड़ि देलह आ वन मे जाड़, गर्मी, हवा – सब सहन कयलह।
हे भाइ! ओ प्रेम आब कतय छह? हमर व्याकुलतापूर्वक वचन सुनिकय उठैत कियैक नहि छह?
यदि हम जनितहुँ जे वन मे भाइ सँ बिछुड़न होयत त हम पिताक वचन छल सेहो नहि मानितहुँ।
पुत्र, धन, स्त्री, घर आ परिवार- ई जगत् मे बेर-बेर बनैत आ बितैत छैक, मुदा जगत् मे सहोदर भाइ बेर-बेर नहि भेटैत छैक। हृदय मे एना विचारिकय हे तात! जागह।
जेना पांखि बिना पक्षी, मणि बिना साँप आर सूँड बिना श्रेष्ठ हाथी अत्यन्त दीन भ’ जाइत छैक, हे भाइ! जँ कहुँ जड़ दैव हमरा जीवित रखलनि तँ तोरा बिना हमरो जीवन एहने होयत।
स्त्री लेल प्रिय भाइ सँ बिछुड़िकय हम कोन मुँह लयकय अवध जायब? हम जग मे बदनामी भले सहि लितहुँ (जे राम मे कनिकबो वीरता नहि छन्हि जे स्त्री केँ हारि गेलाह। स्त्रीक हानि सँ (एहि हानि केँ देखैत) कोनो विशेष क्षति नहि छल। आब त हे पुत्र! हमर निष्ठुर आ कठोर हृदय एहि अपयश आर तोहर शोक दुनू केँ सहन करत।
हे तात! तूँ अपन माताक एक्के टा पुत्र आ हुनक प्राणाधार थिकह। सब प्रकार सँ सुख दयवला आर परम हितकारी जानि ओ तोहर हाथ पकड़िकय हमरा सौंपने रहथि। आब जायकय हम हुनका कि उत्तर देबनि? हे भाइ! तूँ उठिकय हमरा बुझबैत कियैक नहि छह?”
२. सोच सँ छोड़ेनिहार श्री रामजी बहुते प्रकार सँ सोच कय रहल छथि। हुनकर कमल फुलक पंखुड़ी जेहेन आँखि सँ विषादक नोरवला जल बहल जा रहल अछि। शिवजी कहैत छथि – “हे उमा! श्री रघुनाथजी एक (अद्वितीय) आर अखंड (वियोगरहित) छथि। भक्त सबपर कृपा करयवला भगवान् लीला कयकेँ मनुष्यक दशा देखौलनि अछि।”
३. प्रभुक (लीला लेल कयल गेल) प्रलाप केँ कान सँ सुनिकय बानर सभक समूह व्याकुल भ’ गेल। एतबहि मे हनुमान्जी आबि गेलाह, जेना करुणरस केर प्रसंग मे वीररस केर प्रसंग आबि गेल हो! श्री रामजी हर्षित होइत हनुमान्जी सँ गला मिललाह। प्रभु परम सुजान आर बहुते कृतज्ञ छथि।
४. तखन वैद्य (सुषेण) तुरन्त उपाय कयलनि जाहि सँ लक्ष्मणजी हर्षित होइत उठि बैसलाह। प्रभु भाइ केँ हृदय सँ लगा लेलनि। भालू आ बानरक समूह सब हर्षित भ’ उठल। फेर हनुमान्जी वैद्य केँ ओहि प्रकारे ओतहि पहुँचा देलनि, जाहि प्रकारे ओ पहिने हुनका अनने रहथि।
हरिः हरः!!