“आधुनिक युगमे परिवारक लेल आर्थिक स्थिति सुधारमे महिलाक योगदान कतेक आवश्यक “-
नारीकेँ आर्थिक रूपसँ आत्मनिर्भर भेनाइ आधुनिक युगक उपज अछि, कियैकि प्राचीन एवं मध्यकालमे तऽ सभ नारी शिक्षाक अधिकारसँ वंचित छलीह। तथापि ई आजुक युगमे आधुनिककताक दायरासँ निकलि कऽ आवश्यकताक रूपमे उभरि कऽ सामने आयल अछि।वैदिक कालमे विदुषीकेँ कोनो अभाव नहिं छलनि। लीलावती, मैत्रेयी आदि नारीक नाम जतय सम्मानपूर्वक लेल जाइत अछि ओतहि महाभारत जेहेन साहित्य-ग्रंथमे कुंती, द्रौपदी आदि नारीकेँ विदुषी आ शास्त्रज्ञ दर्शाओल गेल अछि। परंच विद्यार्जनक ई अधिकार समाजक विशेष स्तरक नारीकेँ ही प्राप्त छलनि। साधारण नारी विद्याक अधिकारसँ सेहो सर्वथा वंचित छलीह। मध्यकालमे भारतीय नारीक स्थिति अत्यंत दयनीय भऽ गेल। नारीकेँ एहि कालमे साहित्य एवं इतिहासमे मात्र एक भोग्य-वस्तुक रूपमे दर्शाओल गेल अछि। नारीक प्रयोजन खाली मनोरंजन हेतु ही रहि गेल छल आ हुनक दायित्व मात्र संतानोत्पत्ति एवं दासीक कार्य तक सीमित रहि गेल छल। नारीकेँ घरक चारदीवारीमे कैद कऽ देल गेल आ ओ तरह-तरहकेँ पाबंदी आ यातना सहैत छलीह। एहि युगमे गोस्वामी तुलसीदास लिखनै रहथिन-
” ढोल गंवार शुद्र पशु नारी, ई सब ताड़नकेँ अधिकारी।”
आधुनिक कालमे जखन पश्चिमी देशमे नवजागरण संग सामाजिक उथल-पुथलक दौर आरंभ भेल तखन हमर देश सेहो ओहिसँ अछूता नहिं रहल। एहि समय विद्यासागर, राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती, ज्योतिबा फुले आदि समाज सुधारककेँ अथक परिश्रमसँ कन्या पाठशाला खोलल गेल एवं नारीकेँ सामूहिक रूपमे शिक्षित करयकेँ प्रथाक प्रचलन भेल।
आजु जखन नारी शिक्षा प्राप्त कऽ चुकल छथि तखन ओ घरसँ बाहर निकलि कऽ रोजगार कऽ आत्मनिर्भर बनि रहल छथि। धीरे-धीरे हर क्षेत्रमे ओ महारत हासिल कऽ अपन झंडा गाड़ि देलनि। कियो शिक्षा दानकेँ अपन पेशा बनेलनि तऽ कियो वकील या इंजीनियर अथवा कियो सफल चिकित्सक बनी गेल। एतऽ तक कि पुरुष वर्चस्व राखय वाला क्षेत्र, जेना सशस्त्र सैनिक सेवा हो अथवा अंतरिक्ष-विज्ञान आदिमे सेहो नारी अपन सशक्त घुसपैठ कऽ लेलनि। आजुक युगमे नारीकेँ लेल ई अत्यंत आवश्यक भऽ गेल अछि कि ओ अपन स्वयंकेँ एक पहचान बनाबैथ। आब ओ ककरो बेटी, बहिन, पुतौह अथवा माँकेँ परिचयमे केवल स्वयंकेँ कैद नहिं राखय चाहैत छथि बल्कि अपन स्वतंत्र अस्मिताक तलाश करैत छथि। आर्थिक स्वतंत्रता नारी सशक्तीकरणक पहिल सीढ़ी अछि। आर्थिक रूपसँ स्वतंत्र नारी परिवारमे बोझ नहिं बुझल जाइत छथि। संग ही घर एवं समाजक आर्थिक विकासमे ओ अपन भरपूर योगदान करैत छथि।घरक चारदीवारीसँ निकलि कऽ सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं आर्थिक चुनौतीक सामना करैत छथि। नारीक बौद्धिक एवं आत्मिक धरातल पर सेहो विकास होइत छैन्ह। ज्ञानमे वृद्धि होइत छैन्ह। कामकाजी महिला घरेलू कामकाजक लेल रोजगार नियुक्त करैत छथि। एहि तरहें ओ आर्थिक दृष्टिसँ कमजोर महिलाकेँ रोजगारक अवसर प्रदान करैत छथि। कामकाजी या आर्थिक रूपसँ आत्मनिर्भर महिला अपन अगिला पीढ़ीकेँ खास कऽ अपन बेटीकेँ आर्थिक दृष्टिसँ स्वतंत्र बनयकेँ लेल प्रेरणास्रोतक काज करैत छथि। एहि तरहें घर आ बाहर दुनू क्षेत्रमे अपन सूझ-बूझ आ धैर्य द्वारा सही संतुलन बना सकैत छथि ई काज नारीये कऽ सकैत छथि। हमर माननाइ अछि कि प्रत्येक नारीकेँ अपन क्षमता एवं रूचिक अनुसार किछु काम-काज अवश्य करबाक चाही, जाहिसँ हुनक एक स्वतंत्र पहचान होइन आ संग ही परिवारमे आर्थिक सहयोग सेहो भऽ जेतेन। एहि महंगाईकेँ दौरमे इंसानकेँ घर चलेनाइ बहुत कठिन होइत अछि। आजु महिला सभ पुरुष संग कन्धासँ कन्धा मिला कऽ आगू बढ़ि रहल छथि। यदि एक महिला आत्मनिर्भर होइत छथि तखन ओ परिवारकेँ सहयोग करैत छथि। एक आत्मनिर्भर महिला बेसी आत्मविश्वासी होइत छथि।अपन मिथिलाक नारी संस्कारसँ ही उदार, कर्मठ एवं त्यागमयी छथि। अनेक कष्ट उठा कऽ ओ नौकरी करैत छथि आ अपन परिवारक आर्थिक स्तर ऊँच उठबैत छथि। आजुक नारीक भविष्य उज्ज्वल अछि।
नारी प्रीतमे राधा बनैथ,
गृहस्थीमे जानकी बनैथ,
काली बनि कऽ शीश काटैथ,
जखन बात हो सम्मानक।
आभा झा
गाजियाबाद