स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
रामचरितमानस मोती
भरतजीक बाण सँ हनुमान् केर मूर्च्छित होयब, भरत-हनुमान् संवाद
पैछला अध्याय मे कालनेमिक वध उपरान्त हनुमान्जी द्वारा सुषेण वैद्यक बतायल पर्वत पर औषधिक पहिचान नहि कय सकबाक कारण समूचा पर्वते उठाकय लंका लेल चलि देलनि आ आकाशमार्ग सँ उड़ैत अयोध्या उपरक आकाश मे पहुँचैत छथि – तखनः
१. भरतजी आकाश मे अत्यंत विशाल स्वरूप देखलनि, तखन मोन मे अन्दाज लगौलनि जे ई कोनो राक्षस थिक। ओ कान धरि धनुष खींचिकय बिना फल वला एकटा बाण मारलनि। बाण लगैत देरी हनुमान्जी ‘राम, राम, रघुपति’ केर उच्चारण करैत मूर्च्छित भ’ कय पृथ्वी पर खसि पड़लाह।
२. प्रिय वचन (रामनाम) सुनिकय भरतजी उठिकय दौड़लाह आ बहुते जिज्ञासा सँ हनुमान्जी लग पहुँचलाह। हनुमान्जी केँ व्याकुल देखिकय ओ हुनका हृदय सँ लगा लेलनि। बहुतो प्रकारे हुनका होश मे अनबाक कोशिश कयलनि, मुदा हुनका होश नहि अयलनि। तखन भरतजी बहुत उदास भ’ गेलाह आ मोन मे बहुते दुःखी भेलाह, नेत्र सँ विषादक नोर भरिकय ओ बजलाह – “जे विधाता हमरा श्री राम सँ विमुख कयलनि, वैह फेर ई भयानक दुःख देलनि अछि। जँ मन, वचन आ तन सँ श्री रामजीक चरणकमल मे हमर निष्कपट प्रेम अछि, आर यदि श्री रघुनाथजी हमरा पर प्रसन्न होइथ त ई बानर थकावट आ पीड़ा सँ रहित भ’ जाय।”
३. एतबा वचन सुनिते कपिराज हनुमान्जी ‘कोसलपति श्री रामचंद्रजीक जय हो, जय हो’ कहिते उठि बैसलाह। भरतजी बानर (हनुमान्जी) केँ हृदय सँ लगा लेलनि, हुनकर देह पुलकित भ’ गेलनि आ आनन्द संग प्रेमक नोर आँखि मे भरि गेलनि।
४. रघुकुलतिलक श्री रामचंद्रजीक स्मरण करैत भरतजीक हृदय मे बहुते प्रीति भ’ रहल छलन्हि। भरतजी बजलाह – “हे तात! छोट भाइ लक्ष्मण तथा माता जानकी सहित सुखनिधान श्री रामजीक कुशल कहू।” बानर (हनुमान्जी) संक्षेप मे सबटा कथा कहि सुनेलखिन। सुनिकय भरतजी दुःखी भेलाह आ मोन मे पछताबा करय लगलाह। “हा दैव! हम जगत् मे कियैक जन्म लेलहुँ? प्रभुक एकहु बेर काज नहि अयलहुँ।”
५. फेर कुअवसर जानि मोन मे धीरज धरैत बलवीर भरतजी हनुमान्जी सँ कहलखिन्ह – “हे तात! अहाँ केँ जाय मे देरी होयत आ भोर होइते देरी काज बिगड़ि जायत। तेँ अहाँ पर्वत सहित हमर बाण पर चढ़ि जाउ, हम अहाँ केँ ओतय पठा दैत छी जतय कृपाक धाम श्री रामजी छथि।”
६. भरतजीक ई बात सुनि एक बेर तँ हनुमान्जीक मोन मे अभिमान उत्पन्न भेलनि जे हमर भारी वजनक कारण बाण केना चलत? मुदा फेर ओ श्री रामचंद्रजीक प्रभावक विचार कयकेँ भरतजीक चरण केर वंदना करैत हाथ जोड़िकय बजलाह – “हे नाथ! हे प्रभो! हम अहाँक प्रताप हृदय मे राखिकय तुरन्त चलि जायब।” एना कहिकय आज्ञा पाबि आ भरतजीक चरणक वंदना कय हनुमान्जी चलि देलाह।
७. भरतजीक बाहुबल, शील (सुन्दर स्वभाव), गुण आर प्रभुक चरण मे अपार प्रेम केँ मने-मन बेर-बेर सराहना करैत मारुति श्री हनुमान्जी चलल जा रहल छथि।
हरिः हरः!!