रामचरितमानस मोतीः लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध आ शक्तिबाण लगला सँ लक्ष्मणजीक मूर्च्छित होयब

स्वाध्याय

– प्रवीण नारायण चौधरी

रामचरितमानस मोती

लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध, लक्ष्मणजी केँ शक्तिबाण लागब

प्रसंग छल माल्यवान् (रावणक नाना) द्वारा रावण केँ बुझेनाय जे श्री रामजी संग वैरभाव केर त्याग कय हुनका जानकीजी वापस करू आर सर्वसमर्थ भगवानक भजन करू, एहि पर रावणक तामस आ माल्यवान् केँ दरबार सँ बाहर निकलि जेबाक आ दोबारा मुंह तक नहि देखेबाक भयावद आदेश रावण देलक आ माल्यवान् ओकर दुरमतिया मृत्युक दिशा मे लय जेबाक भान करैत ओतय सँ चलि गेलाक बाद रावणक पुत्र मेघनाद द्वारा क्रोधपूर्वक ऐगला दिन युद्ध मे अपन किछु पैघ करनी करबाक कथन –

१. मेघनाद क्रोधपूर्वक बाजल – भोरे हमर करामात देखब। हम बहुत किछु करब, कनिये मे कतेक कहू! पुत्र केर वचन सुनि रावण केँ भरोस भेलैक। ओ प्रेम सँ ओकरा अपन कोरा मे बैसा लेलक। एहिना आपस मे विचार करिते-करिते भोर भ’ गेलैक।

२. बानर सब फेर चारू फाटक पर आबि गेल छलैक। बानर सब क्रोध सँ भरल दुर्गम किला केँ घेर लेलक। नगर मे बहुते शोर मचि गेलैक। राक्षस सब सेहो बहुतो प्रकारक अस्त्र-शस्त्र धारण कयकेँ दौड़ल आ किला सब पर पहाड़क शिखर सब ढाहिकय पाथर सब जमा कय लेलक।

छंद :
ढाहे महीधर सिखर कोटिन्ह बिबिध बिधि गोला चले।
घहरात जिमि पबिपात गर्जत जनु प्रलय के बादले॥
मर्कट बिकट भट जुटत कटत न लटत तन जर्जर भए।
गहि सैल तेहि गढ़ पर चलावहि जहँ सो तहँ निसिचर हए॥

ओ सब पर्वत केर करोड़ों शिखर ढाहलक, अनेकों प्रकार सँ गोला सब चलय लागल। ओ गोला सब एना चलैत अछि मानू वज्रपात भ’ रहल हो। योद्धा सब गरजैत अछि, मानू प्रलयकालक बादल गरजैत हो। विकट बानर योद्धा भिड़ैत अछि, कटि जाइत अछि, ओकरा सभक शरीर जर्जर भ’ जाइत छैक, तैयो ओ सब लटैत नहि अछि, हिम्मत नहि हारैत अछि, ओहो सब पहाड़ उठाकय किला पर फेकैत अछि। राक्षस सब जहाँ-तहाँ मारल जाइत अछि।

३. मेघनाद कान जहाँ एना सुनलक जे बानर सब आबिकय फेर सँ किला घेरि लेलक अछि, तखन ओ वीर किला सँ उतरल आ डंका बजाकय ओकरा सभक सामने जाय लागल। मेघनाद जोर सँ चिकरिकय कहलकैक – समस्त लोक मे प्रसिद्ध धनुर्धर कोसलाधीश दुनू भाइ कतय छथि? नल, नील, द्विविद, सुग्रीव आर बल केर सीमा अंगद आ हनुमान्‌ कतय छथि? भाइ सँ द्रोह करयवला विभीषण कतय छथि? आइ हम सब केँ आ ओहि दुष्ट विभीषण केँ त निश्चिते टा मारब। एना कहिकय ओ धनुष पर कठिन बाण सब सन्धान कयलक आ अत्यन्त क्रोध करैत अपना कान घरि खींचलक।

४. मेघनाद बाण सभक समूह छोड़य लागल। मानू बहुते रास पाँखिवला साँप दौड़ि रहल हो! जहाँ-तहाँ बानर सब खसैत देखाय लागल। ओहि घड़ी कियो ओकरा सोझाँ नहि आबि सकल। रीछ-बानर सब जहाँ-तहाँ भागि गेल। ओकरा सब गोटे केँ युद्ध केर इच्छा बिसरा गेलैक। रणभूमि मे एहेन एकहु टा बानर या भालू नहि देखाय पड़ल जेकर ओ प्राणमात्र अवशेष नहि कय देने हो। (अर्थात्‌ जेकर खाली प्राणमात्र टा नहि बचल हो, बल, पुरुषार्थ सबटा नहि हारि रहल हो!) फेर ओ सब केँ दस-दस बाण मारलक, बानर वीर पृथ्वी पर खसि पड़ल। बलवान्‌ आर धीर मेघनाद सिंह समान नाद कयकेँ गरजय लागल।

५. सम्पूर्ण सेना केँ व्याकुल देखिकय पवनसुत हनुमान्‌ क्रोध कयकेँ एना दौड़लाह मानू स्वयं काल दौड़ल हो। ओ तुरन्त एकटा भारी पहाड़ उखाड़ि लेलनि आ बहुते क्रोध संग मेघनाद पर चला देलनि। पहाड़ सब केँ अपना दिश आबैत देखिकय ओ आकाश मे उड़ि गेल। ओकर रथ, सारथी आ घोड़ा सब किछु नष्ट भ’ गेलैक, चूर-चूर भ’ गेलैक। हनुमान्‌जी ओकरा बेर-बेर ललकारैत छथि, लेकिन ओ नजदीक नहि अबैत अछि, कियैक तँ ओ हुनकर बल केर मर्म जनैत छल।

६. आब मेघनाद श्री रघुनाथजी लग गेल आ ओ हुनका प्रति अनेकों तरहक दुर्वचन सभक प्रयोग कयलक। फेर ओ हुनका उपर विभिन्न अस्त्र-शस्त्र आ सब तरहक हथियार चलेलक। प्रभु खेलहि-खेल मे ओकर सबटा हथियार के बेअसर कय देलखिन, काटिकय अलग कय देलखिन। श्री रामजीक प्रताप (सामर्थ्य) देखिकय ओ मूर्ख लज्जित भ’ गेल आ तरह-तरह के माया सब करय लागल। जेना कोनो लोक छोटछिन साँपक बच्चा हाथ मे लयकय गरुड़ केँ डराबय आ हुनका संग खेल करय!

जासु प्रबल माया बस सिव बिरंचि बड़ छोट।
ताहि दिखावइ निसिचर निज माया मति खोट॥५१॥

शिवजी आ ब्रह्माजी तक पैघ-छोट (सब) जिनकर अत्यन्त बलवान्‌ मायाक वश मे अछि, नीच बुद्धि निशाचर हुनका अपन माया देखबैत अछि।

७. आकाश मे (खूब उपर) चढ़िकय ओ बहुते रास अंगार (आगि) बरसाबय लागल। पृथ्वी सँ जल केर धारा सब प्रकट होबय लागल। अनेकों तरहक पिशाच आ पिशाचिनी सब नाचि-नाचिकय ‘मार-मार, काट-काट’ केर आवाज निकालय लागल। ओ कखनहुँ त विष्टा, पीज, खून, केश सब आ हड्डी सब बरसाबैत छल आ कखनहुँ बहुते रास पत्थर सब फेकैत छल। फेर ओ धूरा बरसाकय एहेन अन्हार कय देलक जे अपनहि पसारल हाथ तक नहि सुझाइत छलैक।

८. माया देखिकय बानर सब अकुला उठल। ओ सब सोचय लागल जे एहि तरहें स्थिति बनत त सभक मरण भ’ जायत। ई सब तमाशा देखिकय प्रभु श्री रामजी विहुँसि उठलाह। ओ जानि लेलनि जे बानर सब डरा गेल अछि। ताहि पर श्री रामजी एक्कहि बाण मारिकय सबटा माया केँ काटि देलनि, जेना सूर्य अन्हारक समूह केँ हरि लैत अछि। तेकर बाद कृपा भरल दृष्टि सँ बानर-भालू सब केँ देखलनि जाहि सँ ओ सब एतबा प्रबल भ’ गेल जे रण मे रोकलो पर नहि रुकैत छल।

९. श्री रामजी सँ आज्ञा माँगिकय, अंगद आदि बानर सब केँ अपना संग लय हाथ मे धनुष-बाण लेने श्री लक्ष्मणजी तमसाकय विदाह भेलाह। हुनक लाल नेत्र छन्हि, चौड़ा छाती आर विशाल भुजा छन्हि। हिमाचल पर्वत समान उज्ज्वल (गौरवर्ण) शरीर किछु ललौन भ’ गेल छन्हि।

१०. एम्हर रावण सेहो बड़का-बड़का योद्धा सब केँ पठेलक जे अनेकों प्रकारक अस्त्र-शस्त्र लय युद्ध मैदान दिश दौड़ि पड़ल।

११. पर्वत, नख आर वृक्ष रूपी हथियार धारण कएने बानर ‘श्री रामचंद्रजी की जय’ के नारा लगबैत दौड़ि पड़ल। बानर आर राक्षस सब जोड़ी सँ जोड़ी भिड़ गेल। एम्हर आ ओम्हर दुनू दिश ‘जय’ केर इच्छा कम नहि छल। बानर सब राक्षस सब केँ मुक्का आ लात सँ मारैत अछि, दाँत सँ काटैत अछि। विजयशील बानर ओकरा सब केँ मारिकय फेर डँटितो खूब अछि।

१२. ‘मार, मार, पकड़, पकड़, पकड़िकय मारि दे, मूरी मोचड़ि दिहिन, गट्टा उखाड़ि ले’ – नवो खंड मे एहने आवाज सब भरल छैक। प्रचण्ड रुण्ड (धड़) जहाँ-तहाँ दौड़ि रहल अछि। आकाश मे देवतागण सब ई सारा कौतुक (तमाशा) सब देखि रहल छथि। हुनका सब केँ कखनहुँ दुःखो होइत छन्हि त कखनहुँ आनन्द मे सेहो रहैत छथि।

१३. खून बहि-बहिकय कतहु-कतहु खधारि सब मे भरि-भरिकय जमि गेल छैक आ ओहि पर धूरा उड़िकय पड़ि रहल छैक, ई दृश्य एहेन अछि मानू आइग के ढेरी पर छाउर पड़ल देखाइत हो। घायल वीर सब केना शोभित छथि, जेना फुलायल पलास केर गाछ।

१४. लक्ष्मण और मेघनाद दुनू योद्धा अत्यन्त क्रोध कयकेँ एक-दोसर सँ भिड़ैत छथि। दुनू गोटे लड़ैत समय एना देखाइत छथि मानू कियो एक-दोसर केँ जिति नहि सकैत छथि। राक्षस छल-बल (माया) और अनीति (अधर्म) करैत अछि, तखन भगवान्‌ अनन्तजी (लक्ष्मणजी) क्रोधित भेलाह आर ओ तुरन्त ओकर रथ केँ तोड़ि देलनि आ सारथीक टुकड़ा-टुकड़ा कय देलखिन। शेषजी (लक्ष्मणजी) ओकरा पर अनेकों तरहें प्रहार करय लगलखिन।

१५. राक्षस केर प्राणमात्र शेष रहि गेल छलैक। रावणपुत्र मेघनाद मोन मे अनुमान लगेलक जे आब त प्राण पर संकट आबि गेल, ई त हमर प्राणे लय लेता। तखन ओ वीरघातिनी शक्ति चलौलक। ओ तेजपूर्ण शक्ति लक्ष्मणजी केँ छाती मे लगलनि। शक्ति लगला सँ हुनका मूर्छा आबि गेलनि। तखन मेघनाद भय छोड़िकय हुनका लग चलि गेल। मेघनाद केर समान सौ करोड़ (अगणित) योद्धा हुनका उठा रहल अछि, लेकिन जगत्‌ केर आधार श्री शेषजी (लक्ष्मणजी) ओकरा सब सँ केना उठितथि? तखल ओ सब लजाकय चलि गेल।

१६. शिवजी कहैत छथि – हे गिरिजे! सुनू! प्रलयकाल मे जे शेषनाग केर क्रोधक अग्नि चौदहो भुवन केँ तुरन्ते जरा देने छल आर देवता, मनुष्य तथा समस्त चराचर (जीव) जिनकर सेवा करैत अछि, हुनका संग्राम मे के जिति सकैत अछि? एहि लीला केँ वैह टा जानि सकैत अछि जेकरा उपर श्री रामजीक कृपा हो।

१७. साँझ पड़ला पर दुनू दिशक सेना सब वापस चलि देलक, सेनापति सब अपन-अपन सेना सब केँ सम्हारय लगलाह। व्यापक, ब्रह्म, अजेय, संपूर्ण ब्रह्मांड के ईश्वर और करुणाक खान श्री रामचंद्रजी पुछलखिन – लक्ष्मण कतय छथि? ताबत धरि हनुमान्‌ हुनका लयकय आबि गेलाह। छोट भाइ केँ एहि दशा मे देखिकय प्रभु बहुते दुःखी भ’ गेलाह।

हरिः हरः!!