सार्थक काज के कमी नहि छैक मिथिला मे
अपने सब देखैत होयब जे बिना बातक बात मे लोक कतेक फँसबैत छैक। अहाँ चाहबो नहि करब तैयो लोक अहाँक नाम लय-लय कय कतेको रंग के अन्दाज आ कल्पना सब करैत रहत। कियैक? कियैक त आजुक दुनिया मे व्यावसायिकता आ सामाजिकता सँ बहुतो लोक केँ कोनो मतलब नहि छैक, सिवाये एकर जे ओ अहाँक चरित्र-चित्रण करय आ अपन मोन केँ मनेबाक संग-संग अपनहि समान बहुतो लोक केँ अहाँक बारे मे गलत अवधारणा बनेबाक लेल प्रेरित करय।
सामाजिक गतिविधि मे हमेशा समाजक लेल चिन्तन करैत रहबाक अछि। अहाँक सामना करय तक के ओकरा हिम्मत एहि जीवन मे कहियो नहि भ’ सकैत छैक। कियैक? कियैक तँ समाजक हित लेल जे चिन्तन करैत अछि ओकरा लोक भगवान जेकाँ सम्मान दैत छैक। अकर्मल लोक एहि धाह केँ बर्दाश्त कहियो नहि कय सकैत अछि। तेँ अहाँ सिर्फ अपन काज पर ध्यान दियौक आ बढ़ैत रहू। अपन जीवन संग-संग समस्त समाज आ सरोकार लेल समर्पण भाव सँ अपन ऊर्जाक लगानी करैत रहू।
बुझले होयत, तैयो कहि दी –
कर्मप्रधान विश्व मे सिर्फ आ सिर्फ कर्म के प्रधानता होइत छैक। जे जेहेन करत, ओकरा ओहेन फल भेटबे टा करतैक। नीक केँ नीक आ बेजा केँ बेजा! कोना? कर्म ३ प्रकार के होइत छैक, क्रियमाण, संचित आ प्रारब्ध। क्रियमाण सदिखन अहाँ केँ कर्मशील बनबैत अछि। काज करिते रखैत अछि। भले अहाँ मोबाइल चलाउ, खाना बनाउ, औफिस के काज करू, दोकानदारी करू, किछु खाउ-पिबू, सुतल रहू, घुमैत रहू, उठू-बैठू, गप करू… किछु न किछु करिते रहय पड़त आ एकर फल सेहो ९०% तत्क्षण भेटि गेल करत। किछु काज एहेन होइत छैक जे तत्क्षण फल दयवला नहि छैक। जेना पढ़ब-लिखब त तत्क्षण एकर लाभ एतबे बुझबय जे किछु नव जानकारी भेटल। लेकिन एहि पढ़य-लिखय वला कर्म मे संचित कर्म आ प्रारब्ध कर्म दुनू निहित रहैत छैक। संचित यानि नीक स्मृति सँ बादक कोनो तिथि-मिति मे पढ़ल-लिखल बातक काज आयब। आ प्रारब्ध ओ भेलैक जे पढ़ि-लिखिकय अहाँ केकरो उपकार कय देलियैक, अहाँ सँ समाज आ राष्ट्र सभक सेवा नीक भेलैक, आ एकर सुखद भोग अहाँ केँ आइ-न-काल्हि एहि जीवन मे अथवा अन्य जीवन मे जरूरे टा भेटत।
एहि त्रिविध कर्म केँ बुझैत अहाँ केवल अपन कर्म मे लागल रहू। बस!
हरिः हरः!!