मात्र भगवत्कृपासं सभक कल्याण संभव

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मैथिल यायावर, मधेपुरा/१२ अक्टुबर २०२३//मैथिली जिंदाबाद

परमात्मा,जीव आ माया,यैह तीन टा तत्व एहि संसार मे विद्यमान अछि। तीनू अनादि आ सनातन छै। भगवान चेतन स्वरूप छथि आ हुनकहि कृपासं हमसब एहि संसारक सबटा आन आन तत्वक अनुभूति करैत छी।

भगवान समस्त चर वा अचर के नियंता छथि।ओ सब किछु बनलाक बादो जस के तस बनल रहै छथि। कारण जे ओ पूर्ण छथि।आ जे पूर्ण छथि से अपूर्ण कोनाके भ सकै छैथ।

ऊं पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते ।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।

अर्थात,ओ पहिलहुं पूर्ण छलाह, एखनहुं पूर्ण छथि आ आगुओ पूर्ण रूपसँ विद्यमान रहथिन। कारण जे ओ परमब्रह्म परमेश्वर छथि। तेँ पूर्ण सँ पूर्ण के उत्पत्ति भेलाक बादो शेष स्वरूप पूर्णे रहि जाइत छथि।

प्रकृति के नियमानुसार चेतन के चेतन मे आ जड़ के जड़ मे स्वभाविक आकर्षण होइत छै। तेँ मानवो के भगवानक प्रति स्वभाविक आकर्षण होइत छै। कारण जे अंश(आत्मा) अपन अंशी(भगवान) के जाधरि पाबि ने लैत छै, ओकरा शांति नै भेटैत छै।

हमरा अहाँके भगवानक कृपासं पंचतत्वसं निर्मित मानव शरीर भेटल अछि।ई भौतिक शरीर एक ने एक दिन नष्ट भऽ जाएत। तेँ एहि शरीरक रहिते जौं हमसब भगवत्कृपा प्राप्त क ली तँ तखन फेर हमरा अहाँके ८४ लाख योनि मे भटक’ नहि पड़त।

मानव जाबत जिबैत छै, अहंकार मे जिबैत छै।आ जाधरि की ओ अपन ओहि अहंकारक त्याग नहि करैत छैक,ताधरि भगवत्कृपा भेटब मोशकिल छै।पता नहि किएक लोक ई बूझबाक प्रयासे नहि करैत छैक जे

ईस्वर अंस जीब अबिनासी।

चेतन अमल सहज सुखरासी।।

जेनांकि जल बिना माछ व्याकुल होइत छै, जेनांकि,पतिव्रता स्त्री अपन परदेस गेल पतिक वियोग मे व्याकुल होइत छै; तहिने मनोभाव ईश्वर के प्राप्तिके लेल आवश्यक होइत छै।

जौं हमसब आपन अहंकारके त्यागिके सत्य निष्ठा, पूर्ण श्रद्धा आ भक्तिक संग ईश्वरके खोजबाक चेष्टा करब त ओ एक ने एक दिन अबस्से भेटि जेता।