स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
रामचरितमानस मोती
युद्धारम्भ
जयति राम जय लछिमन जय कपीस सुग्रीव।
गर्जहिं सिंहनाद कपि भालु महा बल सींव॥लंकाकाण्ड – ३९॥
१. महान् बल केर सीमा ओ बानर-भालू सिंह समान उच्च स्वर सँ ‘श्री रामजीक जय’, ‘लक्ष्मणजीक जय’, ‘बानरराज सुग्रीवक जय’- एना गर्जना करय लागल।
२. लंका मे बड़ा भारी कोहराम मचि गेल। अत्यन्त अहंकारी रावण ई सुनिकय बाजल – “बानर सभक ढिठाइ त देखू!” एतेक कहैत हँसिकय ओ राक्षस सभक सेना बजौलक। “बंदर सब काल केर प्रेरणा सँ आबि गेल अछि। अपन राक्षस सब सेहो बहुत दिन सँ भुखायल अछि। विधाता एकरा सभक वास्ते घरे बैसल भोजन पठा देलखिन हँ।” एना कहिकय ओ मूर्ख बड़ा जोर सँ ठहाकार मारिकय हँसल आ फेरो बाजल – “हे वीर सेना लोकनि! सब कियो चारू दिशा मे जाउ आ रीछ-बानर सब केँ पकड़ि-पकड़िकय खाउ।”
३. शिवजी कहैत छथि – “हे उमा! रावण केँ एना अभिमान रहैक जेना टिटही (टिटिहिरी) पक्षी पैर उपर कय केँ सुतैत अछि, मानू आकाश केँ थाम्हि लेत।”
४. आज्ञा माँगि हाथ मे उत्तम भिंदिपाल, साँगी (बरछी), तोमर, मुद्गर, प्रचण्ड फरसा, शूल, दोधारी तलबार, परिघ आर पहाड़ सभक टुकड़ा लयकय राक्षस सब चलि देलक। जेना मूर्ख मांसाहारी पक्षी ललका पाथर सभक समूह देखिकय ओहि पर टूटि पड़ैत अछि, आ पाथर पर लोल टुटबाक दुःख ओकरा नहि सुझाइत छैक, तहिना ई बेसमझ राक्षस सब दौड़ल।
५. अनेकों प्रकारक अस्त्र-शस्त्र आर धनुष-बाण धारण कएने करोड़ों बलवान् आ रणधीर राक्षस वीर परकोटाक कँगूर (मकानक छत सब) पर चढ़ि गेल। ओ सब परकोटाक कँगूर पर केना शोभित भ’ रहल अछि, मानू सुमेरु केर शिखर पर बादल विराजित हो।
६. जुझाऊ (युद्धबाजा), ढ़ोल, डंका आदि बाजि रहल अछि, जेकर ध्वनि सुनिकय योद्धा सभक मोन मे लड़बाक उत्साह जागि रहल छैक। अगणित नफीरी (शहनाई संग बजबयवला बाँसुरी जेहेन एकटा बाजा) आ भेरी (युद्ध मे बजाओल जायवला बाजा) – ई सब बाजि रहल अछि जे सुनिकय कायर लोकक हृदय मे दरारि पड़ि जाइत छैक।
७. ई राक्षस सेना सब अत्यन्त विशाल शरीरवला महान् योद्धा बानर आ भालू सभक ठट्ट (समूह) देखलक। देखलक जे ओ रीछ-बानर सब दौड़ैत अछि, औघट (ऊँच-नीच, विकट) घाटी सब केँ सेहो कोनो माइन नहि करैत अछि। पहाड़ सब केँ हाथे सँ फोड़िकय रास्ता बना लैत अछि। करोड़ों योद्धा कटकटाइत आ गर्जैत अछि। दाँत सँ ठोर कटैत आ खूब डपटैत अछि। ओम्हर रावण केर आर एम्हर श्री रामजीक दोहाए देल जा रहल अछि। ‘जय’ ‘जय’ ‘जय’ केर ध्वनि होइते लड़ाइ शुरू भ’ गेल।
८. राक्षस सब पहाड़क शिखर सब फेंकैत अछि। बानर सब कूदिकय ओकरा पकड़ि लैत अछि आ वापस राक्षसे सब पर वैह शिखर सँ प्रहार कय दैत अछि।
छंद :
धरि कुधर खंड प्रचंड मर्कट भालु गढ़ पर डारहीं।
झपटहिं चरन गहि पटकि महि भजि चलत बहुरि पचारहीं॥
अति तरल तरुन प्रताप तरपहिं तमकि गढ़ चढ़ि चढ़ि गए।
कपि भालु चढ़ि मंदिरन्ह जहँ तहँ राम जसु गावत भए॥
प्रचण्ड बानर आर भालू पर्वत सभक टुकड़ा लय-लयकय किला पर फेंकैत अछि। ओ झपटैत अछि आर राक्षस सभक पैर पकड़िकय ओकरा सब केँ पृथ्वी पर पटकिकय मारैछ आ फेर भागि जाइछ, फेर घुरैत अछि आ दुश्मन केँ ललकारैत अछि। अत्यन्त चंचल आ खूब तेजस्वी बानर-भालू बड़ा फुर्ती सँ कूदिकय किला सब पर चढ़ि जाय गेल आ जहाँ-तहाँ महल सब मे घुसिकय श्री रामजीक यश गाबय लागल।
फेर एक-एक राक्षस केँ पकड़िकय ओ बानर सब भागि चलल। उपर अपने आ नीचाँ राक्षस योद्धा – एहि तरहें ओ सब किला सँ धरती पर आबिकय खसैत अछि।
९. श्री रामजीक प्रताप सँ प्रबल बानर सभक झुंड राक्षस योद्धा सभक झुंड केँ मसलि-मसलिकय मारि रहल अछि। बानर फेरो जतय-ततय किला सब पर चढ़ि गेल आ प्रताप मे सूर्य समान श्री रघुवीर केर जय-जयकार करय लागल। राक्षस सभक झुंड ओहिना भागि चलल जेना जोरदार हवा चलला पर बादल सभक समूह तितर-बितर भ’ जाइत अछि।
१०. लंका नगरी मे बड़ा भारी हाहाकर मचि गेल। बालक, स्त्री आ रोगी सब असमर्थताक कारण कानय लागल। सब मिलिकय रावण केँ गरियाबय लागल जे राज्य करैत ई मृत्यु केँ केना बजा लेलक।
११. रावण जखन अपन सेनाक विचलित हेबाक बात कान सँ सुनलक तखन भागैत योद्धा सब केँ घुराकय ओ क्रोधित होइत बाजल – “हम जेकरा रण सँ पीठ देखाकय भगैत अपना कान सँ सुनि लेब, ओकरा स्वयं भयानक दोधारी तलबार सँ मारि देब। हमरे सब दिन खेलक, भाँति-भाँतिक भोग कयलक आ आब रणभूमि मे ओकरा सब केँ अपन प्राण बड बेसी प्यारा भ’ गेलैक!” रावणक उग्र (कठोर) वचन सुनिकय सब वीर डरा गेल आ लज्जित भ’ कय क्रोध कयकेँ फेर युद्ध करबाक लेल चलि देलक।
१२. “रण मे (शत्रुक) सोझाँ युद्ध करिते मरय मे वीर केर शोभा छैक।” ई सोचिकय ओ सब प्राणक लाभ छोड़ि देलक। बहुते रास अस्त्र-शस्त्र धारण कयलक, सब वीर ललकारि-ललकारिकय भिड़न्त करय लागल। ओ सब परिघ आर त्रिशूल सब सँ मारि-मारिकय सब रीछ-बानर सब केँ व्याकुल कय देलक।
१३. शिवजी कहैत छथि – “बानर सब डरक मारे घबड़ाकय भागय लागल, यद्यपि हे उमा! आगू चलिकय वैह सब जीतत।”
१४. कियो कहैत अछि – “अंगद-हनुमान् कतय छथि? बलवान् नल, नील आर द्विविद कतय छथि?” हनुमान्जी जखन अपन दल केँ विकल (भयभीत) हेबाक बात सुनलनि, ताहि समय ओ बलवान् पश्चिम द्वार पर रहथि। ओतय हुनका संग मेघनाद युद्ध कय रहल छल। ओ द्वार टूटि नहि रहल छल, बड भारी दिक्कत भ’ रहल छलैक। तखन पवनपुत्र हनुमान्जीक मोन मे बड़ा भारी क्रोध भेलनि। ओ काल केर समान योद्धा बड़ा जोर सँ गरजलाह आ कूदिकय लंकाक किला पर चढ़ि गेलथि आ पहाड़ लयकय मेघनाद दिश दौड़ि पड़लाह। ओकर रथ केँ तोड़ि देलखिन, सारथी केँ मारि खसेलखिन आ मेघनादक छाती पर खूब जोर सँ लात मारलखिन। दोसर सारथी मेघनाद केँ व्याकुल भेल देखि ओकरा तुरन्त रथ मे चढ़ौलक आ घर दिश भागि गेल।
१५. एम्हर अंगद सुनलनि जे पवनपुत्र हनुमान् किला पर असगरे गेला अछि त रण मे बाँका बालि पुत्र बानरक खेल जेकाँ कूदिकय किला पर चढ़ि गेलाह। युद्ध मे शत्रु सभक विरूद्ध दुनू बानर क्रुद्ध भ’ गेलाह। हृदय मे श्री रामजीक प्रताप केर स्मरण कयकेँ दुनू गोटे दौड़िकय रावणक महल पर जा चढ़लाह आ कोसलराज श्री रामजीक दोहाय बाजय लगलाह।
१६. ओ सब कलश सहित महल केँ पकड़िकय ढाहि देलनि। ई देखिकय राक्षस राज रावण डरा गेल। सब स्त्रीगण हाथ सँ छाती पिटय लगलीह आ कहय लगलीह – “एहि बेर त दुइ उत्पाती बानर एक्के संग आबि गेल अछि।” हनुमान्जी आ अंगदजी बानरलीला कयकेँ (घुड़की दयकय) हुनका लोकनि केँ आरो डरबैत छथि आ श्री रामचंद्रजीक सुन्दर यश सुनबैत छथि। फेर सोनाक खंभा सब केँ हाथ सँ पकड़िकय ओ सब एक-दोसर सँ कहैत छथि जे आब उत्पात आरम्भ कयल जाय।
१७. ओ सब गर्जना करैत शत्रु सेनाक बीच मे कूदि गेलाह आ अपन भारी भुजाबल सँ ओकरा सभक मर्दन करय लगलाह। केकरो लात सँ त केकरो थापड़ सँ खबरि लैत छथि आ कहैत छथि जे तूँ श्री रामजी केँ नहि भजैत छँ, तेकरे फल खो। एक केँ दोसर सँ रगड़िकय मसैल दैत छथिन आ मूरी मोचरिकय फेंकि दैत छथिन। ओ मूरी जाकय रावणक सामने मे खसैत अछि आर एना फुटैत अछि मानू दहीक मटकुरी फूटि रहल हो। जखन बड़का-बड़का मुखिया (प्रधान सेनापति) सब केँ पकड़ि लैत छथि त ओकरा सभक पैर पकड़िकय ओकरा प्रभुक पास फेंकि दैत छथिन। विभीषणजी ओकरा सभक नाम बतबैत छथिन आ श्री रामजी ओकरो सब केँ अपन धाम (परम पद) दय दैत छथिन। ब्राह्मण सभक मांस खायवला ओ नरभोजी दुष्ट राक्षस सब सेहो वैह परमगति केँ पाबि जाइत अछि जाहिक याचना योगीजन करैत छथिन मुदा सहजता सँ हुनको लोकनि केँ प्राप्त नहि होइत छन्हि।
१८. शिवजी कहैत छथि – “हे उमा! श्री रामजी बड़ा कोमल हृदय आर करुणाक खान छथि। ओ सोचैत छथि जे राक्षस हमरा वैरिये भाव सँ सही, लेकिन स्मरण त करिते टा अछि। एना हृदय मे जानि ओ ओकरो सब केँ परमगति (मोक्ष) दैत छथिन। हे भवानी! कहू त एहेन कृपालु आर के अछि? प्रभुक एहेन स्वभाव सुनियो कय जे मनुष्य भ्रम त्याग कय केँ हुनकर भजन नहि करैत अछि, ओ अत्यन्त मन्दबुद्धि आ परम भाग्यहीन अछि।”
१९. श्री रामजी कहलखिन जे अंगद आ हनुमान किला मे प्रवेश कय गेल छथि। दुनू बानर लंका मे विध्वंस करैत केना शोभा दैत छथि जेना दुइ मन्दराचल समुद्र केँ मथि रहल होइथ। भुजाक बल सँ शत्रुक सेना केँ कुचलिकय आ मसलिकय, फेर दिनक अन्त होइत देखि हनुमान् आर अंगद दुनू कूदि पड़लाह आ श्रम-थकावट रहित भ’ कय ओहिठाम आबि गेलाह जतय भगवान् श्री रामजी रहथि। ओ सब प्रभुक चरण कमल मे सिर नमौलनि। उत्तम योद्धा सबकेँ देखि श्री रघुनाथजी मन मे बहुत प्रसन्न भेलाह। श्री रामजी कृपा कयकेँ दुनू गोटे केँ देखलनि जाहि सँ ओ सब श्रमरहित आ परम सुखी भ’ गेलाह।
२०. अंगद आ हनुमान् केँ घुरि जेबाक बात बुझि आरो भालू व बानर वीर सब वापस जाय लगलाह। राक्षस सब प्रदोष (सायं) काल केर बल पाबि रावणक दोहाइ दैत बानर सब पर धावा कय देलक। राक्षस सभक सेना अबैत देखि बानर सब फेर घुरल आ ओहो सब जतय-ततय कटकटाकय भिड़न्त करय लागल।
२१. दुनू दल बड़ा बलवान् अछि। योद्धा सब ललकारि-ललकारिकय लड़ैत अछि। कियो हारि नहि मानैत अछि। सब राक्षस महान् वीर अत्यन्त कारी अछि आ बानर सब विशालकाय तथा अनेकों रंगक अछि। दुनू दल बलवान् अछि आर समान बलवला योद्धा सब अछि। ओ सब क्रोध कयकेँ लड़ैत अछि आ खेल करैत वीरता देखबैत अछि। राक्षस आर बानर युद्ध करैत एहेन बुझि पड़ैत अछि मानू क्रमशः वर्षा आर शरद् ऋतु मे बहुतो रास बादल पवन सँ प्रेरित भ’ लड़ि रहल हो!
२२. अकंपन आ अतिकाय – ई सेनापति अपन सेना केँ विचलित होइत देखलक त माया पसारलक। पलक झपकिते अत्यंत अन्हार भ’ गेलैक। खून, पाथर आर छाउर केर बरखा होबय लगलैक। दसों दिशा मे अत्यन्त घनघोर अन्हरिया देखिकय बानर सभक सेना मे खलबली मचि गेलैक। एक केँ दोसर नहि देखा रहल छैक, सब जहाँ-तहाँ शोर मचा रहल छल।
२३. श्री रघुनाथजी सब रहस्य जानि गेलाह। ओ अंगद आर हनुमान् केँ बजौलनि आ सब समाचार कहिकय बुझौलनि। सुनिते देरी ओ दुनू कपिश्रेष्ठ क्रोध करैत दौड़ि पड़लाह। फेर कृपालु श्री रामजी हँसिकय धनुष सँ अग्निबाण चलौलनि, जाहि सँ चारू दिश प्रकाश भ’ गेल। अन्हरिया छँटि गेल। जेना ज्ञान केर उदय भेलापर सब प्रकारे सन्देह दूर भ’ जाइत अछि!
२४. भालू आ बानर प्रकाश पाबिकय श्रम आ भय सँ रहित तथा प्रसन्न भ’ कय दौड़ल। हनुमान् आर अंगद रण मे गरजय लगलाह। हुनकर हाँक सुनितहि राक्षस सब भागि पड़ल। भागैत राक्षस योद्धा सब केँ बानर आ भालू सब पकड़िकय पृथ्वी पर पटकिकय मारैत अछि आ अद्भुत (आश्चर्यजनक) करनी करैत अछि – युद्धकौशल देखबैत अछि। पैर पकड़िकय ओकरा सब केँ समुद्र मे फेंकि दैत छथि जतय मगर, साँप आ मच्छ ओकरा सब केँ पकड़ि-पकड़िकय खा जाइत अछि।
हरिः हरः!!