मैथिली पत्रकारिता आ “भारती मंडन”

1025
  1. मैथिल यायावर, सहरसा,७ अक्टूबर २०२३/मैथिली जिंदाबाद।

 

१९०५ ईस्वी मे “हितसाधन” मैथिली मासिक से आरंभ भेल मैथिली पत्रकारिताक यात्रा बहुत रास पड़ाव पर ठमकैत चलैत फेर आगू बढैत,आजुक समय मे “भारती मंडन” धरि पहुंच चुकल अछि।

तखन मिथिला मैथिली नाम से हल्ला मचौनिहार सबटा समृद्ध मैथिलसब अपन गौरवगाथा मे तेना ने लिप्त भेल छल की ओ अपना के ओहि आत्ममुग्धताक भावसे बाहर नहिं निकालि सकलाह। तकर परिणाम ई भेल जे हितसाधन सनके उत्कृष्ट पत्रिका मिथिला मे यथोचित स्थान आ सम्मान नहिं पाबि सकल। बाद मे आन आन ठाम सं पल्लवित पुष्पित होइत ई पत्रिका अपन प्राणांत समय मे बिहार पहुंचि गेल। तथापि एकरा तखनहुं मिथिला मे ओ मान स्थान नहिं भेटि सकल,जकर की ई हकदार छल। जखनकि विद्यावाचस्पतिक संपादन मे ई अपन एकटा उच्च आदर्श प्राप्त केने छल। मुदा,ई उच्च आदर्श मैथिलक पेट मे गुड़गुड़ी पैदा क’ देलक। परिणामस्वरूप ई पत्रिका तीन वर्षक अल्पावधि मे मिथिलाक आंगन मे दम तोड़ि देलक।

 

१९०६ मे मिथिला मोदक आरंभ आ १९०८ मे मिथिला मिहिरक आरंभ से मैथिली भाषा आ साहित्यक क्षेत्र मे आ संगहि मैथिली पत्रकारिताक क्षेत्र मे विकासोन्मुख बाट बनल। मुदा,बनारससं प्रकाशित मिथिला मोदक स्थिति त सुदृढ़ रहल, किन्तु, मिथिला मिहिरक प्रकाशन मे अर्थाभावक कारणे ततेक ने एक्सपेरिमेंट सब भेल जे ई कखनहुं द्विभाषी त कखनहुं त्रिभाषी बनि गेल।

ई अकाट्य सत्य थिक जे मुस्लिम आक्रांता आ अंग्रेजी शासनक समय मे मिथिलो ओहि आक्रांता सभक प्रभाव से अछूता नहिं रहल होएत । मुदा, तखनहुं मिथिलाक माटिके संस्कृति ततेक विपन्न नहिं छल जे कि आक्रांता सभक सांस्कृतिक प्रभाव के आत्मसात क लेबाक स्थिति बनि गेल होएत। मिथिला सदैव से सांस्कृतिक आ आर्थिक रूप सं संपन्न रहल अछि। मुदा,एकर वैयक्तिक वैचारिक दरिद्रताक कारणे तत्कालीन समयक भारतीय समाज मे एकरा दीन हीन अकिंचनक रुप मे देखल परेखल गेल छल। जखनकि ई आर सब तरहेसं संपन्न छल। एखनोधरि मिथिला मे मैथिली के तेहन नीक सन स्थिति मे नहिं देखल जा सकैत अछि। जौं समग्र रूप सं देखल परेखल जाए त मिथिलासं बेसी नीक स्थिति मे त मैथिली एखनहुं नेपाल मे अछि।

तें मिथिला मिहिरो बेसी दिन धरि नहिं चलि सकल । मुदा, संभवतः सत्तर पचहत्तर वर्षक कालावधि मे ई मैथिलक हृदय मे नब आश अबस्से जगौने रहल।एकर मिथिलांकक (अगस्त १९३५) बेसी महत्वपूर्ण भूमिका रहल। यद्यपि एहि अंक मे प्रकाशित तथ्य ततेक जनोपयोगी नहिं छल। कारण जे एहि अंक मे बेसीतर गौरवगाथा ही प्रस्तुत भेल छल। मिथिलाक माटिके बहुत रास विद्वानो एहि अंकमे अतीत रागे गौने छथि। अधिकाधिक रुप से अपन प्राचीनताक वर्णन केने छथि।

 

प्रसिद्ध मैथिली साहित्यकार प्रोफेसर भीमनाथ झाके कहब छैन्ह जे “कोनो भी नीक पत्रिकाक लेल एहेन तरहक एकटा उचित मानदंड हेबाक चाही जे ओहि पत्रिका मे तत्कालीन जीवंत समय आ समाजक प्रति यथार्थ चिंता होए, अतीत के प्रति उचित लगाव होए, वर्तमानक वैभव आ भविष्यक दिशा दर्शनक यथासंभव समुचित संकेत होए।”

 

प्रोफेसर भीमनाथ झाके उपरोक्त वक्तव्य के आत्मसात करै मे सर्वप्रथम “मिथिला दर्शन” आ तखन फेर “भारती मंडन” सन पत्रिका अग्रसर भेल अछि, से बुझाइत अछि।

ओना अंतिका नामक पत्रिका सेहो अपन आरंभिक समयमे उच्च मानदंड के अपनौने छल। किन्तु, कालांतर मे ई राजनीतिक प्रभाव मे आबि गेल। जखनकि १९९५ से आरंभ भेल “भारती मंडन”, एखनधरि अपन स्तरीयता के बनौने अछि। यद्यपि ई एकटा अनियतकालीन पत्रिका थिक। तथापि ई अपन यथोचित मानदंड के एखनधरि अपनौने अछि। मिथिलाक प्रसिद्ध पत्रिका मिथिला मिहिरक मिथिलांकक पुनर्प्रकाशन क’ ई एकटा उच्च आदर्शक संगे अपन अतीतक प्रति यथोचित सम्मान देखौने अछि। एतबे टा नहि, एहि पत्रिकाक संपादक केदार काननक मोताबिक ओ भविष्य मे ओहि मिथिलांकक हिंदी आ मैथिली अंकक संयुक्त रूप से पुस्तकाकार रुपे प्रकाशनक बात कहने छथि।

आब किछु बात करी एहि भारती मंडनक नब अंकक संदर्भ मे ;

एहि अंक केर दू टा भाग अछि —

१.मिथिलांकक हिंदी भाग

२.युवा विशेषांक

 

मिथिलांकक हिंदी परिशिष्ट मे उदयनाथ झा ‘अशोक’क लिखल अद्वितीय मिथिलांकक लेखन सं मिथिलाक विविध साहित्यिक कालखंडक जानकारी भेटैत अछि। संगहि ओ बहुत रास बात विचार मिथिलाक इतिहासक संगे एकर सांस्कृतिक उन्नयन मे सहभागी बनल विद्वतजन सभक संदर्भ मे कहने छथि।

कमलानंद झाक लिखल “मिथिलांक का अतीत राग” हमरा बेसी आकृष्ट कयलक अछि।ओ अपन सूझबूझ से तथ्यात्मक जानकारी देने छथि।

ठीक ओहिना राहुल सांकृत्यायन, शिवपूजन सहाय, सुनीति कुमार चटर्जी, गौरीनाथ झा, जटेश्वर झा, रामवृक्ष बेनीपुरी, सीताराम झा, परमानंद दत्त, जनार्दन झा जनसीदन, रामचंद्र मिश्र,भोलालाल दास आदि विद्वतजनक आलेख खूब नीक जानकारी के संगे मिथिलाक माटिके सांस्कृतिक विरासत आ इतिहासक संदर्भ मे ज्ञानवर्धन करैत अछि।

हरिऔध, आरसी प्रसाद सिंह, दिनकर आ मैथिली शरण गुप्त आदि कविक कविता खूब आकर्षित करैत अछि।

 

एहि पत्रिकाक युवा विशेषांक हमरा बेसी आकृष्ट एहि लेल नहि करैत अछि की एहि अंकमे हमरो सनक युवाक रचना एहिमे शामिल कयल गेल अछि। अपितु, एहि अंकक पढला सं हमरा अपन वर्तमान समयक समस्त सम्माननीय युवा रचनाकारक लेखन से परिचित हेबाक अवसर भेटल अछि। अपन समय आ समाजक यथार्थ रचनाकार सभकें पढब गुणब हमरा खूब आकृष्ट कयलक। संगहि मैथिली भाषाक शब्दावली से परिचित हेबाक अवसर सेहो देलक।

 

युवा विशेषांक मे कथा समवेत के अन्तर्गत मेनका मल्लिक,रोमिशा, अभिलाषा,बौआभाई, कमलेश प्रेमेन्द्र,बिभा कुमारी, कुमार विक्रमादित्य, मिथिलेश सिन्हा मिसिदा, अनामिका झा, दीपिका झा आ सोनी नीलू झाक कथा खूब आकृष्ट करैत अछि। कारण जे सब कथाकार अपना हिसाबे नीक नीक कथाक रचना करने छथि।

 

ओहिना एहि क्रम मे कविता समवेत के अन्तर्गत कामिनी,नीलमाधव चौधरी, मैथिल प्रशान्त,पल्लवी झा,मुक्ता मिश्र, संस्कृति मिश्र, भावना झा, निशाकर, पंकज कुमार, विक्रमादित्य, नवलश्री पंकज आदिक कविता एकटा नब आयाम से परिचित करबैत अछि।

 

बीहनि कथाक अन्तर्गत मैथिल प्रशान्त, अनुप्रिया,मुक्ता मिश्रा, मुन्नी कामत, ज्ञानवर्धन कंठ, पल्लवी मंडल आ प्रदीप कुमार झा आदिक कथा एकटा नब दृष्टि आ रोचकताक संग लिखल गेल अछि, से बुझाइत अछि।

 

तहिना मूल्यांकन के अन्तर्गत अशोक, कंचन दीपा, मुन्नी कामत, प्रांजल,उज्जवल कुमार झा आ धर्मव्रत चौधरी आदिक आलेख पठनीय अछि।

 

समग्र रूप से कहि त “भारती मंडन”क सत्तरहम अंक पठनीय आ संग्रहणीय अछि।

सही रूप सं कहि त अपन अतीत आ वर्तमान के एक्के संगे देखबाक आ बुझबाक प्रयास अछि ई भारती मंडनक नब अंक।